
updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भक्ति भाव से पंच परमेष्ठि विधान संपन्न, लाभार्थी जितेंद्र अनिरुद्ध जैन परिवार आदि ने अर्ध्य चढ़ाएं, संसार में दुःख ही दुःख है, संसार से मोह छूटने पर संसार से पार हो जाओगे- मुनिश्री सानंद सागर। मनुष्य भी पांच इंद्रिय पापों को गले लगाएं हुए हैं। इंद्रियों से मोह छूटने पर आत्म कल्याण होगा।संसार में दुःख हमारी सोच के कारण है।भय का भूत है। संसार में दुःख ही दुःख है। संसार को अपने में नहीं समाएं, संसार से मोह छुटा तो संसार से पार हो जाते है।आपके हाथों में है पाप कमाना है कि पुण्य कमाना।

संसार अनंत है और दुःख देने वाला है। मिथ्यात्व और अज्ञानता से पुदगल को अपना कह रहे हैं। संसार बढ़ाने के कर्मों का क्षय कर दो, चौदहवें गुण स्थान में आश्रव नहीं है।नियम, संयम धारण कर मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो। चिंतन करना संसार में जिसे आप अपना समझ रहे हैं वह आपके नहीं।गौतम गणधर को मोक्ष , केवल्य ज्ञान नहीं हो रहा था उन्हें महावीर स्वामी से मोह था, महावीर स्वामी के मोक्ष जाते ही गणधर स्वामी को केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ।समता परिणाम मोह के कारण नहीं आते हैं।मन,वचन में कुछ और काया में कुछ और है। स्वार्थ पूर्ति के लिए सत्य को भी असत्य करता है व्यक्ति।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजमान आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने रत्नकरण्डक श्रावकाचार ग्रंथ का स्वाध्याय कराते हुए कहीं। भगवान पार्श्वनाथ जी की भव्य प्रतिमा के समक्ष पंच परमेष्ठि विधान संपन्न- श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर शनिवार को सुबह भगवान पार्श्वनाथ जी की भव्य प्रतिमा के समक्ष श्री पंच परमेष्ठि विधान संपन्न हुआ। उक्त विधान के लाभार्थी जितेंद्र कुमार जैन अनिरुद्ध जैन जेके परिवार सहित स्नेहीजनों ने विधान पर अर्ध्य भक्ति भाव के साथ चढ़ाएं।

विधान समाज के वरिष्ठ मिश्रीलाल जैन, जैनपाल जैन ने धार्मिक विधि विधान से संपन्न कराया। समाज के पूर्व संरक्षक कैलाशचंद जैन एलआईसी,महेंद्र जैन जादूगर,सुमत जैन, मनीष पोरवाल,नरेन्द्र गंगवाल, पवन जैन काका, अशोक जैन, प्रकाशचंद्र जैन दीपक जैन,सौरभ जैन, भूपेंद्र जैन,दीपक जैन कंचन सहित अनेक श्रावक एवं श्राविकाओं ने विधान पूजन में शामिल होकर अर्ध्य चढ़ाएं। मुनिश्री ने आशीष वचन देते हुए आगे कहा कि घर, मोहल्ला, ग्राम, खेत, नदी ,वन और योजनों की मर्यादा करने को वृद्ध तपस्वी जन देशावकाशिक व्रत की सीमा बतलाते हैं । अर्थात मैं

अमुक समय तक देश से बाहर नहीं जाऊंगा, ऐसा नियम करना देशावकाशिक व्रत है। वर्ष,ऋतु,मास, चातुर्मास,पक्ष और नक्षत्र के आश्रय से नियत प्रदेश में रहने के नियम करने को ज्ञानी जन देशावकाशिक व्रत की काल मर्यादा कहते हैं। मुनिश्री ने कहा सीमाओं के अंत में परवर्ती क्षेत्र में स्थूल और सुक्ष्म पापों के त्याग हो जाने से देशावकाशिक व्रत के द्वारा महाव्रतो का साधन किया जाता है। आपने सामायिक के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि जहां पर चित्त में विक्षोभ उत्पन्न न हो ऐसे एकांत स्थान में , वनों में ,वसतिकाओं में अथवा चेत्यालयों में प्रसन्न चित्त से सामायिक की वृद्धि करना चाहिए

