धनंजय जाट/आष्टा। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर स्वामी अवधेशानंद गिरीजी महाराज के रूप में एक ऐसे संत का अवतरण हुआ, जिन्होंने न केवल अपने व्यवहार तथा अपने आचरण से समाज को नई दिशा दी, बल्कि जीवन के वास्तविक लक्ष्य की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया जिससे लोग गृहस्थ जीवन में रहते हुए सहज रूप में आध्यात्मिक उन्नति करते रहे।

कर्त्तव्यपालन और सदाचार को आध्यात्म की आधारशीला बनाते हुए प्रत्येक साधक को भक्ति एवं प्रेम के साथ साधना करनी है। बड़ी सावधानी एवं धैर्य के साथ अपने अंदर से एक-एक बुराईयों को निकालते हुए हमें इस धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ना है। सांसारिक माया-मोह के बंधनों में उलझकर जो लोग अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य से भटक गए थे पूज्य गुरूदेव ने उन भटके हुए लोगों के मार्गदर्शन के लिए यह शरीर धारण किया है।

संत एवं महापुरूष बंधनमुक्त तथा सर्वव्यापी होते है उन्हें भावप्रेम के साथ पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा एवं समर्पण की भावना से प्रेरित होकर जिस समय दिल की गहराईयों से याद किया जाएगा उसी समय वे उपस्थित होकर साधक का कल्याण करेंगे जैसा कि कहा गया है – हरिव्यापक सर्वत्र समाना प्रेम से प्रगट होई मे जाना…

इस आशय के विचार रखते हुए प्रभुप्रेमी संघ के संस्थापक सदस्यगण श्रीमती आशा राठौर जबलपुर, प्रेमनारायण शर्मा, ओंकारसिंह ठाकुर, द्वारकाप्रसाद पटवारी, कन्हैयालाल शर्मा ने स्वामीजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रेमनारायण गोस्वामी, जीके माथुर, जीएल विश्वकर्मा, भवानीशंकर शर्मा, अनिल धनगर द्वारा स्वामीजी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन कर किया।

नगर के प्रख्यात भजन गायक श्रीराम श्रीवादी, शिव श्रीवादी, मुकेश भूतिया, दीपेश गौतम द्वारा भक्तिभाव से ओतप्रोत सुमधुर भजनों की प्रस्तुति दी गई। गुरूनाम की लूट है लूट सके तो लूट…, कर ले अपराध अपने कबूल माफ कर देंगे वो तेरी भूल…, लीन भक्ति में जरा मान संतों का मशवारा…, थो़ड़े से प्यार पर थोड़ी मनुहार पर प्रभु जी मेरे रीझ जाते है…, जैसे भावप्रिय गुरूभक्ति से ओतप्रोत भजनों की प्रस्तुति भी कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित प्रभुप्रेमी संघ के इस धार्मिक कार्यक्रम में भजन गायकों ने दी।

बुधवारा स्थित शास्त्री स्कूल प्रांगण में आयोजित इस जन्मोत्सव कार्यक्रम में श्रद्धालुजनों ने ओमनाद््, गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र इत्यादि धार्मिक क्रियाओं में भी सआनंद भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन द्वारकाप्रसाद सोनी राजहंस द्वारा किया गया तथा महाआरती पश्चात्् प्रसादी का वितरण प्रभुप्रेमी संघ द्वारा किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में गुरूभक्तगण, श्रद्धालुजन मौजूद थे।

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