updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- शरद पूर्णिमा पर्व- हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 16 अक्टूबर को रात 8 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी और 17 अक्टूबर शाम 4 बजकर 50 मिनट पर खत्म होगी। शरद पूर्णिमा का व्रत जो लोग रखते हैं वह 16 अक्‍टूबर को रखा जाएगा और रात को खीर भी 16 को ही रखी जाएगी। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा का विधान है। इस दिन चंद्रोदय शाम को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर होगा।

शास्त्रोक्त तर्क- शरदपूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार को मनाया जाएगा । कोजागरी पूर्णिमा के लिए रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा होना अति आवश्यक होता है। इसलिए पूर्णिमा 16 अगस्त को मनाई जाएगी। वहीं 17 अक्टूबर को स्नान और दान की पूर्णिमा है। इस दिन उदयातिथि पर स्नान और दान करना शुभ रहेगा। लेकिन पूर्णिमा 16 अक्टूबर को ही मनाया जाना शुभ है। पंचांग के अनुसार 16 अक्टूबर की सुबह पूर्णिमा तिथि नहीं रहेगी, इसलिए शरद पूर्णिमा से जुड़े सुबह किए जाने वाले स्नान और दान 17 तारीख को कर सकते हैं। इसके बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भक्ति का अर्थ है जुड़ना, किससे जुड़ना, क्यों जुड़ना ,कैसे जुड़ना ,यह सब आपको विवेक और ज्ञान होना आवश्यक है ।भक्ति के माध्यम से अपने आराध्य से जुड़ना ,प्रभु से तीर्थंकर भगवंतों से जुड़ना,वंदे तदगुनलब्धये कहते हुए जुडो ओर भावना भावों की यह भाए की प्रभु जो गुण आपके अंदर है वे गुण मेरे अंदर भी प्रवेश करें।सती सीता जैसे जुड़े ,किस तरह की भक्ति उन्होंने की। सीता भी आपकी तरह स्त्री थी, सीता की परीक्षा की घड़ी के सामने अग्नि कुंड दिखाई दे रहा है, पूरे जीवन भर उन्होंने धर्म -ध्यान किया। विपाक विचय धर्म- ध्यान किया ,उन्होंने प्रथमोयोग को पड़ा ।करो सीता की सोलह भव की व्यथा, पडो तो कर्म सिद्धांत समझ मे आ जायेगा सीता ने अपने कर्मो को दोष दिया।

रावण को नही ,राम को नही ,अपने कर्मो को दोषी मानते हुए महासती ने परीक्षा की घड़ी को स्वीकार किया और अग्निकुंड में छलांग लगा दी थी। अग्नि शांत होकर शीतल सरोवर बन गया। भावों, परिणामों को संभालें।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के अवतरण दिवस के लिए तीन दिवसीय पंच परमेष्ठी विधान के पहले दिन आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा सीता,मैना सुंदरी आदि महासती थी । सीता ने अग्नि परीक्षा के दौरान कहा मेरे जीवन मे यदि मेरे मानस पटल पर किसी पर पुरुष के प्रति भाव आ गए हो तो यह अग्नि मुझे नष्ट कर दे, ऐसे अपने सतीत्व की परीक्षा दी सीता ने।

सांसारिक वांछाओं को लेकर कभी किसी से नही जुड़ना नही तो सारी भक्ति बेकार जायेगी । मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा परम पद में जो स्थित होते है वे पंचपरमेष्ठी होते है । यह पारलौकिक शब्द है, यह मंत्र आपको बचपन से ही दिया गया है। महामंत्र है अरिहंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो ,आचार्यो को नमस्कार हो, उपाध्याय गणों को नमस्कार हो और सर्व साधु गणों को नमस्कार किया गया है।जिन्होंने चार घातियां कर्म नष्ट कर दिया है ,उन्हें अरिहंत परमेष्ठी की संज्ञा दी गई है ।जो ज्ञान रूपी लक्ष्मी को प्राप्त करते है वह चार उंगल ऊपर बैठते है।जो ऊर्ध्व लोक के अग्र भाग पर विराजमान है वे सिद्ध कहलाते है।जो शिष्यों को दीक्षित शिक्षित करते है वे आचार्य कहलाते है। श्रावकों को पठन पाठन करवाते है।

