updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- जो हम संकल्प लेते हैं वह संकल्प अंतरंग में शक्ति प्रदान करता है जिससे हम बड़े से बड़े से लक्ष्य को भी सहजता से प्राप्त कर लेते हैं ।संकल्प एक वृक्ष हैं और विकल्प उसकी शाखाएं हैं,सारे विकल्प संकल्प की धारा पर ही उगते हैं ।दृढ़ संकल्प व्यक्ति अपने आप में मजबूत होता है।परिस्थितियां चाहे कुछ भी हो लेकिन दृढ़ संकल्प हमें उसी कार्य को करने के लिए ही शक्ति प्रदान करता है।जिनेंद्र भगवान के स्मरण मात्र से समस्त प्रकार की पीड़ा दुख दूर हो जाया करते हैं ।जिनेंद्र भगवान के सामने हमें अपनी कोई भी पीड़ा कोई भी दुख कोई भी बात कहने में शर्म नहीं करनी चाहिए।
जैसे बच्चा बोलना नहीं जानता फिर भी वह बोलता है और परिवार के लोगो को उसमें एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है। इसी प्रकार भगवान के सामने भी हमें शर्म नहीं करनी चाहिए।मान कषाय लोगों के सामने शर्म करनी चाहिए जिनेंद्र भगवान के सामने मन की बात कहने से भी हमे आंतरिक संबल प्राप्त होता है ।स्वयं को अल्पज्ञ समझने वाला व्यक्ति ही भगवान की स्तुति कर सकता है।पूर्ण समर्पण भाव से जिनेंद्र भगवान की स्तुति करनी चाहिए। उक्त बातें नगर के श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर अरिहंत पुरम में विराजमान मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।
आपने उदाहरण दिया जैसे एक 35 साल का युवा उसने देखा कि उसकी पत्नी 5 किलोमीटर दूर एक पहाड़ पर चढ़ कर फिर दूसरी तरफ पानी भरने के लिए जाती है ,तब उसने संकल्प लिया कि मैं इस पहाड़ को काटकर और यहां से सहज रास्ता बना दूंगा। आज 25 वर्ष समय उपरांत उस व्यक्ति ने धैर्य पूर्वक कार्य करते हुए उस पहाड़ को काटकर के ऐसा रास्ता बना दिया जो पूरे गांव में समस्त व्यक्तियों के लिए सुगमता पूर्वक जल लाने के लिए रास्ता बन गया। आज उसकी पत्नी नहीं है लेकिन उसने जो अपनी पत्नी के लिए जो संकल्प लिया था उसे संकल्प में चाहे उसे 25 वर्ष का समय लगा, लेकिन उस युवा ने उस कार्य को बहुत धैर्य पूर्वक पूर्ण किया।
इसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में धैर्य ,दृढ़ संकल्प यह ऐसे दो कारक हैं जो उसको लक्ष्य की प्राप्ति करने में सहयोगी होते हैं ।गुरुदेव ने कहा जैसे ही संकल्प करते हैं तो हर विघ्न नष्ट हो जाता है।हमारी इच्छाशक्ति के आगे देव भी नतमस्तक हो जाते हैं, इसी प्रकार दृढ़ संकल्प पूर्वक नियम और संयम का पालन करने वाले स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त करते हैं। गुरुदेव ने कहा कि जब हम वीतरागता का चिंतन करते हैं तो सिद्धि प्राप्त होती है ध्यान करने से रिद्धि प्राप्त होती है पीड़ा दूर करने के लिए सदैव जिनेंद्र भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए। मुनिश्री अभिषेक मंत्र एवं शांतिधारा में बीजमंत्रो का अर्थ बताते हुए शुद्ध उच्चारण करवाया।हमारी इच्छाशक्ति के आगे देव भी नतमस्तक हो जाते है।
updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- कभी-कभी ऐसा लगता है मन में अप्रसन्नता का भाव रहता है। हालांकि किसी ने कुछ कहा नहीं।निराशा की थकान से ऐसा होता है।न जाने क्यों मन आज उदास है।आज न जाने क्यों दर्द न ही कोई बात है फिर भी मन उदास है।हर व्यक्ति चाहता है कि हमें स्वच्छ वायु और अच्छी आक्सीजन मिले ,लेकिन पेड़ कोई लगाना नहीं चाहते। बिना पेड़ के आक्सीजन कहा से मिलेंगी।हर व्यक्ति को गाय पालना चाहिए, ताकि आपको शुद्ध दूध,घी,मावा मिल सकें।आज मिलावट का दूध,पनीर, मावा,घी मिल रहा है। लोग कैसे स्वस्थ रहेंगे। कुछ साधुओं को भी विकल्प रहता है, जबकि विकल्प उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
कर्मों की दशा के कारण कभी अच्छा तो कभी बुरा होता है। आदमी जो चाहता है ,वह उसे भी करना होता है। लेकिन लोग अपेक्षा रखते हैं की मुझे पहले सम्मान मिले,उसे भी पहले सामने वाले को सम्मान देना होगा। जैसा आपने दिया वैसा आपको मिलेगा। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि सभी चाहते हैं कि स्वच्छ वायु, अच्छी आक्सीजन मिले लेकिन पेड़ कोई लगाना नहीं चाहते। बिना पेड़ के आक्सीजन कहा से मिलेंगी। पेड़ सभी को लगाना चाहिए।
बड़ी बड़ी बिल्डिंगें , मकान बना लिए और पेड़ सारे कटवा दिए तो शुद्ध आक्सीजन और पानी कहां से मिलेगा। सीमेंट से मिट्टी अधिक उम्र की है। सीमेंट के मकान की उम्र 40-50 साल रहेगी लेकिन मिट्टी के मकान हजार साल तक टिके रहते हैं। मुनिश्री ने कहा कि आचार्य ज्ञानसागर महाराज की सेवा में आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज लगे रहते थे।मकान बनाएं तो नीम का पेड़ अवश्य लगाएं, आपको शुद्ध आक्सीजन मिलेगी।पूजा पाठ के साथ सभी की रक्षा करना आपका कर्तव्य है। पानी की बचत सभी को करना चाहिए,अधिक पानी नहीं ढोले। खेती के प्रति रुझान कम है। अच्छा खाना चाहते हैं, लेकिन खेती नहीं करना चाहते। खेती की फसल भगवान भरोसे है।
किसानों में बहुत धैर्यता है। मालिक से नहीं नौकर से शादी कर दी, जबकि जो खेती कर रहे हैं वह मालिक है।जिन देशों में खेती नहीं होती थी,वह देश अपने देश से सीखकर खेती कर रहे हैं।जहर के रूप में मावा दे रहे हैं। आज शुद्ध दूध, दही,मावा व घी नहीं मिल रहा है।स्वस्थ रहना है तो थोडा कम खाएं, परहेज करें फास्ट फूड आदि से। संयमी व्यक्ति की तरह जिंदगी व्यतीत करें।समय पर शरीर को भोजन दें। भोजन व स्कूल का सिस्टम बदल गया। मन में विकृतियां नहीं आना चाहिए। रत्नात्रय की शुद्धि शरीर में आ जाएं वहीं नवधा भक्ति व शुद्धि आवश्यक है। मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कहा आगम के अनुसार साधु को चलना चाहिए।
शुद्ध भोजन बनाकर आप लोगों को भी भोजन करना चाहिए। कोई भी साधु या श्रावक आएं तो उन्हें शुद्ध भोजन कराएं। व्यक्ति को अमर्यादित भोजन नहीं करना चाहिए। आगम को आगम व सत्य को सत्य कहें। साधु किसी को बाहर जाने की अनुमति नहीं देते।आप अपने विवेक से काम करें। साधु का सबसे पहले अहिंसा व्रत है। श्रावक और साधु में अंतर है। भगवान और भक्त में अंतर है। आप धर्म और पुण्यार्जन करने का उद्देश्य रखते हैं। विवेक और आगम पूर्वक क्रिया करें। गलत को गलत कहें।पाप और मिथ्यात्व से बचें।जिस प्रकार बच्चे को गलती पर डांटते हैं और समझाते हैं,उसी प्रकार साधु को भी गलती पर बताएं। धर्म शांति के लिए है। तुष्टिकरण की नीति हमसे नहीं बनती है।