updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- आष्टा विधानसभा क्षेत्र के ग्रामों से क्षेत्र के सांसद श्री महेंद्रसिंह सोलंकी के मार्गदर्शन में विधायक श्री गोपालसिंह इंजीनियर के द्वारा किये गए विशेष प्रयासों से विधानसभा क्षेत्र के नागरिकों को प्रभु श्री राम के दर्शन करने अयोध्या भेजे जाने का सिलसिला कल से प्रारंभ हुआ। आष्टा विधानसभा क्षेत्र से कल 6 बसे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जिसमें महिला पुरुष शामिल है,अयोध्या के लिए रवाना क़ी गई। आष्टा विधायक श्री गोपालसिंह इंजीनियर एवं नगर पालिका अध्यक्ष प्रतिनिधि श्री रायसिंह मेवाड़ा सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने केसरिया ध्वज दिखाकर इन बसों को अयोध्या के लिए रवाना किया।

विधायक श्री गोपाल सिंह इंजीनियर ने बताया कि आष्टा विधानसभा क्षेत्र से हर सप्ताह 6 बसे तीर्थ यात्रियों को लेकर अयोध्या के लिए रवाना की जायेगी। जिन आष्टा विधानसभा क्षेत्र के यात्रियों को अयोध्या प्रभु श्री राम के दर्शन करने भेजा जा रहा है वे अयोध्या जी के साथ अन्य तीर्थो के भी दर्शन करेंगे। जो बसे आष्टा से अयोध्या भेजी जा रही वे उनका एक रूट चार्ट तैयार किया गया है। यात्रियों को कुबरेश्वर धाम,जबलपुर भेडाघाट में नर्मदा स्नान,मैय्यर वाली माताजी,चित्रकूट,प्रयागराज,काशी विश्वनाथ,अयोध्या जी,से सभी सीधे उज्जैन आयेंगे यहा महांकाल राजा के दर्शन के बाद यात्रा आष्टा पहुचेगी। विधायक श्री इंजीनियर ने बताया कि जो यात्री यात्रा के लिये जाना चाहते है वे नगर एवं अपने ग्राम में निश्चित किये स्थान पर रजिस्ट्रेशन करा लें।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- आचार्य कुमुद चंद्र महाराज आराध्य पार्श्वनाथ भगवान से कह रहे हैं कि आपके दर्शन करने आते समय कषाय का उदय हो गया है ,हम वहां आग देखकर भयभीत हो गए, लेकिन आपके दर्शन करते ही आग पर अचानक बारिश हो गई और आग बुझ गई। आपके द्वारा क्रोध को पहले ही नष्ट कर दिया गया है। कर्म रूपी चोट दूर क्यों नहीं हुई। भगवान को मंदिर में दिखाने नहीं उन्हें निहारने, दर्शन करने आए और उनके गुणों को प्राप्त करें। छ खंड के स्वामी असंख्यात धन संपत्ति को जीरा, तिनके के समान समझकर त्याग दिया, भगवान पार्श्वनाथ जी ने।

चक्रवर्ती के पूर्व भव पर प्रकाश डालते हुए कहा यशोधर चक्रवर्ती को निमित्त मिला और अपने पुत्र को राजपाठ सौंपकर दीक्षा ली और तपस्या करके केवल्य ज्ञान प्राप्त किया। चक्रवर्ती का पुत्र भी चक्रवर्ती बना। आचार्य कुमुद चंद्र महाराज की भगवान के प्रति की गई भक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा निस्वार्थ भाव से भगवान की भक्ति करें। विनय भाव से भगवान की पूजा करने से केवल्यज्ञान प्राप्त कर लिया। बिना सीर ढंककर तीन लोक के नाथ भगवान की प्रतिमा को स्पर्श नहीं करना चाहिए। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर

चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने कहीं। आपने कहा भगवान के प्रति हमेशा विनय के भाव रखें। मंगलाष्टक, मंत्र, शांति धारा सुनने से भी पुण्य अर्जित होता है। “आज भी लोगों में इंसानियत है- मुनिश्री विनंद सागर महाराज” नगर के अरिहंत पुरम अलीपुर के श्री चंद्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर में चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने 48 दिवसीय श्री भक्तांबर विधान के अवसर पर आशीष वचन देते हुए कहा कि जो इंसान है, इंसानियत जिनके अंदर है वे दूसरों की सहायता करते हैं।

दुखी के दुख में दुखी होते हैं। परस्परोपग्रहों जीवानाम के सिद्धांत पर चलते हैं, वही जीव अपने भव को सफल करने का पुरुषार्थ कर पाते हैं। एक जो धर्म तो कर रहे हैं किंतु मन के अंदर लोगों को परेशान करने की भावना है, लोगों को परेशानी में देखकर दुखी देखकर सुख की अनुभूति करते हैं ऐसे जीव धर्म के कारण देव तो बन जाते हैं किंतु व्यंतर योनि को प्राप्त करते है। व्यंतर देव इस मध्यलोक में सर्वत्र विचरण करते रहते हैं। इसलिए परिग्रह का परिमाण अर्थात छोड़ना चाहिए, जितना हमें रखना है और जितना हम चाहते हैं उसकी एक सीमा हमारे जीवन में जरूर होनी चाहिए, जिससे हमें उसे बाहर की किसी भी वस्तु का दोष नहीं लगता।

जबकि ज्योतिषी देव ढाई द्वीप में विचरण करते हैं जिनके कारण प्रकाश होता है। दिन-रात होते हैं, ऐसे देव जो सब जगह मानते हैं इन ज्योतिष देवों के कारण ही होता है। इस काव्य से आकाश गामी रिद्धि प्राप्त होती है, जितना हल्का होंगे उतना ही ऊपर उठेंगे। मुनिश्री ने कहा कि यह परिगृह जितना अधिक होगा उतना ज्यादा भार हम पर है और जितना कम परिग्रह होगा उतना कम भार हमारे अंदर है। परिग्रह 24 प्रकार का हुआ करता है। इसमें 10 बाह्य परिग्रह और 14 अंतरंग परिग्रह होते हैं।यदि हमें प्राप्त करने की चाह भी है तो वह भी परिग्रह ही है। कर्मों से जितना हम अपने आपको हल्का कर लेंगे उतना अधिक हम ऊपर उठ पाएंगे।

कर्मों से हल्का होना तप, संयम धारण कर तप के द्वारा ध्यान के द्वारा ही हल्का हुआ जा सकता है। महापुरुष बहुत पुण्यशाली होते हैं और महापुरुषों का जन्म सदैव श्रेष्ठ कुल में हुआ करता है। गुरुदेव ने कहा कि कर्म के अनुसार ही माता-पिता एवं संबंध प्राप्त होते हैं माता-पिता के पुण्य से पुण्यशाली संतान उत्पन्न होती है। जबकि संतान के पुण्य से सौभाग्यशाली माता-पिता उसे प्राप्त होते हैं। गुरुदेव ने कहा कि हे भगवन जिस प्रकार तारे तो समस्त दिशाओं में प्रकाशमान है किंतु सूर्य केवल पूर्व दिशा से ही निकलता है, इस प्रकार सौ -सौ नारी सौ -सौ संतानों को जन्म दिया करती हैं। किंतु आप जैसी संतान को जन्म देने वाली मां कोई एक ही होती है।

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