रत्नत्रय से जो अपने आपको पालन कर ते हुए सभी को रत्नात्रय का उपदेश देते है।भावना भव नाशिनी ओर भावना भव वर्धिनी होती है।मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा प्रभु के जीवन को अपना दर्पण बनाएं। कहीं हम बगला भगत तो नहीं।आप पंच परमेष्ठी से कितने जुड़े हों। महिलाओं से कहा सीता को उतारों जीवन में। सीता भी अपना कल्याण कर सिद्धत्व को प्राप्त करेंगी। अच्छा था सीता,मैना सुंदरी के जमाने में मोबाइल नहीं था।आज सारा सामांजस्य समाप्त हो गया है।एक ही कमरे में पिता, पुत्र, पुत्रियां, पत्नी कमरे में अपने -अपने मोबाइल को चलाते हैं। आज आत्मा की अवनति हो रही है। बच्चों को संस्कार देवें।कब सीता को जीवन में उतारोगे।भक्ति सीता से सीखों।हमें अपना वर्तमान संभाले, परिणामों को संभालें। गुरु एवं प्रभु भक्ति का अवसर मिले तो पीछे नहीं रहे।

मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कहा मंदिर और डॉक्टर के पास एकाग्रता से बात करें अर्थात काम की बात करें, फालतू बातें दोनों जगह नहीं करें। आत्मा से अंदर से प्रफुल्लित भाव से भगवान की भक्ति, स्तुति होना चाहिए, घुटने के दर्द का अहसास नहीं होना चाहिए।मोक्ष फल की प्राप्ति सच्चे दिल से आराधना करने पर होगी। पंडित दोलतराम जी के भजन को गाए, फालतू भजन नहीं गाना चाहिए, मिथ्यात्व देवी देवता के संगीत बजाते हैं,यह गलत है। अपने शब्द,लह आदि नहीं कह सकते। भगवान की भक्ति गलत गीतों से थिरकने पर नहीं। फूहड़ता, मंदिर को बॉलीवुड बना लिया है। यह गलत है। पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कहा संसार के हिसाब से नहीं धर्म और आगम के अनुसार चलें।तेज साउंड, फूहड़ संगीत नहीं बजाना चाहिए।

आत्म साधना के लिए आएं हैं,मोक्ष प्राप्ति, आत्म कल्याण लक्ष्य है। साधु की साधना में बाधा नहीं डालना चाहिए।अच्छे कार्य में मोन नहीं रहना चाहिए, समय पर बोलना चाहिए,चाहे समाज का मामला हो या घर का।डाल से छूटा बंदर और आषाढ़ से छूटा किसान किसी काम का नहीं रहता है। तीन दिवसीय कार्यक्रम में ध्वजारोहण का लाभ अखिल भारतीय पुलक जन चेतना मंच को प्राप्त हुआ। पांच परमेष्ठी विधान में 143 अर्ध्य चढ़ाए गए।कौन बनेगा प्रज्ञा शिरोमणि कार्यक्रम होगा आज-तीन दिवसीय आयोजन की अभिनव छटा में बुधवार 16 अक्टूबर को सुबह 6:30 बजे अभिषेक ,शांति धारा एवं आचार्य छत्तीसी महामंडल विधान ,संगीतमय पूजा-अर्चना ,36 मंडलीय विधान- पूजन, छत्तीस पुण्यर्जकों परिवार को विधान पूजन करने का परम सौभाग्य प्राप्त होगा। शाम 6 बजे गुरु भक्ति ,शाम 7:30 बजे विद्योदय समूह भारत का लोकप्रिय कार्यक्रम कौन बनेगा प्रज्ञा शिरोमणि आयोजन किया गया है।

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