updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- गुणों के विकास पर काफी दिनों से चर्चा चल रही है । विकासोन्मुखी चर्चा बहुत ही महत्वपूर्ण है। दर्शन विशुद्धि, विनय गुण आ गया।यात्रा तप तक पहुंची ।तपस्या के बाद अब समाधि की बारी आती है। जैन दर्शन में पांच अर्थात पंच स्तोत्र का बहुत महत्व है। स्तोत्र पाठ बहुत ही मंगलकारी होते हैं। सर्व प्रथम क्रम पर स्वयंभू स्तोत्र बहुत ही अद्भुत कृति आचार्य समंतभद्र महाराज ने इस कृति का निर्माण किया है। भक्तांबर स्त्रोत द्वितीय नंबर अर्थात पायदान पर आता है

सहस्रनाम स्तोत्र भगवान आदिनाथ को मुख्यतः लेकर 1008 नामों से आचार्य ने भगवान की स्तुति की है । यह बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है।हम 1008 नामों से भगवान आदिनाथ जी सहित 24 तीर्थंकरों की स्तुति कर सकते है। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।

आपने कहा आचार्य कुमुदचंद्र देव ने पार्श्वनाथ भगवान की बहुत ही शानदार गुणगान किया है। भक्तांबर स्त्रोत की आराधना यहां पर बड़े ही भक्ति भाव से की जाती है।यह बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है। संसार से तरने वालों को मार्ग प्रशस्त करता है स्वयंभू स्तोत्र। भक्तांबर स्त्रोत बहुत ही महत्वपूर्ण है। अपने आराध्य से जोड़ने वाला कल्याण स्त्रोत है।आज के समय में भक्तांबर जी का बहुत महत्व है।जब हथकड़ियां और ताले भक्तांबर की आराधना से टूट सकतें हैं ,तो कर्म क्यों नहीं कटेंगे। स्रोत पाठ बहुत ही मंगलकारी है। भक्ति में वह शक्ति है कि भगवता प्रकट होगी। हमें लक्ष्य की ओर जाना है।

हम सभी का लक्ष्य मोक्ष है। मुनिश्री ने कहा दुर्लभ प्लेट फार्म पर आए हैं। भक्ति की महिमा आपने अपार बताई। भक्तांबर भक्ति का सौपान है। सुख – सुविधाएं जो जोड़ कर रखें है वह पांच पापों की ओर ले जाएंगे।आज ध्यान का बहुत क्रेज है।समय,धन भी दे रहे हैं, ध्यान शिविर के लिए।जो आत्मा को लक्ष्य की ओर ले जाता है उसके लिए समय नहीं है। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते थे अपनी लाईन बड़ी करों, दूसरे की लाईन छोटी मत करो।दिल कभी भी किसी का नहीं दुखाएं,

यह 24 घंटे बिना रुके चलता है। डूबते को तिनके का सहारा, दादाजी को लकड़ी का सहारा। संसार में सुख नहीं,हिरण की तरह दौड़ रहे हैं कस्तूरी की प्राप्ति हेतु और वह दौड़ते -दौड़ते एक दिन दम तोड़ देता है। कस्तूरी नाभि में है और आप चैतन्य को बाहर खोज रहे हैं। बाहर कुछ भी नहीं, जो है वह आपके अंदर है। ध्यान कपड़े पहने नहीं होगा।राग- द्वेष छोड़ कर पंच इंद्रियों से ऊपर उठकर ध्यान कर रहे उन्हें कितना आनंद ध्यान में आ रहा है। बिना भक्ति के शुभ में नहीं आ सकते हैं। जीवन का कायाकल्प हो जाएगा,आपकी जीवन शैली बदल जाएगी।

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