updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- अच्छी संगति है तो गति भी अच्छी ही मिलेगी। जैसी संगति वैसी गति मिलती है। मनुष्य पर्याय काफी पुण्य से प्राप्त हुई है। देवता भी मनुष्य पर्याय में जाने के लिए तरसते हैं, क्योंकि मनुष्य पर्याय से ही व्यक्ति अपने अंतिम लक्ष्य अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। आदिनाथ भगवान से लेकर महावीर भगवान तक के जीव ने अनेक गतियों में जन्म लेकर मनुष्य गति प्राप्त कर अघातिया कर्मों का क्षय करके मोक्ष पद को प्राप्त किया। आप हम भी दिगंबरी दीक्षा लेकर कुछ ही भव में भगवान महावीर स्वामी की तरह मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। संयम को स्वीकारने वाले ही सर्व प्रथम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
संयम प्राप्ति का पुरुषार्थ करें। संसार में फंसे हैं, भावना भवनाशिनी है। अंतिम सांस लेते समय अपने हाथों में पिच्छिका -कमंडल हो। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि स्वाध्याय और धर्मोपदेश जो भी होता है ,उसे बोलने वाले पहले सुनते हैं। जिनेंद्र भगवान की वाणी हमें सुनने का अवसर मिला है। लाखों – करोड़ों आत्माओं में से एक आत्मा भगवान महावीर स्वामी जैसी होती है।
धर्म सभा, स्वाध्याय आदि में भीड़भाड़ न हो कोई बात नहीं, लेकिन अच्छे श्रावक रहे उन्हें जिनवाणी श्रवण कराना अच्छा लगता है।हर काम में बुद्धि और विवेक की आवश्यकता है, इस बुद्धि का उपयोग विवेक पूर्वक करें। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा कि लोग धार्मिक क्षेत्र में भावनाएं घटाते रहते हैं। कुछ भी हो धर्म आराधना करने में पीछे नहीं रहना चाहिए। व्यक्ति सबसे पहले होनी -अनहोनी में धार्मिक कार्यों को छोड़कर धार्मिक स्थल पर जाने से घटना को जोड़ता है, जबकि दुर्घटना होने पर भगवान का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए कि आप पर इतनी ही बीती।धर्म आराधना से रुढ़िवादी परम्पराएं दूर करें, उन्हें छोड़ कर धर्म आराधना अवश्य करें।
गलत परम्पराओं को छोड़े। किसी महापुरुष के मरण वाले दिन आपकी मृत्यु हो तो वह खुशी की बात है। जितना साथ है, उतना ही रहेगा। धर्म के प्रति श्रद्धा घटना- दुर्घटना के दौरान कम न करें। मुनिश्री ने कहा जैन दर्शन में भाव का महत्व है अतः अपने परिणामों को हमेशा निर्मल रखें। पवित्र क्षेत्र में जाओगे तो मन भी पवित्र होगा। व्यक्ति जिस स्थान और पर्याय में जाता है वह वहां का ही हो जाता है। हमेशा अच्छी संगति करों, निर्मल नाम रखने से नहीं भाव निर्मल बनाना चाहिए। आपने एक वृतांत सुनाते हुए कहा कि छोटी सी नेकी, एक क्षण की अच्छी संगति डाकू को मंत्री बना देती है।
धीरे-धीरे साधना कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।गलत संगति में जाने पर आत्म कल्याण नहीं। जिनेंद्र भगवान के उपदेश, संदेश को ग्रहण करें। स्वाध्याय के प्रति साधु और स्वाध्याय के प्रति यहां के समाज का बहुत लगाव। ऐसा लगाव हमें बड़ी बड़ी जगहों पर नहीं दिखता।हम आगम के बंधन से मुक्त हो गए। आष्टा की आस्थावान नगरी में हमें चातुर्मास करने का अवसर मिला, काफी क्षेत्रों से चातुर्मास हेतु विनती थी।पाठशाला के माध्यम से बच्चे संस्कारित होगें। पाठशाला रीढ़ की हड्डी है। बच्चों को धर्म से पाठशाला जोड़ती है। स्वतंत्र और स्वलंवी पाठशाला हो। आप अपने बुढ़ापे को सुधारने हेतु बच्चों को पाठशाला भेजकर संस्कारित करें।