मुनिश्री मौन सागर जी मुनिराज ने सुसनेर में यम समाधिमरण किया, बहुत कम मुनिराज लेते हैं यम संलेखना -सानंद सागर मुनिराज, आष्टा से बड़ी संख्या में समाजजन डोले में हुए शामिल

updatenews247.com धंनजय जाट सीहोर 7746898041- आष्टा। परम पूज्य समाधिस्थ गुरुदेव श्री 108 भूतबलि सागर जी मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य, प्रातःस्मरणीय मुनिश्री छपक मौन सागर जी मुनिराज ने सुसनेर में यम संलेखना धारण करते हुए समाधिमरण प्राप्त किया। इस अवसर पर नगर आष्टा सहित विभिन्न स्थानों से बड़ी संख्या में जैन समाजजन श्रद्धा एवं भाव से डोले में सम्मिलित हुए। श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने कहा कि बहुत कम मुनिराज को यम संलेखना समाधि का अवसर मिलता है।

अपने नाम के अनुरूप मौनसागर जी ने सिर्फ दो सप्ताह में यह समाधि लेकर आत्मकल्याण किया है।एक दो भव में वे अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।मुनिश्री मौन सागर जी अपने नाम के अनुरूप सदैव मौनव्रती,संयमी और आत्मलीन रहे। ऐसे विरले ही संत होते हैं जो पूर्ण मौन धारण कर तप और साधना के मार्ग पर अग्रसर होते हैं।आगमनुसार मुनिश्री ने विवेकपूर्वक संलेखना धारण की जो केवल सम्यकदृष्टि जीव ही ग्रहण कर सकता है।मुनि सानंद सागर जी ने दी भावांजलि

श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आयोजित भावांजलि सभा में मुनिश्री सानंद सागर जी मुनिराज ने कहा कि —“जो भगवान की वाणी में विश्वास नहीं करता, वह सच्चा श्रावक नहीं। संलेखना आत्मा में लीन होने का मार्ग है। विवेकपूर्वक ली जाए तो वही समाधि मरण कहलाता है। नाम के अनुरूप मौन रहने वाले मुनिश्री ने दिखाया कि जहाँ विकल्प नहीं, वहीं मौन है। धन्य है वह आत्मा जो विवेक पूर्वक समाधि में लीन हुई।”मुनिश्री ने कहा कि जो व्यक्ति कुलाचार, अणुव्रत और धर्माचारण का पालन करता है ,वही आत्मकल्याण का अधिकारी होता है। उन्होंने समाजजन से आह्वान किया कि वे परिग्रह कम करें, संयम बढ़ाएँ और धर्ममय जीवन जिएँ।

मुनिश्री मौन सागर जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
मुनिश्री मौन सागर जी मुनिराज का गृहस्थ नाम देवेंद्र कुमार था। उनका जन्म वर्ष 1952 में बेलगाम कर्नाटक के बास्तवाड़ ग्राम में हुआ था। पिता का नाम श्रीमंत जी एवं माता का नाम श्रीमती पद्मावती जी था।
बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति वाले देवेंद्र कुमार का वैराग्य तब जागृत हुआ जब 1988 में गुरुवर भूतबलि सागर जी मुनिराज का संघ मांगुर (कर्नाटक) में चातुर्मास कर महाराष्ट्र की ओर विहार कर रहा था।देवेंद्र कुमार ने 1989 में गृह त्यागा, 1991 में ब्रह्मचारी दीक्षा ली, 1994 में ऐलक दीक्षा और अंततः 20 अप्रैल 1996 (अक्षय तृतीया) को गुरुवर भूतबलि सागर जी

से मुनि दीक्षा ग्रहण कर मुनि मौनसागर मुनिराज बने।इसके पश्चात उन्होंने महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश,हरियाणा, मध्य प्रदेश,राजस्थान और कर्नाटक सहित देश के अनेक राज्यों में धर्ममय गंगा प्रवाहित की।26 अक्टूबर 2025 को सुसनेर (मध्यप्रदेश) में यम संलेखना धारण की और 14वें दिन (यम समाधि) प्राप्त करते हुए सिद्ध पद की ओर अग्रसर हुए।🪔 भावांजलि:- पुलक एवं महिला जागृति मंच मेन परिवार द्वारा गुरुदेव भूतबलि सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य छपक मौन सागर मुनिराज जैसे गुरुदेव जिन्होंने मौन, संयम और साधना से आत्मकल्याण का मार्ग दिखाया — उनके चरणों में शत-शत नमन।

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