updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- हिंदू सनातन धर्म का मुख्य पर्व शारदीय नवरात्र का प्रारंभ गुरुवार से प्रारंभ हो गया है।इस बार मातारानी पालकी पर सवार होकर आई हैं।भक्तगणों ने गुरुवार के शुभ मुहूर्त में चल प्रतिमा का मंगल जुलूस शर्मा हार्डवेयर कालोनी चौराहा से प्रारंभ किया कर सम्पूर्ण गंज क्षैत्र में निकालकर सिद्ध पीपल चौक कुम्हार पूरा भाऊ बाबा मंदिर के आनंद उत्साह एवं आतिशबाजियों के साथ नगरपालिका में विधायक प्रतिनिधि रायसिंह मेवाड़ा व नगरवासियों की उपस्थिति में पहुंचा चल प्रतिमा के साथ घट स्थापना कर शारदीय नवरात्र का विधिवत। स्थापना कार्य प्रारंभ किया।

नवरात्रि के प्रथम दिवस मातारानी के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का विधि विधान के साथ नगरपुरोहित पंडित मयूर पाठक, मनीष पाठक, दीपेश पाठक ने वेदिक पुजन संपन्न कर कलश स्थापना एवं व्रत का संकल्प भक्तो को दिलाया। निकाली गई शोभायात्रा- घट स्थापना के पूर्व मातारानी के भक्तो के द्वारा चल प्रतिमा की शोभायात्रा शर्मा हार्डवेयर कालोनी चौराहा से प्रारंभ कर सम्पूर्ण गंज क्षेत्र में निकालकर सिद्ध पीपल चौक कुम्हार पूरा लाया गया जहां पर चल प्रतिमा को स्थापित किया गया। युवा थिरकते नजर आए- मातारानी की शोभायात्रा में युवा वर्ग बड़ा ही उत्साहित था डोल की थाप पर युवागण उत्साह के साथ नृत्य कर मातारानी के जयघोष के साथ चल रहे थे जो आकर्षण के केंद्र थे।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भगवान की भक्ति उत्साह , उमंग और रोमांचित होकर नित्य ही करें। रिकार्ड तोड़ने के लिए ही बनते हैं। आपकी आत्मा है उसका कल्याण करें। संसार के चक्कर से ऊपर उठना चाहिए। यह संसारी भाव संसार में अटकाने वाले हैं, उस भाव पर ध्यान कब जाएगा जिसके लिए मनुष्य पर्याय मिली है। गुरुदेव के एक एक शब्द हमें अपने लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। दुर्लभ है गुरुदेव का खास बनना। प्रभु आप संसार से ऊपर उठ गए और हम संसार में उलझे हुए हैं। हम अपनी क्षमता को पहचान रहे हैं। आप भी अनादिकाल से कोल्हू के बैल की तरह जहां खड़े हैं वहीं खड़े हैं। प्रत्येक व्यक्ति को दिन में दो बार प्रतिक्रमण – स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि दास बनने की आस रखें। भगवान की मन लगाकर अच्छी तरह से भक्ति करें। भगवान के गुणों की भक्ति करें। सम्यकत्व प्राप्ति हो ऐसी भक्ति करें। दस नहीं एक पूजा करो, लेकिन भक्ति के साथ करों, तभी भगवान की भक्ति का आनंद आएगा। संसार की मायाचारी में उलझे हुए हैं आप लोग। मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा जिनेंद्र प्रभु की अदभुत छटा है, जिनेंद्र भगवान के भावों को पकड़ने का प्रयास करें। सौ धर्म इंद्र इतना पुण्य करता है कि वह एक भव अवतारी होता है।

भक्ति बहुत ही अच्छी करें। मुनिश्री ने एक पुलिस वाले का वृतांत सुनाया कि एक भक्त आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के दर्शन करने के लिए जाना चाहता था लेकिन पुलिस वाले ने जाने नहीं दिया, जब वह बार-बार जाने का कहने लगा तो पुलिस वाले ने कहा धरती के भगवान आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज भगवान के दर्शन कर रहे हैं,इस लिए आप अभी दर्शन नहीं कर सकते हैं। ड्यूटी कर रहे पुलिस कर्मी ने एक भक्त को दर्शन करने से रोका,यह उसका दायित्व था।हम भी आचार्य भगवंत के आहार आदि के समय लोगों को रोकते थे।जब मानतुंगाचार्य स्वामी की भक्ति से हथकड़ी की कड़ियां टूट सकती है तो आप लोगों के कर्मों की कड़ियां प्रभु भक्ति से क्यों नहीं टूट सकती है।

थोड़ी देर के लिए हम भी पुलिस वाले जैसे बनकर आचार्य भगवंत विद्या सागर महाराज के लिए व्यवस्था बनाते थे।अपने आदर्शों पर चले। लोग कहते हैं मरने का समय नहीं लेकिन आयु कर्म पूर्ण होते ही हर व्यक्ति को मरना है। प्रतिक्रमण नित्य करना चाहिए। अपने किए हुए दोषों और पापों का क्षय होता है। झूठ बोलने की मशीन मोबाइल आज लोगों के हाथों में है। अपने धर्म के प्रति ईमानदार बने। भारी नहीं हल्के बनों,भारी नीचे की ओर जाते हैं, हल्के लोग ऊपर जाते हैं। सुबह-शाम पापों को क्षय करने के लिए प्रतिक्रमण करें। प्रतिदिन प्रतिक्रमण कर पापों का क्षय करें। प्रभु से प्रार्थना करें कि आपके गुणों की प्राप्ति हेतु आपकी भक्ति कर रहा हूं। जब भी मेरे जीवन का अंत हो सामने एक संत हो और होंठों पर आपका नाम हो तथा समाधि मरण हो।

updatenews247.com धंनजय जाट सीहोर 7746898041- मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के सलकनुपर के पास, एक हजार फीट उंचे विन्ध्यापार्वत पर, माता विजयासन देवी का मंदिर है। यह देश के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है। पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं। जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध कर सृष्टि की रक्षा की थी। रक्तबीज का संहार कर विजय पाने पर देवताओं ने यहाँ माता को जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ, और माता का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।

एक किवदंति यह भी प्रचलित है कि लगभग 300 साल पहले बंजारे अपने पशुओं के साथ जब इस स्थान पर विश्राम करने के लिए रुके तब अचानक उनके सारे पशु गायब हो गए। बहुत ढूंढने के बाद भी पशु नहीं मिले। तभी एक बुर्जुग बंजारे को एक बालिका दिखाई दी। उस बुजुर्ग ने उस बालिका से पशुओं के बारे में पूछा तो उसने कहा कि, इस स्थान पर पूजा-अर्चना कीजिए आपको सारे पशु वापस मिल जाएंगे। और हुआ भी वैसा ही। अपने खोए हुए पशु वापस मिलने पर बंजरों ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया।

तभी से यह यह स्थल शक्ति पीठ के रूप में स्थापित हो गया। देशभर से हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन माता विजयासन के दर्शन एवं पूजा अर्चना के लिए आते हैं। नवरात्रि में यहाँ विशाल मेला लगता है। शारदीय नवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। यह भोपाल से 75 किलोमीटर दूर सीहोर जिले के सलकनपुर नामक गांव के में स्थित है। मंदिर परिसर तक रोप वे और सड़क मार्ग के साथ ही सीढ़ी मार्ग से भी जाया जा सकता है। मंदिर परिसर तक लगभग 1400 सौ सीढ़ियाँ हैं।

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