updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- जैन समाज में कहीं भी कोई भिखारी नहीं है, क्योंकि आप दान देते आए हैं।दान देने वाला दानी है, दान देने वाले जन्म -जन्म तक भिखारी नहीं बनते, पैसे वाला बड़ा नहीं दान देने वाला बड़ा व दानी होता है। जैनों की पहचान सबसे पहले दान देने वालों में होती है। अगर हैसियत है तो दान करें। दान किसानों के बीज की तरह है, जो एक दाना बोने पर अनेक दाने उत्पन्न होते हैं। चातुर्मास कलशों का बहुत महत्व है। दीपावली के दिन इन कलशों को आपके घर पर विराजमान होंगे।
दान की तीव्र गति होती है। कुआं के पानी की तरह दान है, जितना निकालोगे उतना बढ़ता जाता है। दान देने के संस्कार बच्चों को अवश्य देवें। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहीं। आपने आगे कहा दान देने वाले के यहां हमेशा बरकत आती है। सम्यक दर्शन की प्राप्ति ऐसे ही नहीं होती। विशुद्धि से चमत्कार होता है। व्यक्ति लेने के नाम पर आगे, यह स्थिति समाज की हो गई।
धन के कारण लड़ाई होती है। झगड़े का कारण जर,जोरु और जमीन। संसार में धन और धर्म की वसीयत, धन तो यही रखा रह जाएगा धर्म आपके साथ जाएगा।धन कालिक है और धर्म त्रैकालिक है। धर्म को कोई नहीं लूट सकता है। धन को कोई भी लूट लेते हैं। दान देने के संस्कार बच्चों को देवें। दान देने के संस्कार बच्चों को नहीं दिए तो बुढ़ापे में पानी भी नहीं पिलाएंगा। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा पुराने इतिहास देखने में आनंद आता है। जैनियों की परम्परा है कि हैसियत नहीं है तो भाव द्रव्य चढ़ाएं। सबसे ज्यादा कमाने वाले मजदूर हैं, फिर भी वह गरीब का गरीब है। क्योंकि वह पंच इंद्रियों में पैसा खर्च अर्थात अर्जित धन का दुरुपयोग अधिक करते हैं।
दान नहीं देने पर रुपया यही रखा रह जाता है।हम पिच्छी- कमंडल लेकर यहां आए थे, वहीं लेकर जाएंगे। परिग्रह आपको नीचे ले जाएगा और परिग्रह छोड़ेंगे तो वह आपको ऊपर ले जाएगा। दान देने वाले देवता बनते हैं। देने वाले दरिया दिल अर्थात नदी, समुद्र की तरह है। जैन दर्शन कहता है जो पर वस्तु प्राप्त की है, उसका त्याग करें। भगवान के आशीर्वाद से चक्रवर्ती, संपन्न बना हूं, आपके चरणों में अर्पित करता हूं। दान देने वाला दिवालिया नहीं होता है। मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ससंघ के चातुर्मास के कलश स्थापना 28 जुलाई रविवार को दोपहर 1 बजे से श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर आष्टा पर होगी।