updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- गुरु के बिना इस जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। गुरु का स्थान ईश्वर और माता पिता से भी ऊपर रखा गया है। गुरु ही मुनुष्य को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाते हैं। जिस प्रकार एक सुनार सोने को तपाकर उसे गहने का आकार देता है, ठीक उसी प्रकार एक गुरु भी अपने शिष्य के जीवन को मूल्यवान बनाता है। उसे सही गलत को परखने का हुनर सिखाता है। बच्चे की पहली गुरु मां होती है, जो हमें इस संसार से अवगत कराती हैं। वहीं दूसरे स्थान पर गुरु होते हैं जो हमें ज्ञान व भगवान की प्राप्ति का मार्ग बताते हैं।

इस आशय के विचार कृष्णाधाम आश्रम मे आयोजित भव्य गुरुपूर्णिमा महोत्सव कार्यक्रम के दौरान नपाध्यक्ष प्रतिनिधि रायसिंह मेवाड़ा ने व्यक्त किए। नपाध्यक्ष प्रतिनिधि रायसिंह मेवाड़ा एवं सीएमऒ राजेश सक्सेना द्वारा गुरुमाँ कृष्णा का पुष्पगुच्छ भेटकर गुरुपूर्णिमा की शुभकामनायें दी व आशीर्वाद प्राप्त किया. इसके पूर्व सीएमऒ राजेश सक्सेना के नेतृत्व मे नपाध्यक्ष श्रीमती हेमकुंवर रायसिंह मेवाड़ा का स्वागत कर उन्हें गुरुपूर्णिमा की बधाई शुभकामनायें दी। इस अवसर पर पूर्व पार्षद सुभाष नामदेव, अनिल धुर्वे, मनीष श्रीवास्तव, अवनीश पिपलोदिया, संजय शर्मा सहित अन्य नपा कर्मचारीगण मौजूद थे।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- आज उपलब्धियों से भरा गुरु पूर्णिमा दिवस है।हम भारतीय संस्कृति में जी रहे हैं। उत्सवों व पर्वों को मनाया जाता है यहां पर।इस विश्व को जियो और जीने दो का संदेश भगवान महावीर स्वामी ने दिया था। ऐसे भगवान महावीर स्वामी का शासन है। गुरु आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने हमारे आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। अपार वैभव तीर्थंकरों के पास ही होता है। अंधा क्या चाहे दो आंखें। मानस्तंभ की अलग ही विभूति है। वीतरागी प्रभु और वीतरागी गुरु की क्या महत्ता है जाने और समझें।

हम सभी से दीक्षा वाले दिन आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने कहा था कि यह महावीर, आदिनाथ का मार्ग है।आज आप सभी ने वीतरागता की शरण ली है। अपने जीवन में कुछ करना, नहीं करना बस इतना ध्यान रखना। प्रभावना करने की आवश्यकता नहीं है, आपको देखकर वीतरागता की भावना अपने आप होगी। आप अपनी धर्म -आराधना करना। भगवान के पास भक्तों की कमी नहीं है। गुरु की भक्ति में भारत और आष्टा की समाज पागल थी। गुरु की नजर भाग्यशालियों पर ही पड़ती है,उनकी जिस पर नजर पड़ी वह यहां मंच पर संत बनकर बैठ गए।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य निष्पक्ष सागर महाराज ने गुरु पूर्णिमा पर आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही। आपने कहा कि अपनी भावनाओं में परिवर्तन लाओ,आज के दिन दशा और दिशा बदलने के लिए महावीर स्वामी गुरु बने। आपने भूतबलि सागर महाराज का भी उल्लेख किया। मुनिश्री ने कहा आत्मा के कल्याण की भावना भा रहा हूं,आष्टा जंक्शन है, वीतरागता की महिमा है।

गौतम गणधर की महिमा बताई। गणधरों का उपकार है।इस अवसर पर निष्कंप सागर महाराज ने कहा कि भगवान बनने के लिए भक्त बनना आवश्यक है। गुरु बनने की होड़ में लगे हैं, पहले अच्छे शिष्य बनों, फिर गुरु बनोगे। गुरु की पहचान जरूरी है। गुरु पूर्णिमा का महत्व जैन दर्शन में अनादिकाल से है और अनादिकाल तक रहेगा। भक्त नहीं शिष्य बनों, ताकि परम्परा चल सकें। मुनिश्री ने कहा भक्त और शिष्य में अंतर है, वक्त के साथ चलता है वह भक्त और जो समय पर चलता है वह शिष्य हैं।एक ईष्ट गुरु अवश्य बनाएं। विपत्ति और संकट में गुरु का स्मरण करते ही विपत्ति और संकट दूर हो जाते हैं।

जिनेंद्र भगवान की प्रतिमा जीवंत होती है। गुरु रास्ता दिखाते हैं। जैन दर्शन में अतिशय है। उपकारी का उपकार नहीं भूलना चाहिए।इस संसार में गुरु से बड़ा कोई नहीं है।वीतरागी गुरु है। अहंकार और अधिकार की भूमि पर प्रेम का बीज नहीं बो सकते हैं। गुरु को प्राप्त करना है तो गुरुर, अहंकार छोड़ना होगा। कल भगवान की दिव्य ध्वनि खिरेगी। आचार्य विद्यासागर महाराज से दीक्षा लेने वाले बहुत ही भाग्यशाली रहते हैं,जन-जन
के आचार्य थे,जन- जन का कल्याण किया है आपने।

गुरु की महिमा को पहचानों। भक्ति की परिभाषा चातुर्मास में बताएंगे।गुरु पूर्णिमा पर गुरु की आराधना अवश्य करें, सभी काम छोड़कर गुरु के पास अवश्य जाएं। अपने जीवन में इष्ट गुरु अवश्य बनाएं। जन्म मरण से मुक्ति गुरु ही दिलाते हैं। गुरु ने हमें तराशकर इस मुकाम पर पहुंचाया है। इस धरती के चलते-फिरते देवता आचार्य विद्यासागर महाराज हम सभी को छोड़कर चले गए। आचार्य भगवंत हमें अनाथ करके नहीं सनाथ करके गए। हमें नवाचार्य समय सागर महाराज का आशीर्वाद मिला।

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