updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- जिस घर में संत के चरण नहीं पढ़ते वह घर श्मशान के समान है। महापुरुषों का जीवन हमारे वैराग्य का माध्यम है।प्यासा कुआं के पास जाता है, कुआं प्यासे के पास नहीं जाता है। बचपन से ही बच्चों को संस्कार दिए जाते हैं कि भगवान और गुरु के द्वार पर जाएं तो खाली हाथ नहीं जाएं, खाली हाथ जाओगे तो खाली हाथ लौटकर आओगे। मंदिर का नहीं खाना चाहिए, निर्माल दोष लगता है। भगवान के पास सेठ बनकर नहीं सुदामा बनकर जाना। हैसियत है तो भगवान के समक्ष गजमोती चढ़ाना, नहीं तो चावल चढ़ाएं। भगवान के सामने गरीब नहीं हो तो गरीब मत बनकर जाना।
भगवान के पास अक्षत इस लिए चढ़ाते हैं कि हम जन्म मरण से मुक्ति मिल जाएं। भगवान के चरणों में अक्षत चढ़ा देवें। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने द्वारकाधीश श्री कृष्ण एवं सुदामा की मित्रता का उल्लेख किया। मुनिश्री ने कहा सुदामा की पत्नी ने श्री कृष्ण के लिए चावल की पोटली बांधकर दी।हर व्यक्ति भगवान से कुछ न कुछ मांगते हैं। भगवान और गुरु को चाहों। गुरु को मानते हैं लेकिन गुरु की बात को नहीं मानते।
जिसने भगवान को छोड़ दिया वह डूब जाते हैं। राम का नाम लिखकर समुद्र में पत्थर हनुमान आदि ने डाला तो वह पत्थर डूबता नहीं,तैरता है। श्री कृष्ण ने सुदामा का नाम सुनते ही सुदामा से मिलने दौड़ते हुए गए। मित्रता कृष्ण और सुदामा जैसी हो।गरीब मित्र आपके पास आएं तो कृष्ण- सुदामा की तरह सम्मान देना।माता-पिता गिले में सौते है और अपने बच्चे को सूखे में सुलाते है। बच्चे के भविष्य के लिए अपना सुख त्याग देते हैं। कलेक्टर आपके यहां से बनने पर आपकी छाती 56 इंच चौड़ी हो जाती है। माता-पिता पर है कि बच्चे को क्या बनाना है। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा कोई अच्छे संस्कार देकर महापुरुष, कलेक्टर बना देते हैं।
कोई बच्चे गलत संस्कार से डाकू बन जाता है। बच्चों के जन्म के बाद अलग से कक्ष नहीं बनाना चाहिए।आठ वर्ष तक माता-पिता अपने बीच में बच्चे को सुलाएंगे तो वह बड़ा होकर आचार्य कुंथुनाथ बनेगा। माता-पिता अपने बच्चों को संस्कारित करें। पद का महत्व नहीं। जैन दर्शन में व्यक्ति की नहीं व्यक्ति के गुणों की पूजा बताई है। जिसने अपना मकान, मंगलसूत्र तक बैच दिया, उनसे मिलने कलेक्टर बना बेटा मिलने तक नहीं आया। बच्चों की उन्नति पर हर माता-पिता को गर्व होता है।बच्चों को अच्छा लायक बनाना, लेकिन इतना भी लायक मत बनाना की वह बड़ा होकर आपको नालायक समझें।बच्चा देश या समाज का नाम रोशन करें। बच्चों को लौकिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा अवश्य देवें।
बच्चों को साधुओं से जोड़ने का प्रयास करें। आज मोबाइल बच्चों पर और आप पर बहुत हावी हो गया है। सोशल मीडिया का दुरुपयोग नहीं उपयोग करें। बच्चों के मामले में लापरवाही नहीं करें। मुनिश्री के पाग प्रक्षालन का बहुत महत्व है। आहार दान, शास्त्र दान करते हो तो काफी पुण्य अर्जन होगा। कृष्ण ने सुदामा को सिंहासन पर बैठा कर उसके पग प्रक्षालन किया। भाभी ने कुछ दिया क्या मेरे लिए, पोटली लेकर खोली और चावल खाएं। पति भोजन में कमी नहीं निकाल कर प्रशंसा करके खाता है तो पत्नी की नजर में वह पति नहीं अपना देवता, परमेश्वर मानती है, यह भाव पत्नी के मन में आता है। भगवान से मांगा नहीं जाता, प्राप्त किया जाता है। भगवान से मांगोगे तो भिखारी कहलाओगे। दान देने से बड़ा व्यक्ति बनता है। दान देने वाले की अनुमोदना अवश्य करें।