updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- “1 नवंबर-” आष्टा विधायक गोपाल सिंह जी इंजिनियर का रविदास जांगड़ा समाज संगठन आष्टा एवं सरपंच संघ के प्रतिनिधि गण ने बड़े ही धूमधाम से साफा बांधकर श्री फल भेंट करके मनाया जन्मदिन। इस अवसर पर रविदास जांगड़ा समाज अध्यक्ष सरपंच दिलीप आंवले, बाबूलाल जाटव सरपंच वरिष्ठ समाजसेवी कजलास, सुनील फरेला जिला पंचायत सदस्य, नेपाल सिंह पैरवाल सरपंच पाडलिया, रमेशचंद दगोलिया सरपंच लोरास, शेर सिंह सरपंच भेरुपुर, सजन सिंह सरपंच बिलपान, अंबाराम सरपंच ग्वाला, हमीर सिंह सरपंच बोरखेड़ा, फुलसिंह सरपंच बांधरिया डाल, नरबत सिलोरिया रविदास जांगड़ा समाज सचिव, गंगाराम सरपंच कुमडावदा, अनोखीलाल चोदिया बामुलिया भाटी, शंकरलाल बड़ोदिया झाझनपूरा, लाड सिंह आंवले, अर्जुन बड़ोदिया आष्टा, अर्जुन रेकवाल, रतनलाल बीसूखेड़ी आदि ने विधायक गोपाल सिंह इंजीनियर को जन्मदिन की बधाई एवं शुभकामनाएं दी।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भगवान महावीर स्वामी वर्तमान शासन नायक और 24 वें तीर्थंकर है।आप 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान के आध्यात्मिक काल के पश्चात 24 वें तीर्थंकर थे, उनके मोक्ष जाने के ढ़ाई सौ साल पश्चात भगवान महावीर हुए आयु 72 साल की थी और ऊंचाई सात हाथ थी। महावीर स्वामी का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारंभ में प्राचीन भारत के एक शाही क्षत्रिय जैन परिवार में हुआ था।तीस साल की आयु में आपने संसार से विरक्त होकर राज, वैभव त्याग कर संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकले। महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। आपका जीवन त्याग, तपस्या से ओतप्रोत था।एक लंगोटी का भी परिग्रह नहीं था।

माता त्रिशला के उदर से चैत्र शुक्ल त्रयोदशी 599 ईसा पूर्व में भारत के बिहार के वैशाली जिले के कुंडलपुर में जन्म हुआ था। जन्म से ही अनेक अतिशयों को प्रकट करते हुए उनके शुभ शकुन हुए।आपकी उत्पत्ति से देव,दानव,मृग और मानव सभी हर्षित हुए। चारों निकाय के देवों ने आपका जन्मोत्सव मनाया।आप द्वितीया के इन्दु की तरह दिन – प्रतिदिन बढ़ कर कुमार अवस्था में प्रविष्ट हुए। विद्वान होने के साथ – साथ आप शूरता, वीरता और साहस आदि गुणों के अनन्य आश्रय थे।जब महावीर स्वामी मोक्ष गए थे तब चतुर्थ काल के 3 साल 8 माह 15 दिन बाकी रह गए। फिर पंचम काल प्रारंभ हुआ। भगवान महावीर स्वामी का यह शासन काल आने वाली चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर के केवल्य ज्ञान प्राप्त होने तक चलता रहेगा। संसार के भेद विज्ञान को जिन्होंने देखा, समझा और उसे अपने जीवन में उतरकर परिभाषित किया तथा सभी को जानने और समझने की प्रेरणा दी।

वह तीर्थंकर कहलाए है। वह स्वयं भव सागर से पार हो गए तथा उनके बताए मार्ग पर चलकर अनंत जीव सिद्ध हो गए और होते रहेंगे। इस आलेख में गुरुवर मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने अपने अपूर्व ज्ञान से महावीर के परिशोधित चिंतन को सहेजकर जिनवाणी का शाश्वत रूप प्रदान किया ।हमारा सौभाग्य की उनकी परंपरा में हमको दीक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
महावीर स्वामी परिचय
नाम –वर्धमान, सन्मति,वीर, अतिवीर, महावीर
पिता का नाम –राजा सिद्धार्थ
माता का नाम –त्रिशला प्रियकारिणी
वंश का नाम — क्षत्रिय वंशीय
गौत्र –कश्यप
चिंह- सिंह
गर्भ तिथि –आषाढ़ शुक्ल षष्ठी शुक्रवार 17 ई. पू.599
गर्भकाल –9 माह 7 दिन 12 घंटे
जन्म — चैत्र शुक्ल 13 ,27 मार्च ई .पू .598
दीक्षा — मंगसिर वदी 10 सोमवार 29 दिसंबर ई.पू. 570
कुमार काल–28 वर्ष 7 माह 12 दिन
तप काल –12 वर्ष 5 माह 15 दिन
देशना काल –29 वर्ष 5 माह 20 दिन
कैवल्य ज्ञान प्राप्ति –वैशाख शुक्ल 10 रविवार 23 अप्रैल ई.पू.557

