updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- बड़े – बड़े राजा – महाराजा भगवान के समक्ष नतमस्तक होते हैं, तो भगवान में निश्चित कोई ताकत है। दुःख में भगवान के पास सभी आते हैं,सुख में नहीं। जेब में पैसा आने पर पाप करने के भाव आते हैं,धूमने जातें हैं। दुःख में भगवान याद आते हैं।सुख में भगवान के चरणों में जाना चाहिए। दुःख के दिनों में णमोकार महामंत्र याद आता है।रावण को जब दुःख आया तो भगवान याद आए। जबकि रावण बहुत ही विद्वान, शक्तिशाली व संपन्न था। दंपत्ति की प्रसन्नता का कारण शादी के दो चार माह तक उसके बाद चेहरे की प्रसन्नता समाप्त हो जाती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के समक्ष नतमस्तक होते हैं।राष्ट्र और धर्म को चुनना है तो राष्ट्र को चुनें। देश, राज्य भक्त रहे। राष्ट्र सुरक्षित नहीं तो धर्म कैसे सुरक्षित रहेगा। राष्ट्र सुरक्षित है तो धर्म भी सुरक्षित रहेगा। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा भक्ति मोक्ष का कारण होती है।हम जिनकी भक्ति – स्तुति करते हैं ,वह हमारे आराध्य हैं। उनको जानकर-समझकर भक्ति – स्तुति करेंगे तो बहुत आनंद आएगा।

आप सभी मोक्ष जाना चाहते हो, तो पता करें कि कोई पहले मोक्ष गया है, फिर मंजिल प्राप्त करें। मुनिश्री ने कहा जैन को लक्ष्मी पुत्र कहते हैं। दिगंबर जैन साधुओं को पैदल ही चलना है,वह वाहन का उपयोग नहीं करते हैं। पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद हमें मिला। सभी दिगंबर साधु खड़े -खड़े आहार करते हैं।मोक्ष है,मोक्ष के रास्ते बंद नहीं हुए हैं।जो भी साधु बनता है तो मोक्ष की चाहते है। दुनिया की कोई भी ताकत लक्ष्य को नहीं रोक सकती है। स्वर्ग जाने के लिए दिगंबर दीक्षा नहीं ली, बल्कि मोक्ष जाने के लिए दीक्षा ली है। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा मुक्ति दिगंबर भेष में ही होगी।

आचार्य कुमुदनंद महाराज ने कहा है भगवान और सच्चे गुरु की आराधना करें। बड़े – बड़े ऋषि -मुनियों के कारण भारत भारतीय संस्कृति वाला देश है। आराध्य की भक्ति करने में शर्त नहीं होती, शर्त में धर्म कभी भी नहीं होता है। बिना शर्त की भक्ति ही कारगर साबित होती है। राजनेता और राजनीति तथा धर्म नीति है। धर्म नीति में शर्त नहीं रखना चाहिए। गुरु का कर्तव्य होता है कि शिष्य को दुर्गति में जाने से बचाएं। श्रावक के कर्तव्यों को हम बताते हैं तो दान करने के लिए भी बताते हैं।

बड़ों को नमन करें, झुकना सीखें,आपस में प्रेम सम्मान से ही होगा। जैन दर्शन कहता है पहले समझों, त्रैकालिक सुख देने वाले को समझना चाहिए। अरिहंत भगवान को सबसे पहले नमन करते हैं। भगवान की भक्ति अच्छे भाव से करना चाहिए। पवित्र स्थान पर जाकर अपवित्र काम नहीं करें। गंधोदक की महिमा अपार है, अपने पति से गंधोदक लेना चाहिए। अपने देश में अनेक लोग अपनी संस्कृति की हत्या कर चुके हैं। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते थे

आपके शब्द अर्थात संबोधन अच्छा है तो संबंध भी अच्छे होंगे। भारतीय संस्कृति का पालन करोंगे तो श्री राम और सीता जैसे बच्चे होगे। सभी बहनें रक्षा बंधन पर भाईयों से उपहार में कहें कि जब तक इस घर में हूं आप भगवान के अभिषेक कर गंधोदक नित्य लाकर देना। कभी भी दहेज नहीं मांगें, स्वेच्छा से जो मिले वह लेवे। धर्मपत्नी अपने-अपने पतियों को दान, पूजा -अर्चना, धर्म आराधना करने की प्रेरणा देवें। भगवान की महिमा आप बताएं,पूरा मंदिर भगवान के अभिषेक, पूजा अर्चना करने वालों से भरा रहे। बिना भावना के धर्म नहीं होता है।

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