updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- मनुष्य जीवन बहुमूल्य है, इसका मोल हमे जानना होगा। जब तक हम इसका मूल्य नही जानेंगे तब तक हमें सही ठिकाना प्राप्त नहीं होगा। सूर्य का प्रताप श्रावक के छह आवश्यक बताये गए है। श्रावक को षट आवश्यक करना बहुत जरूरी होता है। श्रावक को निष्ठावान होना होगा। नीति से चलो, नीति से चले बिना प्रार्थना स्वीकार नही होती। सम्यक जीवन जीना एक कला है। यहां एक गृहस्थों के लिए आचार्यो ने उपदेश दिया है दिने -दिने अर्थात प्रतिदिन पल- पल इनका ध्यान करना होता है।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। दान चार प्रकार- आपने कहा कि दान चार प्रकार के होते है। औषधि, ज्ञान, आहार एवं अभय दान। इस प्रकार चार प्रकार के दान बतलाए गए है। दान हमेशा सुपात्र को दिया जाना चाहिए। सम्यक दृष्टि श्रावक दान करके भूल जाता है। वैसे भी दान इस प्रकार देना चाहिए कि आपके दूसरे हाथ को भी पता नहीं चले।
रसोई घर जबसे किचन हुआ घर में किच -किच- मुनि श्री निष्पक्ष सागर जी महाराज ने कहा कि जब तक किचिन में रहोंगे, तुम्हारे घर व जीवन में किच -किच होती रहेगी, शांति नही आएगी। किचिन को रसोई घर भी कहा गया है।रसोई घर में खड़े- खड़े रसोई बनाई जाती है, उसे प्लेट फॉर्म कहते है यह हमारी संस्कृति नही है। साइड में आरो की मशीन लगाई जाती है जो कि अपने घर में छोटा सा जीव हिंसा का कत्लखाना है। भगवान को मानते लेकिन उनकी वाणी पर अमल नहीं- मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा कि तीर्थंकर भगवान को मानते हैं, लेकिन उनकी वाणी को आप लोग मान नही रहें, उनके द्वारा कहे गए वचनों का भान नही, हम सभी पर बहुत बड़ा उपकार है आचार्यो का जो हमें सही राह दिखा कर गए है।
बिना एड्रेस के लिफाफा आगे नहीं जाता उसी प्रकार- मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा बहुत याद आती है गुरु आचार्य विद्यासागर महाराज जी की, उन्हीं के बताए रास्ते पर हम चल रहे, आप चल रहे और उन्ही के बताए मार्ग पर हमें आगे भी चलना होगा। अगर हम उनके बताए मार्ग पर नही चलते है तो जैसे बिना एड्रेस के लिफाफा कही आगे नही जा सकता, उसी प्रकार हम भी आगे नही जा सकते। मोक्ष मार्ग में आगे नही बड सकते है। आज घर -घर में बीमारी- मुनिश्री ने कहा अतिथि संविभाग का पालन करना होता है व्रती गणों को कीच -कीच से रसोई की ओर आओ अपना स्टेंडर्ड मत बताओ, सही क्या है, गलत क्या है इसका मार्ग समझो। प्रत्येक घर में यह सभी व्यवस्था ठंडे प्रदेशो के लिए है और तुम उनका अनुशरण कर अपने जीवन खराब कर रहे हो।
आज किसी को घुटने की समस्या, किसी को गर्दन दर्द, किसी को क्या, तरह -तरह की समस्या घर- घर में बढ़ती जा रही है। यह सभी पाश्चत्य संस्कृति को बढ़ावा देने से हो रही है। अच्छा कार्य करने वाले को रोकें नहीं
मुनिश्री ने कहा तुम्हारे पाप कर्मो का उदय चल रहा है, आपने किसी को चौका लगाने से मना किया तो आप निकृष्ट कर्मो का बंध कर रहे हो। साधु हो या न हो अपने द्वार पर कलश लेकर श्रावक को प्रत्येक दिन अतिथि संविभाग करना चाहिए। ये कला है पुण्य कमाने की। चार महीने तक आप सभी व्रती बन जाओ, जैन दर्शन भाव प्रधान धर्म है। विपरीतता में धर्म करना ही असली पुण्य कमाने का सही रास्ता हुआ करता है। विपरीतता में ही सबसे ज्यादा कर्मो की निर्जरा होती है।
भावना भाव नाशिनी, भावना भव वर्धिनी हुआ करती है। बड़े ही भक्ति भाव से गुरु आराधना, प्रभु आराधना करो। भावों से गरीब नही बनो, परिणाम बहुत अच्छे रखो। गंदोदक की महिमा परिणामों की महिमा का सोचो कितनी बड़ी महिमा है। गली-गली से आवाज आना चाहिए हे स्वामी नमोस्तु- नमोस्तु- मुनिश्री ने कहा आष्टा के प्रत्येक घर मे क्या समझ सकते है आप हम ही प्रभावना कर सकते है, आप भी प्रभावना कर सकते है। चार माह तक चार सौ घर के हर घर मे शुद्ध भोजन बना कर गली -गली से आवाज आना चाहिए है स्वामी नमोस्तु, नमोस्तु- नमोस्तु का स्वर गुंजना चाहिए।
जय हो, जय हो कि आवाज आना चाहिए। यही जैन धर्म की प्रभावना होती है। दान की महिमा समझों- आप लोगों ने अभी दान की महिमा को नहीं जाना है। अणुव्रत महाव्रत को समझो सोचो मनुष्य को पर्याय में आये हो पशु गति में भी पशु आने परिणामों से ऊर्ध्व गति प्राप्त कर लेते है। मर्यादा पुरषोत्तम राम और अनुज लक्ष्मण के जीवन को पढ़ें, नीति से चले नीति के बिना प्रार्थना सुनी नही जायेगी। स्वीकार नही होती भगवान महावीर का सिंह की पर्याय से आकर अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया है। हमें भी ध्यान रखना अवसर जीवन मे बार -बार नही आता। अवसर को परखो यह आष्टा नगरी में आस्थावान श्रावक निवास करते है।