updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- दसलक्षण पर्यूषण महापर्व का आज नौवां दिन उत्तम आकिंचन धर्म दिवस है। साधु ने कभी किसी चीज या वस्तु को त्यागने के लिए दीक्षा नहीं ली। तेरा मेरा मत करो। त्याग का भी त्याग करें। दान करके भूल जाओ,नहीं तो आकिंचन्य धर्म नहीं आएगा। व्यक्ति व्यवहार को भूल गया है। निश्चय के बिना कुछ नहीं होता। परिग्रह को छोड़ें। व्यक्ति संत से जुड़ेगा तो फिर वह त्याग करने लग जाता है। व्यक्ति स्वयं त्याग करें।शिव , परमात्मा बनना है तो त्याग करें। त्याग नहीं करते हों तो शव बनोगे। आपको क्या बनना है यह आप पर निर्भर है।भगवान मंदिर में श्रावकों के कल्याण हेतु विराजित है।
भगवान का आलंबन साधु नहीं लेते हैं। छोटी अवस्था में बच्चों को इस लिए संस्कार देते है ताकि वह बिगड़े नहीं। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर पर्यूषण महापर्व के नवें दिन उत्तम आकिंचन धर्म पर आशीष वचन देते हुए मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहीं। काम समय पर नहीं करते वह कामचोर, साधु आप लोगों को जगाने आते हैं। साधु कभी भी कुछ नहीं लेते हैं। गुरु का एक मात्र उद्देश्य आप लोगों का कल्याण करना होता है। कर्म रूपी डाकू से बचना है तो त्याग करें। साधु के वचन कभी खाली नहीं जाते। परिग्रह ने नहीं आपने परिग्रह को जकड़ रखा हैं
सुख, शांति, समृद्धि चाहते हैं तो प्रभु और गुरु को पार्टनर बना लो, कभी घाटे में नहीं जाओगे।दान देने पर व्यक्ति को कोई कमी नहीं आती है। जैन दर्शन की प्रभावना इन दस दिनों की तरह सतत होती रहें। कोई भी मांगलिक कार्य करने के दौरान आचार्य विद्यासागर महाराज का स्मरण करें और उनका फोटो लगाएं। मुनि श्री निष्कंप सागर जी महाराज ने कहा कि साधु लोग तुम्हे जगाने आये है ,सुनो जानो ओर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान रखो, आत्म कल्याण की ओर अग्रसर हो जाओ ।उत्तम आंकिचन धर्म को समझो आपने परिग्रह को आपने पकड़ रखा है इसे छोड़ो त्यागो यह दुर्गति की ओर ले जाने वाला है।
अपने व्यापार के लाभ में से कुछ परसेंट धर्म कार्य मे लगाते रहो वह व्यक्ति कभी घाटे में नही जाएगा। मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने कहा कि जग के सभी जीव सुख चाहते है, दुख से सदा ही भयभीत रहते है।आवश्यकताओं से सुख कभी नही मिलता है ।पंचेन्द्रिय विषयों एवं घर- मकान व व्यापार में सुख होते तो तीर्थंकर इतने वैभव को त्याग कर घर छोड़ के क्यो जाते ।सौधर्म इंद्र ने राजा आदि कुमार को सम्बोधन किया था 83 लाख पूर्व की आयु बीत गई 1 लाख पूर्व की आयु शेष रह गई।आदि कुमार को वैराग्य नही हो रहा तो उन्होंने नीलांजना के माध्यम से वैराग्य जाग्रत करने में सहयोगी बने ओर
नीलांजना का नृत्य देखकर आदि कुमार को वैराग्य धारण हुआ। मुनिश्री ने कहा प्रश्रोत्तर रत्नमालिका में लिखा गया है हे भगवन हेय क्या है -नही करने लायक कार्य ही हेय है,उपादेय क्या है गुरु के वचन ही उपादेय है। सत्य क्या है गुरु कौन है जिन्होंने तत्व को समझ लिया है और जो प्राणियों के हित मे लगे रहते है वे ही गुरु कहलाते है।जो साधना में निरन्तर लीन रहे वे ही गुरु कहलाते है ।जिन लोगो को प्रवचन में नींद आती है, उनका संसार सागर अभी बहुत लंबा है।ऐसा लगता है जो कि यहां तक आने के बाद भी हम गुरु वचनो को सुन नही पा रहे है,
ग्रहण नही कर पा रहे है गुरु के वचनों को श्रद्धान कर इस पर्व में एक संकल्प लेकर अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त जरूर करेंगे।तीर्थंकर भगवान का वैभव मोक्ष रूपी लक्ष्मी है अपनी आत्मा के ऊपर अनादिकाल से जो तप में समीचीनता नही है तो कितना ही तप कर लो कोई सार्थकता नही प्राप्त होगी।मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहा कि व्यक्ति सुख पाने की चाहत में आवश्यक और अनावश्यक काम करता है। पंचेंद्रिय और कर्मों को छोड़ने का प्रयास करें। संसार में सुख होता तो तीर्थंकर संसार क्यों त्यागते। सत्य को बहुत कम लोग स्वीकारते हैं। जिन्होंने तत्व को समझ लिया वह गुरु होते हैं।न परिग्रह से मुक्त व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।