प्रथम देशना — श्रावण कृष्ण प्रतिपदा राजगृह विपुलाचल पर्वत
केवली उपदेशकाल–29 वर्ष 5 माह 20 दिन
निर्वाण तिथि –लगभग 72 की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या प्रत्युष वैला
मुख्य सिद्धांत — पंच महाव्रत
तत्व ज्ञान – अनेकांत स्यादुवाद
कुल आयु –71 वर्ष 6 माह 23 दिन 12 घंटे
निर्वाण स्थल — पावापुर बिहार
परोपकार कार्य
महावीर स्वामी जिन्हें वर्धमान,वीर नाम से भी जाना जाता है।आप जन्म से ही परोपकार में लगे थे।जब भी दीन दुखी जीवों को देखते थे तब उनका ह्रदय व्यथित हो जाता था। इतना ही नहीं जब तक वह उसका दुख दूर करने का प्रयत्न करते थे ।सब प्राणी मात्र के प्रति उनके हृदय से करुणा झरती रहती थी। छोटे – बड़े का भेद उनके मन में नहीं रहता था।जब महावीर स्वामी की आयु 30 वर्ष की हुई। उनके शरीर में यौवन का पूर्ण विकास हो गया।

राजा सिद्धार्थ ने एक दिन उनसे कहा प्रिय पुत्र अब तुम पूर्ण यौवन अवस्था को प्राप्त हो, तुम्हारी गंभीर और विशाल आंखें तुम्हारा , उन्नत ललाट, प्रशांत वंदन,मंद मुस्कान,चतुर वचन, विस्तृत वक्ष स्थल, घुटनों तक लंबी तुम्हारी भुजाएं तुम्हें प्रत्यक्ष महापुरुष सिद्ध कर रही है।अब तुम्हारे अंदर खोजने पर भी वह चंचलता नहीं पाता हूं। अब यह समय तुम्हारे राजकाज को संभालने का है। मैं अब वृद्ध हो गया हूं और कितने दिन तक तुम्हारा साथ दे सकूंगा। मैं तुम्हारा विवाह कर तुम्हें राज्य देकर संसार के झंझटों से बचना चाहता हूं। पिता के वचन सुनकर महावीर का प्रफुल्ल मुखमंडल सहसा गंभीर हो गया। किसी गहरी समस्या को सुलझाने में लग गए हो। कुछ देर बाद उन्होंने कहा पूज्य पिताजी आपकी आज्ञा का पालन मुझसे नहीं हो सकेगा। भला जिस जंजाल से आप स्वयं बचना चाहते हैं ,उसी जंजाल में आप मुझे फसाना चाहते हैं।

मैं अब बाकी का कार्य राज्य और धर्म की सेवा में समर्पित कर अपना कल्याण करना चाहता हूं। राजा सिद्धार्थ ने कहा पर यह कार्य तो गृहस्थ आश्रम से भी हो सकते हैं। महावीर ने कहा यह आपका मेरे प्रति व्यर्थ मोह है। आप मुझे आज्ञा दीजिए जिससे में जंगल के उन्मुक्त वायु मंडल में रहकर आत्म ज्योति को प्राप्त कर जगत का कल्याण कर सकूं। राजा सिद्धार्थ ने क्या सोचा था और क्या हुआ। जब रानी त्रिशला ने यह सुना आंसुओं की झड़ी लग गई और उन्होंने महावीर की ओर देखा उस समय उनके चेहरे पर उन्हें परोपकार की दिव्य झलक दिखाई दी। उसकी लालसा रहित सरल मुखावृति ने उनके समस्त विमोह को दूर कर दिया। महावीर को देखकर उन्होंने अपने आपको धन्य माना और कुछ देर तक अनिमेष दृष्टि से अपने पुत्र को देखती रही, फिर कुछ देर बाद उन्होंने महावीर से स्पष्ट स्वर में कहा हे देव जाओ, खुशी से जाओ, अपनी सेवा से इस संसार का कल्याण करो ।अब मैं आपको पहचान सकी कि आप मनुष्य नहीं देव हैं।

