updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भगवान की भक्ति -पूजन हमें मजबूरी में नहीं सौभाग्य मानकर करना चाहिए। बिना अपेक्षा अर्थात निष्काम भाव से भगवान की पूजा-अर्चना, आराधना करें। भगवान और गुरु के समक्ष कभी भी भिखारी बनकर नहीं जाएं, उनके दर्शन मात्र से आपका कल्याण और पुण्य अर्जित होता हैं। अन्य क्षेत्रे कृतं पापं धर्म क्षेत्रे विनशयति, धर्म क्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति अर्थात अन्य जगह किया गया पाप धर्म क्षेत्र में धुल सकता है ,परंतु धर्म क्षेत्र में किया गया पाप वज्र के समान हो जाता है जो कभी नहीं कट सकता। इसलिए हमें धर्म क्षेत्र में ,मंदिरों में ,धार्मिक स्थलों पर अच्छे भाव रखकर पाप क्रिया से बचना चाहिए।

उक्त बातें नगर के अरिहंत पुरम अलीपुर के श्री चंद्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर में 48 दिवसीय श्री भक्तांबर विधान के अवसर पर मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने 21 एवं 22 वें काव्य का वाचन करते हुए काव्य का फल सर्व सौभाग्य प्रदायक बताया। सौभाग्य का अर्थ एक काम करने से सौ – सौ काम स्वतः बन जाते हैं, उसे सौभाग्य कहते हैं। ऐसा वह काव्य जिसका फल सर्व सौभाग्य प्रदायक बताया।निष्काम भाव से पूजन करना चाहिए। भगवान की पूजन में हमें मांगना नहीं चाहिए, मांगने में हमें मजदूरी मिलेगी, जबकि आप सौभाग्य मानकर करेंगे तो आप कल्पना नहीं कर सकते हैं वह आपको प्राप्ति होगी। मुनिश्री ने गृहस्थ की परिभाषा बताई जो लस्त हैं ,पस्त है फिर भी मस्त है, वही ग्रहस्थ है।

दर्शन की परिभाषा मुनि श्री ने बताई देखते-देखते देखता रह गया, मैं तेरा, तू मेरा ,मैं तेरा हो गया। भगवान के दर्शन में इतना खो जाना उनको निहारने में खो जाना यही प्रभु दर्शन है। मुनिश्री ने प्रज्ञा का अर्थ बताया तत्काल जवाब देना, हाजिर जवाब देने वाला व्यक्ति प्रज्ञावान कहलाता है और विनय से ही ज्ञान की प्राप्त होती है ।प्रज्ञा चार प्रकार की होती है वेनतीक प्रज्ञा जो विनय प्राप्त होती है, कर्मजा प्रज्ञा यह तप से प्राप्त होती है ।पारिणाम की प्रज्ञा यह पर्याय से प्राप्त होती है ‌अपथकी प्रज्ञा इस भव का ज्ञान अगले भव मे होना, इन्हीं चारों प्रज्ञाओं के धारी मुनिराज गणधर बनते हैं।22 वें काव्य के फल में गुरुदेव ने बताया कि यह भूत -पिशाच ,बाधा निवारक काव्य है।

भूत -पिशाच की बाधा उन जीवों को सताती है जो भूतनाथ की शरण नहीं लेते। मुनिश्री ने भूतनाथ अर्थात जिनेंद्र भगवान बताया। मनुष्य लोक में जितने भी जीव हैं उन सब के नाथ ही भूतनाथ होते हैं |भूत वह है जो शरीर ,परिवार ,परिग्रह, धन- संपदा, संसार आदि को प्राथमिकता देते हैं, वह ही वास्तविकता में भूत हैं और जिन्होंने देव ,शास्त्र, गुरु को प्राथमिकता देते है उन्हें भूत -व्यंतर कभी परेशान नहीं करते हैं।अगर कोई पक्ष मजबूत है तो वह कमजोर पक्ष को दबा देगा, इसलिए अगर आप कमजोर हैं तो भूत -पिशाच की बाधा सताएगी। किंतु यदि आप मजबूत हैं आपने जिनेंद्र भगवान के चरणों की शरण ले रखी है तो भूत- पिशाच की बाधा आपको कतई सता नहीं सकती।

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