updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भगवान की भक्ति का मन बनाते हैं, लेकिन कर्म बाधा डाल रहे हैं।आप लोग भविष्य की चिंता नहीं करते हैं। संसारी काम में लगे रहते हो, इसलिए वैराग्य नहीं आ रहा है आप लोगों को।एक रागी और एक बैरागी, सच्चा सुख बैरागी को है रागी को नहीं। अनादिकाल से संसार में उलझे हुए हैं ।संसारी प्राणी जहां रहता है, वहीं अच्छा लगता है।अनादिकाल से संसार में फंसे हुए हो और आगे भी फंस सकते हो। अच्छी संगति और भगवान की आकर्षक प्रतिमाएं हैं और गुरुओं का सानिध्य प्राप्त हो रहा फिर भी आत्म कल्याण नहीं कर रहे हो।

अपने भावों में लघुता लाएं। जिनेंद्र भगवान की भक्ति, पूजा, अर्चना, आराधना करों।अगर भगवान की आराधना नहीं की तो नरक में जाना निश्चित है। आपके आचरण पर निर्भर है कि आपको स्वर्ग जाना है या नरक। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।आपने कहा कि प्रकृति में जिसने जन्म लिया उसका मरण सुनिश्चित है। कोई भी अमर जड़ी -बूटी खाकर नहीं आया। तीर्थंकर अपने स्वभाव में नहीं आते जब तक उपसर्ग आते हैं।

पूर्व भव में किए गए कर्मों का फल सभी को भोगना ही पड़ता है। मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आगे कहा भगवान की भक्ति में हमेशा लीन रहो। जिसने अपने जीवन में नित्य सामायिक किया है, उसकी गति सुधरेगी। णमोकार महामंत्र कि जाप करते रहे।पंच परमेष्ठी की शरण हो तो अंतिम समय में काम आएगा। णमोकार महामंत्र पर श्रद्धान नहीं किया तो अंतिम समय में यह काम नहीं आता है। अंतिम लक्ष्य सिद्धत्व की प्राप्ति हो।जो लोग कर्तव्यों से निवृत्त हो गए हैं उन्हें भवन की ओर नहीं वन की ओर जाना चाहिए। अर्थात आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो।सुख भोग लिया,अब आत्म कल्याण करें।

पार्श्वनाथ भगवान पर आठ दिनों तक कमठ के जीव ने भयंकर उपसर्ग किया। भगवान तो समता, क्षमता के धनी थे वह तो ध्यान में लीन थे। वह चाहते तो कमठ को एक पल में पटक देते, लेकिन उन्होंने अपना ध्यान नहीं तोड़ा।कभी भी मित्र से चोरी, गुरु से छल- कपट नहीं करना चाहिए,गुरु के साथ छल -कपट करने वाले का बहुत ही बुरा हश्र होता है। सभी मंत्रों में णमोकार महामंत्र सर्वश्रेष्ठ है।जैन धर्म की आचार्य श्री ने प्रभावना की। धर्म के साथ मायाचारी नहीं करें। नगद दान महादान।गुना के लोगों पर आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज का बहुत प्रभाव था।अल्प समय वहां रुके थे। लेकिन आज भी वहां का पूरा समाज आज भी याद करता है।

श्री सांवला को आचार्य भगवंत का चित्र सौंपा
विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुकमचंद सांवला अचानक श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर पहुंचे और वहां चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज,निष्प्रह सागर महाराज,निष्कंप सागर महाराज एवं निष्काम सागर महाराज से भेंट कर आशीर्वाद व मार्गदर्शन प्राप्त किया। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने श्री सांवला को आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज का आकर्षक फोटो फ्रेम भेंट किया।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041– श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर अरिहंत पुरम अलीपुर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने दान की व्याख्या बताते हुए कहा कि जो दान बिना अपेक्षा के दिया जाता है ,बिना किसी आकांक्षा के दिया जाता है वह दान दान है। जबकि मान -सम्मान की इच्छा रखकर किया गया दान दान नहीं वह तो सौदा है। जब हम एक हाथ से दान करें और दूसरे हाथ को पता ना चले ,वही दान है। वही स्वहित का कारण होता है ।दान चार प्रकार का होता है आहार दान, औषधि दान ,अभय दान और ज्ञान दान।

मुनिश्री ने कहा जब हम उत्तम पात्र ,मध्यम पात्र और जघन्य पात्र तीन प्रकार के पात्र होते हैं इन पात्रों को जब हम मोक्ष मार्ग में निरंतर बढ़ते हुए मोक्ष सुख की प्राप्ति का भाव रखते हुए आहार करते हैं तो वहां आहार दान है ।इसी प्रकार स्वास्थ्य लाभ हेतु जो औषधि दान दी जाती है वह औषधि दान है एवं किसी जीव को निर्भय करना उसके भय का निवारण करना अभय दान है। ज्ञान दान यह मुनिराज का विषय है। मणिराज निरंतर अपने ज्ञान का दान करके परोपकार की भावना से पर को स्वहित का कल्याण का मार्ग बताते हैं यह ज्ञान दान है।

मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने इसी प्रकार संसार में मित्र की व्याख्या करते हुए कहा कि वह जो हमें पाप करने से रोके और स्वहित के कार्यों में संलग्न कारण वह हमारा मित्र है। इस संसार में मित्र बहुत सोच समझकर बनाना चाहिए। यहां पर जो प्राणी के पास होता है वह वही देता है ।जैसे अगर हम अधर्मी के पास बैठे तो वह अधर्म की ही बात करेगा ,कोई दयालु है तो वह दया की बात करेगा ।कोई धनी है तो वह धन की बात करेगा ।इसी प्रकार जिसके पास जो होगा वह वही देता है। सबसे बड़ा आभूषण हमारा शील व्रत है। शीलवती नारी पतिव्रता होती है।

शील धर्म अंगीकार करने वाले मनुष्य को सब पसंद करते हैं ।इसी प्रकार शील का धारी मनुष्य ही सबसे सुंदर होता है ।अपने व्रत पालन में अपने शील धर्म की रक्षा के लिए अगर उसे आवश्यकता होती है तो देव आकर के उसकी रक्षा कार्य किया करते हैं। लेकिन आजकल समय विपरीत है, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव अत्याधिक है। इस समय नारी अपनी शक्ति को शील धर्म को ना पहचानते हुए पति के अलावा अन्य पुरुष वर्ग को अपना सौंदर्य बताने का प्रयास करती हैं और उनको आकर्षित करने का प्रयास करती हैं, यह भाव अत्याधिक दुख देने वाला है।

इस भाव से ऐसे कर्मों का आश्रव होता है जो हमें अत्याधिक पीड़ा प्रदान करता है। इसलिए अपना सौंदर्य शील धर्म ही है, अपने पति को ही आकर्षित करने के लिए सुंदर दिखना चाहिए। श्री भक्तांबर महाकाव्य के 48 दिवसीय भक्तांबर विधान में प्रत्येक श्लोक का जो भावार्थ मुनि श्री ने बताया। प्रत्येक काव्य एक मंत्र रूप है ,बीज मंत्र रूप है और यह अत्याधिक प्रभावशाली है। हम आने वाले समय में प्रत्येक काव्य की क्या-क्या प्रभाव हैं, 5 काव्य का प्रतिदिन विशेष प्रभाव को बताने का प्रयास करेंगे।मुनिश्री विनंद सागर जी महाराज की आज की आहार चर्या का सौभाग्य अजय जैन अंगोत्री एवं परिवार को पढ़गाहन कर नवधा भक्ति पूर्वक कराने का प्राप्त हुआ।

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