पराग (राम) ताम्रकार बने ताम्रकार समाज के नवीन अध्यक्ष

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- ताम्रकार समाज आष्टा द्वारा समस्त समाजजन एवं वरिष्ठों की उपस्थिति में एक बैठक आयोजित की गई जिसमें पूर्व अध्यक्ष सुधीर जी महलवार द्वारा अपने कार्यकाल में हुए आय व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत किया गया जिसके उपरांत नवीन अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया में पराग ताम्रकार का नाम आया

जिसमें सर्वसहमति से पराग को अध्यक्ष चुना गया एवं सभी उपस्थित सामाजिक बंधुओं ने ताम्रकार के इस नियुक्ति पर उन्हें बधाई दी इस अवसर पर पराग ताम्रकार ने समस्त वरिष्ठों एवं सामाजिक बंधुओं का आभार माना एवं सभी को विश्वास दिलाया कि उन्हें जो जिम्मेदारी समाज के द्वारा दी गई है उसे वो पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाएंगे।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- नाथ तीन अति प्रबल खल काम ,क्रोध और लोभ।काम, क्रोध, लालच, जैसी बुराइयों की वजह से व्यक्ति सही गलत का भेद भूल जाता है ।और गलत काम करने से पीछे नहीं हठता।ये सभी नरक के रास्ते हैं। गोस्वामी जी लिखते हैं ।काम, क्रोध, मद, लोभ सब नाथ नरक के पथं। सब परिहर रघुबीरही, भजहु भजेइ जेही संत।उक्त प्रेरक विचार श्री राम मंदिर खत्री सुभाष चौक में चल रही सात दिवसीय संगीत में श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस मालवा क्षेत्र के सुप्रसिद्ध भागवत कथाकार संत श्री मिट्ठूपुरा सरकार द्वारा व्यक्त किए गए।

आगे कथा में गुरुदेव ने सुनाया की भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन को बहुत समझाया की पांडव भी तुम्हारे भाई है। इस राज्य पर इनका भी अधिकार है। तुम यदि आधा राज्य नहीं देना चाहते हो तो, कम से कम इन्हें पांच गांव ही उनके भरण पोषण के लिए दे दो। पर विनाश काले विपरीत बुद्धि, दुर्योधन ने भगवान के इस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। और अभिमान वस भगवान से कहा पांच गांव की बात करते हो, बिना युद्ध किये तो मैं उन्हें सुई की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा। सुलह के सारे रास्ते बंद हो गए ,युद्ध निश्चित हो गया।

तब दुर्योधन और अर्जुन दोनों भगवान श्री कृष्ण से सहायता के लिए उनके पास पहुंचे। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि तुम दोनों मेरे समधी हो, इसलिए मैं दोनों को निराश नहीं कर सकता। ऐसा करो की एक व्यक्ति तो मेरी पूरी सेना ले लो ,और एक तरफ में स्वयं रहूंगा। पर प्रतिज्ञा यह है, कि मैं अस्त्र-शस्त्र नहीं चलाऊंगा। दुर्योधन ने सोचा खाली हाथ कृष्ण को लेकर क्या मिलेगा। तब दुर्योधन ने सेना मांग ली, और अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण को मांगा। भगवान अर्जुन के सारथी बने। और जिसके साथ भगवान होते हैं। सत्य होता है।

धर्म होता है। विजय उसकी निश्चित है, और परिणाम आपको पता है, की दुर्योधन की विशाल सेना होने के बाद भी भगवान कृष्ण की कृपा से पांडव को विजय श्री प्राप्त हुई। कौरवों के सौ भाई मारे गए ।भगवान पांचो पांडव की रक्षा की। इसके बाद महाराज युधिष्ठिर जी को हस्तिनापुर का राजा बनाया 36 वर्ष तक महाराज युधिष्ठिर ने धरमपूर्वक शासन किया। और अंत में भगवान श्री कृष्ण के वियोग के कारण परिवार सहित स्वर्ग धाम को चले गए। उनके जाने के पश्चात पौऋ अभिमन्यु नंदन महाराज परीक्षित को हस्तिनापुर का राज प्राप्त हुआ। महाराज परीक्षित ने न्याय पूर्वक राज्य का संचालन किया।

और अंत में वह भी ऋषि श्रॉप के कारण सुखदेव मुनी से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा सुनकर भगवान के धाम को चले गए।गुरुदेव द्वारा गाए हुए मधुर भजनो सभी श्रोताओं ने नृत्य किया। आज भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। प्रसाद का वितरण श्री बाबूलाल जी शर्मा की ओर से किया गया। इस अवसर पर , लोकेंद्र पिपलोदिया, बाबूलाल शर्मा, रमेश खत्री, सुरेश डोंगरे, बंटी मालवीय, प्रकाश राजपूत, धर्मेंद्र चौहान, सूरज यादव, कोरी साहब, ललिता ठाकुर, पुष्पा पिपलोदिया , सनी सत्यम, बबलू खत्री, सुशीला सोलंकी, ललिता मालवीय सहित बड़ी संख्या में क्षेत्र के भक्तजन पधारे।

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