updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- गत दिवस पूज्य आचार्य विश्वरत्न सागर जी गुरुदेव की पावन निश्रा में नवरत्न परिवार का राष्ट्रीय अधिवेशन जयपुर में संपन्न हुआ। राष्ट्रीय अधिवेशन में विभिन्न प्रांतों की 250 शाखाओं के पदाधिकारी एवं हजारों शिष्य पधारे थे, कार्यक्रम का विधिवत प्रारंभ मंगलाचरण एवम पूज्य गुरुदेव नवरत्न सागर जी के चित्र अनावरण के साथ प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम में पूज्य गुरुदेव नवरत्न सागर के कृपा पात्र शिष्य आचार्य विश्वरात्न सागर जी की महती उपस्थिति में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा की गई, घोषणा में गुरुदेव का वरद हस्त आष्टा के ऊपर रहा।

इसी तारतम्य में नवरत्न परिवार के संस्थापक आष्टा श्री संघ के ऊर्जावान अध्यक्ष पवन जी सुराना एवं पूर्व राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पंकज जी गोखरू (नाकोड़ा) को राष्ट्रीय सलाकार बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया‌। वही मध्य प्रदेश सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में प्रियांश सुराना की नियुक्ति हुई, साथ ही अंकित वोहरा को नवरत्न परिवार आष्टा के अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी दी गई। कार्यक्रम के अंत में सभी पधारे हुए अतिथियों का आभार राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश जी जैन डग द्वारा व्यक्त किया गया। नवरत्न परिवार में राष्ट्रीय स्तर पर नगर के सामाजिक सदस्य की नियुक्ति पर समाजजनों ने हर्ष व्यक्त करते हुए सभी नवनियुक्त पदाधिकारियों को बधाई दी है, बधाई देने वालों में प्रमुख रूप से चारो सामाजिक संस्थाओं के प्रमुख श्री पारसमल सिंघी, नगीनजी वोहरा, लोकेंद्र जी बनवट, नगीन जी सिंघी, नंदकिशोर जी वोहरा आदि रहे।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- आपका विभाव कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। आप विभाव को दूर कर सकते हैं। संसार समुद्र मगरमच्छों से भरा पड़ा है। इससे पार हो सकतें हैं,कौन साहसी है जो इस समुद्र को पार कर सकता है।आठ कर्म आपको संसार में रोके हुए हैं। प्रभु का स्मरण और प्रभु भक्ति से संसार पार हो जाएंगे।विकार रुपी मगरमच्छ को पुरुषार्थ से दूर करें।मन में राग- द्वेष जब तक है,आपका कल्याण नहीं होगा। भगवान के चरणों में जाओगे तो राग -द्वेष दूर हो जाएंगे। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं

नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं । आपने कहा कि अश्रद्धान के कारण आपकी नैय्या डूब जाती है। सभी को अपने कर्म है उनका फल तो भोगना पड़ेगा। आत्मा में उपादान हो जाएं तो आप दूसरे को दोष नहीं दोगे।बाहर का डूबना और तैरना आता है लेकिन अंदर का डूबना जरूरी है। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा अगर संसार रूपी नैय्या पार करना है तो प्रभु की शरण में जाना चाहिए। किसी के प्रति गलत भाव है उसे दूर कर अच्छे भाव लाकर। उत्तम क्षमा करें अपनी गलतियों को स्वीकार करे। कि पार्श्वनाथ भगवान की आराधना एवं स्मरण कल्याण मंत्र स्तोत्र पाठ के माध्यम से कर रहे हैं।

अंतरंग के परिणामों को संभालें। किसी के पास जाने पर अंदर के परिणाम निर्मल हो जाएं तो समझें आप अच्छे मार्ग पर अग्रसर हो रहें हैं। वैभव भी दिखाना पड़ता है। भगवान को यथा स्थान देवें,पूजन का फल निर्वाण है। राजा श्रेणिक और चेलना का वृतांत मुनिश्री ने सुनाया। शब्द हितकारी और अहितकारी होता है। मुनि राज ने राजा श्रेणिक से कहा जो आंखों से देखा जाता है वह सही नहीं होता है । सम्यकदृष्टि जीव हमेशा अपने इष्ट का स्मरण करते हैं। अनंत गुणी कर्मों की निर्जरा प्रारंभ हो जाएगी।हम उन गुरुओं के शिष्य हैं जो न तो वस्त्र से मौह रखते हैं और न हीं भोजन से, आपको गर्व होना चाहिए। आप इतना लायक बच्चों को बनाते हैं कि वह बड़ा होकर आपको नालायक समझने लगता है।

