
updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का हिंदू धर्म में बड़ा ही पावन महत्व है। उड़ीसा राज्य के पूरी में इस यात्रा का विशाल आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है।हिंदू पंचांग के अनुसार पूरी यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है इस वर्ष यह यात्रा 27 जुन शुक्रवार को भक्तगण बड़े ही आस्था विश्वास के साथ आज निकालेंगे। कहते हैं कि इस यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ साल में एक बार प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा को केवल भारत में नहीं बल्कि दुनिया भर में एक प्रसिद्ध त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। संपूर्ण विश्व के लाखों लाखों श्रद्धालु इस रथयात्रा के साक्षी बनते हैं। रथयात्रा के एक दिन पूर्व श्रद्धालुओं द्वारा गुंडिचा मंदिर को साफ किया जाता है। इस परंपरा को गुंडीचा मार्जन कहा जाता है।नगरपुरोहित पं मनीष पाठक ने बताया कि जगन्नाथ शब्द से अर्थ जगत के नाथ यानी भगवान विष्णु से उड़ीसा राज्य के पूरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है।हिंदू मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है।

कि हर व्यक्ति अपने जीवन में एक बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए अवश्य जाना चाहिए,भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र बहन सुभद्रा भी शामिल होते है। रथ यात्रा के दौरान श्रद्धा और विधि विधान के साथ तीनों की आराधना की जाती है। और तीनों के भव्य एवं विशाल रथ को पूरी की सड़कों पर निकाला जाता है।बलभद्र के रथ को तालध्वज कहां जाता है। जो यात्रा में सबसे आगे चलता है। और सुभद्रा के रथ को दर्प दलन या पद्म रथ कहा जाता है। जो कि मध्य में चलता है जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष या गरुड़ ध्वज कहते हैं जो सबसे अंत में चलता है। हर साल यह पर्व लाखों श्रद्धालुओं, शेलानियों एवं जनमानस को अपनी और आकर्षित करता है।

पौराणिक मान्यताएं- पं पाठक ने बताया कि वैसे तो जगन्नाथ रथ यात्रा के संदर्भ में कई धार्मिक पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई है जिनमें से एक कथा का वर्णन है कि एक बार गोपियों ने माता रोहिणी से कान्हा की रासलीला के बारे में जानने का आग्रह किया। उस समय सुभद्रा भी वहां पर उपस्थित थी। तब मां रोहिणी ने सुभद्रा के सामने भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ रासलीला का बखान करना उचित नहीं समझा, इसलिए उन्होंने सुभद्रा को बाहर भेज दिया और उनसे कहां की अंदर कोई ना आए इस बात का ध्यान रखना। इसी दौरान कृष्ण जी और बलराम सुभद्रा के पास पधार गए और

उसके दाएं बाएं खड़े होकर मां रोहिणी की बातें सुनने लगे। इस बीच देव ऋषि नारद वहां उपस्थित हुए। उन्होंने तीनो भाई बहन को एक साथ इस रूप में देख लिया। तब नारदजी ने तीनों से उनके उसी रूप में उन्हें देवीय दर्शन देने का आग्रह किया फिर तीनों ने नारद जी की इस मुराद को पूरा किया अतः जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों (बलभद्र,सुभद्रा,एवं कृष्ण जी) के इसी रूप में दर्शन होते हे
धार्मिक महत्व
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पं डॉ दीपेश पाठक ने बताया कि इस यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक दोनो महत्त्व है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पूरी यात्रा भगवान जगन्नाथ जी को समर्पित है। जो की भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं।

हिंदू धर्म की आस्था का मुख्य केंद्र होने के कारण इस यात्रा का महत्व और भी बढ़ जाता है। कहते हैं कि जो कोई भक्त सच्चे मन से और पूरी श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं तो उन्हें मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। वे इस जीवन मरण के चक्र से बाहर निकल जाते हैं। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। देश-विदेश के सैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकर्षण का केंद्र मानी जाती है।यह सब बाते इस यात्रा के धार्मिक महत्त्व को भी अभिव्यक्त करती है।
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नगरपुरोहित परिवार श्रीजगदीश्वरधाम आष्टा
9893382678
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