updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- मां नेवज नदी के उद्गम स्थल व पुरातात्विक धरोहर देवांचल धाम देवबड़ला बिलपान में अश्वनी अमावस्या पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवबड़ला पहुंचे। मंदिर समिति के अध्यक्ष श्री ओंकार सिंह भगत जी व कुंवर विजेन्द्र सिंह भाटी ने बताया यू तो हमेशा ही भक्तों का आना जाना लगा रहता है लेकिन इस बार अमावस्या पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने मां नेवज के पवित्र जान से स्नान कर बाबा विल्वेश्वर महादेव की पूजा अर्चना कर क्षेत्र की सुख शांति के लिए मंगलकामनाएं की एवं पुरातत्व विभाग द्वारा निर्मित किए गए
दो मंदिरों को निहारते हुए अपने आप को भाग्यशाली महसूस करते हुए सेल्फी लेते हुए खशहाल नजर आए। आश्विन माह की अमावस्या को ही सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि करना चाहिए। दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यह अनुष्ठान किया जाता है। हर साल श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण किया जाता है। इस अमावस्या को पितृमोक्ष अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या, अश्विनी अमावस्या, भुतडी अमावस्या भी कहा जाता है।
updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- अपने हौसले बुलंद रखो, सत्य और ईमानदारी के मार्ग पर अकेले चलते रहो। एक दिन तुम्हें तुम्हारा मुकाम मिल जाएगा। और काफिला खुद अपने आप बन जाएगा। क्योंकि जिस पर यह जग हंसा है, उसी ने इतिहास रचा है। उक्त बहुत ही प्रेरणादाई विचार श्री राम मंदिर सोमवंशीय क्षत्रीय समाज सुभाष चौक पर चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन व्यास पीठ से सुप्रसिद्ध भागवत कथाकार मिट्ठूपुरा सरकार द्वारा व्यक्त किए गए। कथा से पूर्व मुख्य परीक्षित डॉक्टर ओमप्रकाश श्रीमती पुष्पा पिपलोदिया द्वार
महाराज श्री का साफा श्रीफल भेंटकर सम्मान किया।आगे महाराज श्री द्वारा भगवान श्री कृष्णा की समस्त बाल लीलाओं वर्णन किया। भगवान लगभग 11 वर्ष की आयु तक वृंदावन में रहे। यहीं पर भगवान ने माखन चोरी, गोचरण, यमला अर्जुन का उद्धार, कालिया नाग के मान मर्दन,गोवर्धन पूजा, रासलीला, गोपी गीत, आदि समस्त लीलाएं की। इसके बाद भगवान कंस के बुलाने पर मथुरा चले गए ।वही पर भगवान ने दैत्यराज कंस का वध किया। कंस को मार कर महाराज उग्रसेन जी को मथुरा का राजा बनाया। और स्वयं शिक्षा ग्रहण करने के लिए उज्जैन आए
सांदीपनि आश्रम में अपने बड़े भाई बलराम और सुदामा जी के साथ अल्प समय में ही सारी शिक्षा प्राप्त की। गुरु ग्रह पढ़न गए रघुराई। अल्पकाल विद्या सब पाई। 14 वर्ष तक भगवान मथुरा में रहे, और इसके बाद समुद्र के किनारे द्वारकापुरी नगरी बसाई, और जीवन के अंतिम काल 100 वर्ष भगवान द्वारिका में ही रहे। इस प्रकार भगवान इस धरा धाम पर 125 वर्ष रहे। इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में पितरों की प्रसन्नता के लिए क्या करना चाहिए, किस विधान से करना चाहिए। जिससे कि हमारे पूर्वज प्रसन्न रहे।
और हम अपने मातृ ,पितृ ऋण से मुक्त हो सके, पितृ दोष का निवारण हो सके। श्राद्ध करने का फल क्या है। और श्राद्ध का अधिकारी कौन है। आदि सभी बातों को बड़े ही विस्तार सुनाया। कल कथा में भगवान श्री कृष्णा रुक्मणी जी का विवाह संपन्न कराया जाएगा। पप्पू भैया ठाकुर झरखेडी परिवार द्वारा महाराज श्री का साल साफा श्रीफल देकर आत्मीय स्वागत किया ।आज कथा श्रवण करने हेतु डॉ मीना सिंगी, महेंद्र सिंह ठाकुर, अशोक खत्री, गोलू खत्री, सुनील बागवान, ताराचंद मेवाड़ा, राजेंद्र सिंह, दिनेश डोंगरे, सुरेश भैया, श्रीमती शिवानी नितिन महाकाल, श्रीमती ललित ठाकुर,सहित बड़ी संख्या में माता बहनों ने कथा का रसपान किया।