प्रभु के स्मरण करने से सहज ही पाप शांत हो जाते हैं। गंगा नदी की तरह भगवान की भक्ति करें। सीमा में बांधकर भगवान की भक्ति न करें, असीमित भक्ति भगवान की करें। नदी और सागर का ह्रदय बहुत बड़ा होता है वह सभी के कचरे को समेट लेती है। और समुद्र सभी नदियों को मिला लेता है। जैन दर्शन कहता है भक्त ही भगवान बनता है। मां बच्चे की प्रथम गुरु और प्रथम पाठशाला है।पाप असीमित और पुण्य करते हैं सीमित। पुण्य में वृद्धि चाहते हो तो धर्म के काम में सीमा नहीं रखें। भारत देश में गरीबी कम नहीं हुई है। राजस्थान में एक गांव ऐसा जिन्हें यह पता नहीं कि आज दीपावली है। ऐसे लोगों को मिठाई खिलाकर उनके चेहरे पर मुस्कान ला दे। अनुपयोगी वस्त्रों को गरीबों को देवें।वोट मांगने नेता आता है,नोट लेने वाले आते हैं और जैन संत आपकी खोट लेने के लिए आते हैं। भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण महोत्सव बहुत ही उत्साह पूर्वक मनाएंगे। धर्म की क्रिया असीमित नहीं करें।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- हम आपस में एक-दूसरे को गलतियां और सही बातें नहीं बताएंगे तो गुणों में वृद्धि कैसे होगी और गलतियों में सुधार कैसे होगा। गुणों को बढ़ाकर ही महापुरुष बनते हैं।मन,वचन और काया की शुद्धता रहेंगी तो ही मंदिर में भगवान की आराधना करोंगे,मन को मंदिर बनाएं। मंदिर जैसी शुद्धता अपने मन में आना चाहिए।घर – बाहर अन्य स्थानों के विवाद मंदिर में नहीं लाएं। चिकित्सा और शिक्षा का क्षेत्र सेवा का क्षेत्र है,कमाई का नहीं। लेकिन आज अधिकांश लोगों ने इसे कमाई का क्षेत्र बना लिया है। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर

चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा भगवान की चमक के आगे हीरा, मोती व रत्नों से जड़ित मुकुट भी फीके नजर आते हैं।इन सभी की चमक भगवान की चमक के कारण नजर आती है। समोशरण में कितनी ही सौंदर्यता हो, लेकिन सम्यकदृष्टि जीव की नजरें भगवान की प्रतिमा से नहीं हटती हैं, क्योंकि उनसे अधिक सौंदर्य कुछ भी नहीं है। सबसे उत्तम से उत्तम वस्तु से भगवान बने हैं। भगवान ने जगत का कल्याण किया। मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कहा कि हम अच्छी से अच्छी क्वालिटी का अनाज,फल – फ्रूट आदि उत्पन्न करते हैं, लेकिन स्वयं उत्पन्न करने वाला उत्तम क्वालिटी का बीज व फल विदेशों को भेज देते हैं, जो गलत है।

जितना व्यवस्थित द्रव्य का उपयोग अर्थात सेवन करेंगे,उतने ही शुद्ध भाव अपने मन में उत्पन्न होते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में आज स्थिति यह है कि जितने टापर्स विधार्थी रहते हैं उन्हें अमेरिका और जर्मन वाले पढ़ाई के दौरान ही संपर्क कर उठा लेते हैं। देश के क्रीम को विदेश ले जाते हैं और छाछ हमारे पास रह जाती है। आज बच्चों को वैसिक ज्ञान नहीं।आज के बच्चे हिंदी के अंकों को नहीं जानते हैं।आज पढ़ाई का उद्देश्य क्या है, पैसा कमा रहे है। चिकित्सक और शिक्षा का क्षेत्र सेवा का क्षेत्र है,कमाई का नहीं। डॉक्टर बनों तो गरीब को निःशुल्क सेवाएं दोगे तो आपकी आत्मा को अलग ही अनुभूति होगी।आज चिकित्सक जमाने भर की जांच कराते हैं। पहले वैद्य नब्ज देखकर दो पुड़िया बना कर देंते थे और व्यक्ति ठीक हो जाता था।

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज कहते थे आहार को औषधिय बनाएं।आज व्यक्ति अपने शरीर को नहीं देख रहा है, सिर्फ कमाने में लगा है। भगवान आप तो दुखों व पापों से पार हो गए,अब हमें भी पार लगवा देवें।बच्चों को विवाह क्यों किया जाता है यह बताएं।शिक्षा के उद्देश्य, व्यवस्थित जीवन कैसे जिया जाता है, बच्चों से चर्चा अवश्य करें। अपने सिद्धांतों के प्रति सम्मान रखें।आने वाली पीढ़ी को जैन दर्शन से संस्कारित करें, लौकिक शिक्षा बहुत ले ली, धार्मिक शिक्षा भी लेवे। सभी को चाहिए कि वे अपने बच्चों को पाठशाला अवश्य भेजें।गलत शिक्षा पद्धति के परिणाम माता-पिता द्वारा लिए जाने वाले निर्णय बच्चे ही ले रहे हैं।एक बच्चा अपनी संस्कृति के लिए देवें। संस्कृति जिनायतन और जिनबिम्बों के समक्ष जहर का बीज कभी भी न बोए।

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