मैं आपको जन्म देकर धन्य हुई। तभी तो दुनिया कहती है कि हर पुत्र की मां कैसी हो, त्रिशला मैय्या जैसी हो। भगवान महावीर ने राजभवन से वन की ओर जाकर जैनेश्वरी दिगंबर दीक्षा धारण कर अपना और संसार का कल्याण करने लगे।
भगवान महावीर स्वामी के मुख्य पांच सिद्धांत
भगवान महावीर स्वामी के मुख्य पांच सिद्धांतों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह थे।
अहिंसा– यानी हर स्थिति में ,परिस्थिति में हिंसा नहीं करना। महावीर स्वामी ने उपदेश दिया जो जीव दिखने में आते हैं उनकी रक्षा तो कर लेते हैं ,लेकिन जो जीव दिखने में नहीं आ रहे हैं ऐसे जीवों की रक्षा करना। सत्य– किसी भी स्थिति में झूठ नहीं बोलना और ना झूठ बोलने वाले का साथ देना तथा सत्य मार्ग पर आगे बढ़ना।
अस्तेय –चोरी नहीं करना, संयम से रहना।
ब्रह्मचर्य –भोग विलास से दूरी बनाना, इंद्रियों को अपने वश में रखना।

अपरिग्रह — भोग से जुड़ी वस्तुओं का त्याग करना, उनके इन सिद्धांतों को पूरा विश्व जानता है और हमारा देश महावीर के सिद्धांतों पर ही टिका हुआ है। हर धर्म, संप्रदायों के लोग भगवान महावीर स्वामी को अपना आदर्श पुरुष, इष्ट देव मानते हैं। इसके अलावा और भी शिक्षाएं भगवान महावीर स्वामी ने बताई।
महावीर नाम–एक समय वर्धमान उज्जैयिनी नगरी के अतिमुक्तक नामक शमशान में ध्यान में विराजमान थे। उन्हें देखकर महादेव नामक रुद्र ने उनके धैर्य और तप की परीक्षा ली। उन्होंने रात्रि के समय अनेक बड़े-बड़े बेतालों का रूप बना कर भयंकर ध्वनि उत्पन्न की, लेकिन वह भगवान को ध्यान से नहीं भटका पाया ,तब अंत में उसने भगवान का महति महावीर यह नाम रखकर अनेक प्रकार से स्तुति की।

केवल्य ज्ञान –छदमस्त अवस्था में बिहार करते हुए भगवान के 12 वर्ष बीत गए थे।एक दिन वे जृम्भिका गांव के समीप ऋजुकूला नदी के किनारे मनोहर वन में सागौन वृक्ष के नीचे पत्थर की सिला पर विराजमान थे। वहीं पर शुक्ल ध्यान के प्रताप से उनके घातिया कर्मों का क्षय होकर वैशाख शुक्ल दशमी के दिन हस्त नक्षत्र में संध्या के समय केवल्य ज्ञान प्राप्त किया। देवों ने आकर ज्ञान कल्याणक उत्सव किया। इंद्र की आज्ञा से धनपति कुबेर ने समोशरण की रचना की। केवल्य ज्ञान होने पर भगवान की देशना नहीं खिरी, क्योंकि वहां पर कोई गणधर नहीं था । इंद्रभूति गणधर जब भगवान के प्रथम शिष्य बने तब जनकल्याणी अर्ध मागधी भाषा में सभी को सुख प्रदान करने वाली दिव्य ध्वनि खिरी और 29 वर्ष 5 माह 20 दिन केवलीकाल रहा। मोक्ष –भगवान महावीर का बिहार बिहार प्रांत में अधिक हुआ। राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर कई बार उनके आने के कथानक मिलते हैं। इस तरह समस्त भारत वर्ष में जैन धर्म का प्रचार- प्रसार करते करते जब उनकी आयु बहुत थोड़ी रह गई ,

तब वे पावापुर आए और योग निरोध कर आत्म ध्यान में लीन हो विराजमान हो गए। वहीं पर उन्होंने सूक्ष्म क्रिया प्रति पाती और व्युपरत क्रिया निवृत्ति नामक शुक्ला ध्यान के द्वारा समस्त अधातिया कर्मों का नाश कर कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन प्रत्यूष बैला प्रातः काल के समय 72 वर्ष की अवस्था में मोक्ष श्री की प्राप्ति हुई। देवों ने आकर निर्वाण क्षेत्र की पूजा की, उनके गुणों की स्तुति की। उसी समय से यह दिन पवित्र माना जाता है। जिस अंधकार को लोग अपावन मानते हैं। उसे अपावन दिन की रात्रि अमावस्या को पावन बनाया भगवान महावीर ने। उसी समय से यह पर्व दीपावली के रूप में मनाया जाता है। लोगों की भ्रांति है कि भगवान महावीर जैन धर्म के संस्थापक हैं, ऐसा नहीं है। जैन धर्म अनादि ,अनंत, शाश्वत धर्म है । इसके कोई भी संस्थापक नहीं। भगवान महावीर स्वामी ने तो जैन धर्म की शरण ली है। आप वर्तमान शासन नायक है और उनके शासन काल में हम सभी रह रहे हैं।

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