updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- इंद्रों का देव वृहस्पति इंद्र सभी इंद्रों का गुरु है। जिनेंद्र भगवान की भक्ति करने में सक्षम नहीं है यह शक्ति शाली इंद्र। आचार्य कुंदचंद महाराज एवं आचार्य विद्यासागर महाराज को विश्वास है कि उनकी भक्ति के आगे भगवान को वशीभूत कर। भगवान का भक्त से और भक्त का गुरु से अटूट विश्वास एवं आस्था है। गुरु आदेश सर्वोपरी है।भगवान के प्रति भक्ति का प्रभाव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने अनुकूलता नहीं होने के पश्चात वे भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा के समक्ष पहुंचकर हमारे सभी के चातुर्मास निर्विघ्न अकोदिया में संपन्न हो, कामना की।
हम सभी का चातुर्मास निर्विघ्न संपन्न हुआ। भक्ति श्रद्धा और समर्पण से होती है। कोरोना काल में किसी भी साधु को अकोदिया में कोई परेशानी नहीं हुई।आचार्य भगवंत ने भक्तों को भगवान की भक्ति से जोड़ा है। भगवान के अभिषेक सीर ढंककर करना चाहिए। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि भगवान की आरती भक्ति भाव से करना चाहिए।
देव, शास्त्र और गुरु की भक्ति करें, कोई भी बात आगम के विरुद्ध नहीं।कमी को स्वीकार कर सुधार करें। कमियों को सुधारने वाला ज्ञानी है और जो कमियों को छुपाता है वह अज्ञानी है। भगवान की भक्ति, पूजा अर्चना करने की अनुमोदना करते हैं तो स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिर्फ अनुमोदना करने से इतना पुण्य अर्जन होता है तो पूजा अर्चना करने वाले को कितना पुण्य मिलता है। कैसी भी परिस्थिति हो भगवान का स्मरण करते रहो,यह बात आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने भी कहीं थी। पहले निमित्त मिलते ही वैराग्य धारण करने का मन होता था और वैराग्य धारण कर लेते थे। तृष्णा की खाई बहुत भरी है। मिथ्या दृष्टि को निमित्त मिलते ही दीक्षा के भाव हुए।
सीता,राम, लक्ष्मण के लिए वनवास के दौरान ऋद्धि धारी मुनि आएं और उनकी देखभाल की। पूर्व जन्म में अच्छे पुण्य के कारण मनुष्य भव और जैन कुल मिला। जिन आगम में लिखा है लजो प्राप्त है ,वह पर्याप्त है। श्रावक को साधक , साधु, आर्यिका बनने के भाव होना चाहिए। भावना भव नाशिनी होती है। संसार से राग, द्वेष और मोह छोड़ोगे तो ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। समर्पण भाव से भक्त बनों, तभी भगवान बनोगे।स्वर्ग जाने के लिए दिगंबर दीक्षा नहीं ली, बल्कि मोक्ष जाने के लिए दीक्षा ली है। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा मुक्ति दिगंबर भेष में ही होगी। आचार्य कुमुदनंद महाराज ने कहा है भगवान और सच्चे गुरु की आराधना करें। बड़े – बड़े ऋषि -मुनियों के कारण भारत भारतीय संस्कृति वाला देश है।
आराध्य की भक्ति करने में शर्त नहीं होती, शर्त में धर्म कभी भी नहीं होता है। बिना शर्त की भक्ति ही कारगर साबित होती है। राजनेता और राजनीति तथा धर्म नीति है। धर्म नीति में शर्त नहीं रखना चाहिए। गुरु का कर्तव्य होता है कि शिष्य को दुर्गति में जाने से बचाएं। श्रावक के कर्तव्यों को हम बताते हैं तो दान करने के लिए भी बताते हैं। बड़ों को नमन करें, झुकना सीखें,आपस में प्रेम सम्मान से ही होगा। जैन दर्शन कहता है पहले समझों, त्रैकालिक सुख देने वाले को समझना चाहिए। अरिहंत भगवान को सबसे पहले नमन करते हैं। भगवान की भक्ति अच्छे भाव से करना चाहिए। पवित्र स्थान पर जाकर अपवित्र काम नहीं करें।
गंधोदक की महिमा अपार है, अपने पति से गंधोदक लेना चाहिए। अपने देश में अनेक लोग अपनी संस्कृति की हत्या कर चुके हैं। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते थे आपके शब्द अर्थात संबोधन अच्छा है तो संबंध भी अच्छे होंगे। भारतीय संस्कृति का पालन करोंगे तो श्री राम और सीता जैसे बच्चे होगे। सभी बहनें रक्षा बंधन पर भाईयों से उपहार में कहें कि जब तक इस घर में हूं आप भगवान के अभिषेक कर गंधोदक नित्य लाकर देना। कभी भी दहेज नहीं मांगें, स्वेच्छा से जो मिले वह लेवे। धर्मपत्नी अपने-अपने पतियों को दान, पूजा -अर्चना, धर्म आराधना करने की प्रेरणा देवें। भगवान की महिमा आप बताएं,पूरा मंदिर भगवान के अभिषेक, पूजा अर्चना करने वालों से भरा रहे। बिना भावना के धर्म नहीं होता है।