updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- आजकल की बहू- बेटियों को पूर्ण आराम के बाद भी स्वस्थ्य बच्चे नहीं हो रहे। क्योंकि वह गर्भवती होने के पश्चात भी अपना अधिकांश समय मोबाइल टीवी मोबाइल, टीबी में व्यतीत करती है।इन दोनों के सामने नहीं बैठ कर धर्म आराधना और विधान किया होता तो आपको भी निश्चित आचार्य विद्यासागर महाराज जैसे बच्चे पैदा होते।जो आपका व समाज का नाम गौरांवित करते। आज का यह मोबाइल युग आप सभी के साथ-साथ बच्चों के लिए काफी घातक है।

मोबाइल बनाने वाले एवं बड़े-बड़े लोग एंब्रॉयइड फोन के स्थान पर की पैड या लैंडलाइन फोन का उपयोग अधिक करते हैं। संयम का पालन करने वाले माता-पिता को संस्कारित बच्चे होते हैं। बच्चों को जन्म से ही मोबाइल से दूर रखें। धर्म तो जितना स्वयं में लाओगे उतना ही पुण्य अर्जन होता है। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।

आपने कहा जो समय धर्म आराधना का है ,उस दौरान व्यक्ति गलत काम में लगा हुआ हैं,वह अमानवीय कृत्य में लगते हैं, सप्त व्यसन में लगते हैं तो वह अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं। अहिंसा धर्म कहा टटोलेंगे, भगवान की प्रतिमा में या शास्त्रों में। जो श्रावक अपना कर्तव्य समझते हैं वह अपने काम अवश्य करते हैं। धर्म -साधना- आराधना करने के अनेक उपाय है। जैनत्व अभी नहीं बहुत प्राचीन है। तत्त्वार्थसूत्र के एक एक पद पर सौ – सौ ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। शब्दों को गहराई से पढ़ो। भारतीय संस्कृति में ऐसे अनेक ग्रंथ लिखे गए। मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कहा खूब पढ़ने से ज्ञान अर्जित नहीं होता, बल्कि उस विषय पर मन लगाकर पढ़ाई करना होगी।

पहले बौध फिर शौद्ध करना पड़ता है। दुनिया के बड़े तमाम व्यक्ति की पेड मोबाइल का उपयोग करते हैं। मन हमें विचलित करता हैं ,एकाग्रता नहीं करने देता है। भारत में सर्वाधिक सोना आज भी है। अंग्रेज हमारा सोना ही नहीं ,इतिहास भी ले गए। हमेशा-हमेशा उत्कृष्ट भावना भाएं।वो गर्भ चाहिए जिसमें मां को सुख हो। श्रेष्ठ आर्यिका बनों।संयम के मार्ग में लगाने वाली माताएं अपने से अच्छे गुण अपने बच्चों को प्राप्त कराती हैं। बच्चों, गर्भवती महिलाओं और जन्म से मैंने यहां सबसे पहले बताया। आष्टा की रचना शायद द्रोणाचार्य ने की है। आष्टा की रचना महाभारत के दौरान हुई ऐसा लगता है। आष्टा में असंख्यात गलियां हैं।

वह माता- पिता धन्य है, जिन्होंने अपने काम में एक पुत्र की चाहत रखी, जो उत्कृष्ट हो और दुनिया में अपराजित हो। माता-पिता स्वयं संयम धर्म का पालन करते हैं, उनके यहां गुणवान बच्चे होते हैं। पुरुषार्थ अच्छे भाव रखकर करें। आचार्यो और मुनियों ने चक्रवर्ती विवाह पद्धति प्रारंभ की है। मर्यादा का पालन करना बच्चों को पहले दिन ही सिखा दो। प्रसव की पीढ़ा मां ही जानती है। बच्चा जैसे ही मां की गौद में आता है तो वह अपने सारे दुःख भूलकर बालक पर वात्सल्य भाव से अपने सीने से लगाती हैं। अगर आप भक्ति करोंगे तो देवता आपकी रक्षा करेंगे। अंजना का वृतांत सुनाया। सीता का भी उल्लेख किया। उन्हें जंगल में दो पुत्र महापराक्रमी हुए जो मोक्ष गए।

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