updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- अरिहंत पुरम अलीपुर श्री चंद्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर में 48 दिवसीय श्री भक्तांबर विधान के अवसर पर मुनि श्री विनंद सागर जी ने भक्तामर स्त्रोत एवं स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कहा कि देश है तो धर्म है और धर्म है तो हम हैं। इस लिए सदैव देश मुख्य हुआ करता है। हमें देश की उन्नति के विषय में विचार करना चाहिए ।यह भारत भूमि इतनी पवित्र भूमि हैं कि विदेश में जनमानस के भाव इस भारत भूमि की वंदना के होते हैं ।वे यहां आते हैं और नतमस्तक होकर इस भूमि की वंदना करते हैं । यहां की माटी इतनी पवित्र है कि इस माटी को हम सर पर लगा करके गौरव की अनुभूति करते हैं।

जब देश में मुगल साम्राज्य था ,मुगल शासन था तब ऐसी विकट परिस्थितियों थी जब साधु- संतों के विचरण के समय भी बहुत कठिनाइयां होती थी। साधु -संतों का विहार साधु -संतों का विचरण वह भी बहुत कठिन परिस्थिति में हुआ करता था ।परंतु आज के दिवस से हम स्वतंत्र होकर साधु -संत विचरण कर सकते हैं ।धर्म की प्रभावना कर रहे हैं, यह सब संभव हुआ है उन स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा जिन्होंने देश के स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। हमें गर्व है ,उन सैनिकों पर जिनके कारण हम स्वतंत्रता का अनुभव कर रहे हैं ।स्वतंत्रता को जी रहे हैं। हमारे राष्ट्र के उन्नति के लिए राष्ट्र सेवा का भाव हमारे अंदर होना चाहिए।

राष्ट्र सेवा स्वयं से प्रारंभ होती है ,स्वयं देश के लिए क्या योगदान दे सकते हैं। उसके बारे में विचार करना चाहिए देश की उन्नति ही हमारी उन्नति है देश के व देशवासियों के प्रति हमारे मन में सम्मान होना चाहिए और यही मुख्य धारा से हमें जोड़े रखता है। समर्पित भाव से देश सेवा अपने क्षेत्र के प्रति जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए ।स्वामी विवेकानंद जब जापान गए थे तब फल की दुकान पर जब वह फल खरीदने गए तो वहां एक युवा ने उन्हें फल खरीदने के लिए उच्च स्तर के फल खरीदने के लिए कहा जब उससे पूछा गया कि यह फल ही तो मुझे क्यों देना चाहते हो तो उसके उसके मन में देश के प्रति जो सम्मान था उसे सम्मान के कारण उसके विचार अनुकरणीय है ।

उसने कहा कि जब आप मेरे यहां से बहुत अच्छे फल का सेवन करके जाएंगे तो निश्चित ही मेरे देश की मेरी भूमि की आप प्रशंसा करेंगे ।देश के प्रति सम्मान और राष्ट्र के सम्मान हमारा प्रथम दायित्व है ।यही हमें उन्नति के रास्ते पर ले जाता है ।जब तक हमारे देश के प्रति सम्मान नहीं होगा ,तब तक देश उन्नति नहीं कर सकता। जापान में प्रत्येक नागरिक अपने देश के प्रति सम्मान और देश के प्रति दायित्व को निभाने के लिए तत्पर रहता है। इसीलिए एशिया में जापान आज दूसरे नंबर पर है। हमारे देश में भी इसी प्रकार की भावना से ओतप्रोत होकर हमें देश के प्रति समर्पित भाव से सम्मान,

समर्पण करके अपने देश की उन्नति के कार्यों में सदैव संलग्न रहना चाहिए ।मुनिश्री ने कहा कि समाज में हर एक परिवार का दायित्व होता है कि वह अपने देश ,अपने धर्म और अपने परिवार की रक्षा करने में समर्थ हो ।हमारा एक छोटा सा योगदान देश की उन्नति में सहायक होता है ।जिस प्रकार देश को स्वच्छ करने के लिए पूरे देश में हर एक व्यक्ति यदि अपने आसपास के क्षेत्र में ही स्वच्छता का ध्यान रखें तो हमारे देश में स्वच्छता अभियान की सार्थकता आएगी ।एक छोटी सी शुरुआत एक बड़ा परिणाम हमें देगी और यह तब होगा जब हम देश को अपना एवं देश की संपत्ति को अपनी संपत्ति समझ करके उसके प्रति अपने दायित्व का सही प्रकार से निर्वहन करेंगे। रहे।

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