updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- श्री श्वेतांबर जैन समाज के पर्यूषण महापर्व के तीसरे दिन सोमवार 2 सितंबर को पौथाजी का वरघोड़ा आष्टा तीर्थ श्री नेमिनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर किला से गुलाब के फूलों से सजाकर रजत पालकी में शांतिनाथ जी भगवान को विराजित कर नगर के प्रमुख मार्गो से निकाला गया। वहीं पालकी के आगे -आगे पौथाजी को मस्तिष्क पर रखकर बालक चल रहा था। किला मंदिर पर सुबह उपस्थित श्रावक -श्राविकाओं को श्री वर्धमान जैन तत्व ज्ञान केन्द्र चैन्नई से पधारे स्वाध्यायी बंधु संजय गुरुजी ने एक तरफ जहां दान की महिमा बताई, वहीं दूसरी ओर बताया कि श्रावक – श्राविकाएं उत्कृष्ट आराधना करके बारहवें देवलोक तक जा सकते हैं। आपने श्रावकों के ग्यारह कर्त्तव्य बताएं।
पुनिया श्रावक स्वयं एक दिन उपवास कर एक दिन साधार्मिक भोजन करते थे। संजय गुरुजी ने बताया कि जैन धर्म में प्रथम साध्वी चंदन बालाजी बनी थी और उनके पश्चात प्रथम केवली साध्वी मृगावती जी बनी। आपने तप बारह प्रकार के बताए। उन्होंने ग्यारह कर्तव्य भी बताए, जिसमें संघ पूजा, रथ यात्रा, तीर्थ यात्रा, तीर्थ यात्रा दो प्रकार के होती हैं जंगम तीर्थ एवं स्थावर तीर्थ,स्नात्र महोत्सव, देव द्रव्य वृद्धि, पूजा, रात्रि जागरण। आपने ज्ञान पूजा में मति ज्ञान पूजा,श्रुत ज्ञान पूजा, अवधि ज्ञान पूजा एवं मन पर्याय ज्ञान जिसे केवल्य ज्ञान भी कहते हैं।उजमणा, तीर्थ प्रभावना एवं आलोचना। श्रावक -श्राविकाओं के दैनिक कर्तव्य में भगवान की अंग पूजा यह पूजा करने वाले को अंग का रोग नहीं होता है।गुरु भगवंत की उपासना आत्मा तीन प्रकार की बताई।
साधक आत्मा जो सांसारिक कार्य नहीं, आराधना का जीवन जो आराधक आत्मा, उपासक जीवन जो कभी-कभी करने वाला, तप आराधना ने तो वह उपासक आत्मा रहती है। संजय गुरु जी ने जीव दया ,सुपात्र दान ,गुणानुवाद एवं जिनवाणी श्रवण के महत्व पर प्रकाश डाला। इन मार्गों से निकला पौथाजी का वरघोड़ा
सोमवार की दोपहर को गाजे-बाजे के साथ आष्टा तीर्थ श्री नेमिनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर किला से पौथाजी का वरघोड़ा निकाला गया। जो बड़ा बाजार, रांका गली,बुधवारा,गल चौराहा, कुम्हारपुरा, कॉलोनी चौराहा से श्री सीमंधर जिनदत्त धाम दादावाड़ी कन्नौद रोड से अदालत मार्ग से चार बत्ती चौराहा, श्री महावीर स्वामी गंज मंदिर से सिकंदर बाजार, बड़ा बाजार, सब्जी मंडी होते हुए किला मंदिर पर समापन हुआ। पौथाजी के वरघोड़ा में समाज के काफी संख्या में श्रावक -श्राविकाएं शामिल थे।
updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- सदसंगति के माध्यम से कर्म कटते व झड़ते हैं। चातुर्मास भी पर्व के समान है। जिन बिम्ब के साथ अष्टप्रतिहारियों का भी बहुत महत्व है। पांचों परमेष्ठियों की प्रतिमाएं होती है। अरिहंत परमेष्ठि के 46 गुण होते हैं। 46 गुणों से युक्त हमारे परमेष्ठि होते हैं। सभी भगवान हमारे 46 गुणों से युक्त है। गुरुजी का चिंतन अदभुत रहता था। आचार्य भगवंत समय सार से युक्त थें। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने जीवन में कोई भी काम पक्षपात से नहीं निष्पक्ष रूप से किए।जितने शिष्य के नाम रखें वह उनमें गुणों में थे। किसी भी भगवान के सामने किसी भी भगवान की पूजा की जा सकती हैं।
पार्श्वनाथ भगवान के सामने भक्तांबर स्त्रोत पाठ का गायन किया जा सकता है। हे पार्श्वनाथ भगवान आपकी समीपता से कर्मों के बंधन नष्ट होते हैं। तीन लोक के नाथ भगवान के ऊपर पुष्प बरसते हैं, वह पुष्प अलौकिक, दिव्य व भव्य होते हैं। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।आपने कहा कि सदसंगति का बहुत प्रभाव है। सन 1980 में नैना गिर में आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज पहुंचे थे। उन्हें एकांत बहुत पसंद हैं और वह नैना गिर उन्हें बहुत पसंद आया।
बीहड़ क्षेत्र को अपनी आराधना का केंद्र बनाया। आचार्य भगवंत ने अपने रुकने की कभी व्यवस्था नहीं देखी। उन्होंने आचरण और उपदेश से मुनि का स्वरूप बताया। मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा दिगंबरात की पहचान बन गए थे आचार्य विद्यासागर महाराज। हम दिखें या न दिखे, हमारा काम दिखना चाहिए। आचार्य श्री ने अपने संघ के साथ वहां पर चतुर्मास करने का मन बनाया तो समाज के लोगों ने बताया कि यहां पर अनुकूलता नहीं रहेगी, क्योंकि यहां एक डाकू का भयंकर आतंक है। यह बात जब जब डाकू हरिसिंह को पता चली तो वह आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के पास कंबल ओढ़े गया और निवेदन किया कि गुरुजी आप यही पर चातुर्मास करें।
में क्षेत्र के सभी अजैन की तरफ से विश्वास दिलाता हूं कि किसी भी यात्री की सुई तक चोरी नहीं होगी। आचार्य भगवंत कहते थे कि पाप से घृणा करों, पापी से नहीं। अंजन चोर से निरंजन बन गया। कुख्यात, विख्यात डाकू आचार्य भगवंत विद्या सागर महाराज के सानिध्य में आकर अपने जीवन में परिवर्तन ला सकता है तो आप लोग तो भगवान के समीप पूजा – अर्चना करते हैं। मुनिश्री का सानिध्य पाते हैं।फिर भी आपमें परिवर्तन नहीं आया। सदसंगति का प्रभाव डाकू हरिसिंह रास्ता भटके यात्रियों को स्वयं सुरक्षित आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज जहां ठहरें थे, वहां छोड़ कर आया। कोल्हू के बैल की तरह तों नहीं, सुबह से शाम तक चलने के बाद भी जहां से चले वहीं पर रहा। सदसंगति में रहो, न रहो, बचों दुसंगति से।