updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- संयम और नियम लेने पर हमारे जीवन में किसी प्रकार की बाध्यता नहीं होती, बल्कि यह हमारे जीवन को अनुशासित करते हैं।आत्म अनुशासन का यह अनुपम तरीका हमारे जीवन को सही दिशा प्रदान करता है। इस संसार में किसी के होने या हो ना होने से किसी का कोई भी कार्य नहीं रुकता। किसी व्यक्ति की ऐसी सोच कि मेरे बिना कोई कार्य नहीं होता यह गलत और उस व्यक्ति का भ्रम है। किसी राजा के न होने पर राज्य कभी डूबता नहीं है। अतः हमें अन्य चीजों से कर्ता भाव, ममत्व भाव हटाकर के कर्तव्य बुद्धि रखनी चाहिए।

परिवार के प्रति जो हमारे कर्तव्य हैं, बस उन्हें पूर्ण करने के लिए हम सजग रहें। हमारे मन में कृतज्ञता का भाव ना हो यह भाव हमारे मन में अहंकार को पैदा करता है और यही अहंकार नीच गोत्र के बंध का कारण है। प्रत्येक जीव अपना भाग्य स्वयं लेकर के आता है, अतः वह अपने भाग्य से ही सुख, संपदा आदि प्राप्त करता है। स्वयं का पुण्य ही उसे सब दिलाने में सामर्थ्य होता है अतः यह कहना गलत है कि हम किसी को पाल रहे हैं। उक्त बातें नगर के श्री चंद्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर अरिहंतपुरम में चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।

आपने आगे कहा कि पुत्र – पुत्री ,पत्नी सब अपने भाग्य से ही भोग को भोगते हैं। कम समय, कड़ी मेहनत करने की अपेक्षा यदि नियमित रूप से पुरुषार्थ करें तो वहां सफलता प्राप्त कराने में कार्यकारी होता है। निरंतरता हमें अनुशासित करके संस्कार को प्रगाढ़ता प्रदान करती है। इसी प्रकार एक कथानक मैना सुंदरी का आता है ,जिसमें महिला सुंदरी एक राजकुमारी थी और राजा स्वयं को राजकुमारी का कर्ता मानता था किंतु कर्म पर विश्वास करने वाले कर्ता अकर्ता के विचारों से मुक्त होते हैं। राजकुमारी को अपने पुण्य पर विश्वास था।

इस बात पर क्रोधित होकर राजा ने राजकुमारी की शादी एक कुष्ठ रोगी से कर दी। जिनेंद्र भगवान की आराधना, सिद्ध परमेष्ठि भगवान के महात्मय से और अपने पुरुषार्थ से राजकुमारी मैना सुंदरी ने अपने कुष्ठ रोगी पति को कामदेव सा सुंदर बना लिया। इस प्रकार भक्ति में अनंत शक्ति है। भक्ति की शक्ति से हम वह सब प्राप्त कर सकते हैं जो अचिंत है। कहां है शक्ति नहीं बताओ तो आपको शक्ति कौन दे। भक्ति नहीं बताओ हमको भक्ति आकर कौन दे ऐसे मुनिश्री विनंद सागर जी महाराज ने भक्ति की महिमा बताते हुए आज पूजन, अभिषेक, शांति धारा एवं पूजन पीठिका संबंधी शुद्ध उच्चारण करवाकर भावार्थ बताया।

updatenews247.com धनंजय जाट आष्टा 7746898041- यह सोच लेना कि मुझे यह वस्तु प्राप्त कर लेना है ,जो मेरे लिए सर्वत्र हितकारी है। हमारी विपरीत परिस्थिति में भी मेरे साथ रहे।हम जब विपरीत की तरफ जाते है तो वह हमें सदमार्ग दिखाएं ,दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नही जो हमेशा आपके साथ रहें।संसार मे मात्र तीन व्यक्ति ऐसे है जो हमारा साथ छोड़ने वाले नहीं है। वह हे हमारे देव,शास्त्र और गुरु। यह सदा हमारे साथ नही छोड़ते।तुम भले ही किसी का बुरा चाहो पर तुम्हारे देव, शास्त्र और गुरु तुम्हारा बुरा नही चाहतें हैं। आपको अनुकूल चलाने का प्रयास करने वाले तत्वों से प्रीति करो। देव, शास्त्र और गुरु इसमें आते है।

दुनिया के सारे सम्बंध है वे सब तात्कालिक सम्बन्ध है और देव ,शास्त्र और गुरु के सम्बंध त्रैकालिक संबन्ध है। यह भव -भव तक छूटने वाले नही। बच्चा जब गर्भ में होता है तो मां को बहुत लात मारी है पर मां ने उसके प्रति गलत भाव नही रखें । मां हमेशा लाड़ -प्यार ही किया करती है ,अपने बेटे को यह भव- भव के संस्कार होते है। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्कम्प सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री ने कहा कि दिगम्बर साधु पहले भी रहे है ,पर बहुत संकट झेलते हुए अपनी चर्या का पालन किया।

उनके द्वारा धर्म प्रभावना भी हुई।आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का हम सभी पर बहुत बड़ा उपकार रहा है। उन्हीं के कारण आज जैन धर्म यहां तक आया है और मुनिराज अपनी चर्या का पालन निर्बाध रूप से कर पा रहे है। कभी हमारे जीवन मे घटना -दुर्घटना होती है तो हम पर को दोषी मानते है कि इसने मेरे साथ बुरा भला किया ।हम निमित्त को दोषी मानते है,इसलिए हम सभी दुखी है। हम हर घटना में सामने वाले को दोषी मानने लगते है। मुनिश्री निष्कम्प सागर महाराज ने आगे कहा जबकि किसी की ताकत नही तुम्हारा भला- बुरा कर सकें ,में अपने परिणामों का कर्ता स्वयं हूं और अच्छा बुरा जो भी होता है, वह स्वयं का ही किया गया कर्म है न कि पर का। सती सीता ने भी अपने कर्मो को ही दोष दिया, किसी को दोषी नही माना।

जो हमने पहले कार्य किया था उसका फल आज भोग रहे है। पूर्व जन्म में हमने कुछ अच्छे कार्य किये थे उसी के फल स्वरूप हम आज जिनेंद्र भगवान की शरण में बैठे है। चाहे हम इस छोटी सी जिदंगी में कितना पाप भर ले,पुण्य को जगह न मिले और हम इस जिंदगी में चाहे तो पुण्य से भर ले कि इसमें पाप को रहने की जगह न मिले ।यह सब हमारे परिणामों पर निर्भर करता है। मुनिश्री ने कहा आगम भी यही कहता है की ज्ञान रूपी प्रकाश से जीवन को भर लो ।जैन धर्म मे जन्म लेना महान पुण्य की बात हैं । बन्धुओं इस मानव जीवन को व्यर्थ न गंवाना ,इस छोटी सी जिंदगी में हमें क्या अच्छे काम करना उनकी तरफ ध्येय रखें ।फिजूल के पाप बन्ध वाले कार्यो से सदा ही दूरी बनाये।

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