updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- कलयुग में मुक्ति के केवल दो ही साधन है। एक तो भगवान का भजन दूसरा राम जी की कथा, बाबा तुलसीदास जी लिखते हैं। कलयुग तरण उपाय न कोई। राम भजन रामायण दोई। ऊक्त प्रेरक विचार श्री श्याम श्याम चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा नया दशहरा मैदान खंडेलवाल ग्राउंड पर आयोजित सात दिवसीय संगीत मय श्री राम कथा के प्रथम दिवस मालवा माटी के संत श्री मिट्ठू पुरा सरकार द्वारा व्यक्त किए गए। कथा से पूर्व खेड़ापति हनुमान मंदिर कन्नौद रोड से एक संक्षिप्त कलश यात्रा निकाली गई।

कलश यात्रा में मुख्य यजमान भागवत मेवाड़ा द्वारा श्री राम चरित्र मानस को सर पर धारण कर व्यास पीठ पर पंडित अभिषेक शर्मा द्वारा पूर्ण विधि विधान से पूजन कर विराजमान किया। इसके पश्चात मुख्य यजमान और कथा समिति के सदस्यो द्वारा पूज्य महाराज श्री का शाल, श्रीफल और पुष्पमाला भेंट कर स्वागत किया। आगे महाराज श्री द्वारा श्री राम चरित्र मानस के माहत्म्य पर बड़े विस्तार से प्रकाश डाला। गुरुदेव द्वारा बताया गया कि पूर्व में महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रामायण लिखी गई थी जिसमें 100000 श्लोक थे।

इसके पश्चात इस कलयुग में गोस्वामी तुलसीदास जी के रूप में बाल्मिक जी का पुनर्जन्म हुआ। और उन्होंने भगवान शंकर की प्रेरणा से श्री राम चरित्र मानस को हिंदी भाषा में लिखा। क्योंकि कलयुग में संस्कृत के जानने वाले बहुत कम लोग बचे हैं। बाबा तुलसीदास जी ने इतनी सरल भाषा में रामचरित्र मानस की रचना की यदि प्रयास करें तो अनपढ़ व्यक्ति भी इसे पढ़ सकता है। आगे संत श्री द्वारा रामचरित्र मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी के संपूर्ण जीवन पर बड़े ही विस्तार से प्रकाश डाला।

श्री गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म संवत 1554 ई को उत्तर प्रदेश के यमुना नदी के किनारे बसे राजपुर गांव में आत्माराम दुबे के यहां हुआ। इनकी माता का नाम हुलसी था। बचपन में ही माता का देहांत हो गया। इसके पश्चात इनका लालन पालन उनके नाना जी के यहां हुआ। और जल्दी ही उनकी भी मृत्यु हो गई। फिर इन्हें चुनिया नाम की उनकी दासी ने संभाला और थोड़े दिन बाद वह भी स्वर्ग सुधार गई। तब कहते हैं की साक्षात मां पार्वती ने वृद्ध स्त्री के रूप में इनका लालन-पालन किया। पश्चात भगवान शंकर की कृपा से इन्हें नहरिया नंद जी के रूप में गुरु मिले और उनके आश्रम में रहकर ही इन्होंने सभी वेद ,वेदांत का अध्ययन किया।

कालांतर में इनका विवाह रत्नावली नाम की एक सुशील सुंदर कन्या से हुआ। और अपनी पत्नी रत्नावली की प्रेरणा से इन्होंने गृह त्याग कर आध्यात्म का जीवन स्वीकार किया। अंत में 126 वर्ष की आयु संवत 1680 में गंगा नदी के किनारे गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन समाप्त हुआ। इसके अलावा भी गुरुदेव ने राम कथा के अनेक गुढ विषयों का स्पर्श किया। राम कथा कली विटप कुठारी। सदर सुन गिरी राजकुमारी। भगवान शंकर मां पार्वती से कहते हैं। इस कलयुग में पाप रूपी वृक्ष को काटने के लिए श्री राम कथा रूपी कुल्हाड़ी की अत्यंत आवश्यकता है।

राम कथा से ही जीव को शांति प्राप्त होती है। कथा से ही जीवन की व्यथा मिटती है। इसलिए समय निकाल कर भगवान की कथा सुनते रहो। इसके साथ ही क्षेत्र के सुप्रसिद्ध संगीतकार जगदीश प्रजापति द्वारा गए मधुर भजनों पर श्रोताओं ने भाव विह्वल हो कर नृत्य किया। आज का प्रसाद चैन सिंह महेंद्र सिंह ठाकुर देव कृपा दूध डेयरी नवरंगपुर की ओर से वितरण किया गया।इस अवसर पर सुभाल सिंह मुगली पार्षद तेज सिंह राठौड़, बहादुर सिंह ठाकुर, मधुसूदन परमार ,देवजी पटेल, विक्रम सिंह पटेल, मंजीत राजपूत, राकेश विश्वकर्मा ,गजेंद्र सिंह, भागवत मेवाड़ा राजीव पवार अमन राठौर, श्रीमती दुर्गा राठौर सहित बड़ी संख्या में मात्र शक्तियों उपस्थिति रहीं।

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