updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- स्थानीय शास्त्री स्मृति विद्या मंदिर हायर सेकेंडरी स्कूल आष्टा में आज प्रातः गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया गया जिसमें स्कूल के विद्यार्थियों ने अपने समस्त गुरुजनों का सम्मान किया। संस्था प्राचार्य सुनील शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि आज विद्यालय में प्रार्थना सभा में शिक्षकों के द्वारा गुरु पूर्णिमा के महत्व एवं पारंपरिक गुरु शिष्य की संस्कृति पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान गुरुकुल व्यवस्था एवं वर्तमान व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए उपस्थित सभी शिक्षक शिक्षिकाओं ने विद्यार्थियों को अपने-अपने विचारों से अवगत कराया।
वहीं प्राचार्य सुनील शर्मा ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। सनातन संस्कृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में जो हमें अज्ञानता से प्रकाश की ओर ले जाए उसे गुरु कहा जाता है।गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार होता है गुरु की कृपा बिना कुछ भी संभव नहीं है। अतः हमारे भारतवर्ष में गुरु पूर्णिमा का पर्व प्रतिवर्ष गुरुओं को समर्पित रहता है। इस दिन सभी बड़े वृद्ध अपने अपने गुरुओं की आराधना कर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाते हैं हमारे मालवा क्षेत्र में गुरु पूर्णिमा को भैरू पूजन के नाम से भी जाना जाता है।
जिसमें समस्त लोग अपने इष्ट का पूजन करते हैं। उक्त बातें विद्यार्थियों को समझाते हुए शिक्षक साथियों को भी अवगत कराया कि हमें भी अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाना चाहिए। व अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। इस अवसर पर सर्वप्रथम मां सरस्वती की प्रतिमा पर शिक्षक श्री जितेंद्र पटेल एवं राजेंद्र पिपलोदिया द्वारा दीप प्रज्वलित एवं माल्यार्पण किया गया। वहीं विद्यार्थियों ने बारी-बारी से अपने सभी शिक्षकों का पूजन कर उन्हें गुरु पूर्णिमा की बधाई प्रेषित की।
updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- बारिश के दिनों में असंख्यात जीवों की उत्पत्ति होती है और इन जीवों की जीव हिंसा न हो इसलिए बारिश के दिनों में चार महीने तक जैन साधु -संतों को एक ही स्थान पर प्रवास करना पड़ता है।जिसे चातुर्मास कहते हैं। आचार्यों की दूर दृष्टि होती है।वे सभी जीवों का आत्म कल्याण चाहते हैं।आचार्य श्री कहते थे हर कार्य में उत्साह और उमंग होना चाहिए। लक्ष्य के प्रति भी उत्साह उमंग रहना चाहिए। बच्चे जब चलना सीखते हैं तो वह बहुत उत्सुक रहते हैं।
उत्सुकता और उत्साह में बहुत अंतर है। किसी वस्तु को जानने को उत्सुकता और उत्साह लक्ष्य तक ले जाने की जड़ी-बूटी है। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित मुनिश्री 108 निष्पक्ष सागर महाराज ने कहीं।आपने कहा कि कल नगर में उत्साह और उमंग का माहौल था। आष्टा वाले बाट जोह रहे थे।जब हमने अध्यक्ष आनंद पोरवाल को फोन पर आष्टा चातुर्मास हेतु 3 जुलाई को सूचना भिजवाई तो खुशियों की लहर यहां समाज में छाई।
आचार्य समय सागर महाराज की कृपा आष्टा पर बरसने वाली है। जैन साधु- संतों के साल में तीन चातुर्मास होते हैं।यह चातुर्मास बहुत विशेष होते हैं।आचार्य समय सागर महाराज ने ससंघ खजुराहो में चातुर्मास स्थापित कर लिया है। मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा कि हमने आचार्य विद्यासागर महाराज को साक्षी मानकर नवाचार्य समय सागर महाराज की आज्ञानुसार आष्टा में अपना चातुर्मास स्थापित कर दिया है। चातुर्मास का प्रयोजन क्या है, इस पर प्रकाश डाला।आचार्यो की दृष्टि दूर दृष्टि होती है।
सभी प्राणियों का कल्याण हो यही उनकी भावना रहती है। आष्टा की आस्था और पुण्य अधिक था, इस लिए यहां चातुर्मास कर रहे हैं। आपने कहा हम धर्म आराधना दीपावली तक यही पर करेंगे। भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के साथ ही हम भी चातुर्मास से स्वतंत्र हो जाएंगे। जीवों की विरादना न हो इसलिए हम बारिश के दौरान विहार नहीं करते,आप लोगों को भी बाहर नहीं जाना चाहिए, इमरजेंसी हो तो अलग बात। हम अहिंसा परमो धर्म का पालन करेंगे और आप भी करें।एक साधक के मन में दस धर्म हमेशा रहते हैं।
चार माह तक चार संत यहां पर धर्मोपदेश देंगे। प्रतिदिन धर्म देशना होगी। धर्म श्रवण दोपहर आदि में। मुनिश्री ने कहा रविवार को गुरु पूर्णिमा और सोमवार को जिनशासन दिवस हमारा जैन धर्म ही पतित से पावन बनाने का है।धर्म वस्तु नहीं । चारों गति संसार का प्रतीक है।जो भी कार्य हम करते हैं वह गुरु आज्ञा से करते हैं।जो महामना, ज्ञानी -ध्यानी होते हैं ,वह सब-कुछ समझ लेते हैं। करुणा दया से भरा आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज का हाथ हमेशा प्रेरणा देता रहा है।समय का बहुत महत्व है,आप समय का सदुपयोग करें।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनुशासन जरूरी है, मर्यादा में रहना चाहिए। गुरुदेव का विनय, बहुमान -सम्मान करेंगे उतना ही आपका कल्याण होगा।विनय उन्नति का द्वार है। कुंडलपुर में 63 जिनालय है,जितनी देर झुकोगे उतनी देर असंख्यात जीवों की निर्जरा होती है। भगवान और गुरु के दर्शन पुण्य से मिलते है। उत्थान और विकास चाहते हैं, विनयवान बने। भगवान ऋषभदेव का नाम लेने से उपवास का लाभ मिलता है।समय बहुमूल्य है,समय का अनुपालन करें।चौबीस घंटे में कम से कम एक बार गुरु वंदना अवश्य करें।
आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने धर्म का मर्म समझाया, चलना, पढ़ना लिखना हम सभी को सिखाया। मुनिश्री ने कहा परमात्मा बनने की क्षमता है,उस क्षमता को समझ नहीं पा रहे हैं।हम सभी अनादिकाल से संसार में भ्रमण कर रहे हैं। यह आष्टा व्रती धर्म मय नगरी है और यहां पर और अधिक व्रती बने तो हमारा चातुर्मास सार्थक होगा।एक -एक पल बहुत कीमती है। अधिक से अधिक धर्म आराधना कर पुण्य अर्जन करें। आत्मा का कल्याण उद्देश्य होना चाहिए।आप लोग भौतिकता की चकाचौंध में उलझे हैं।मोह को तोड़ कर लक्ष्य प्राप्त करें।
नरकाया के लिए देव भी तरसते हैं। सौ धर्म इंद्र भी मनुष्य काया के लिए तरसते हैं। पर्व का सदुपयोग करें। बचपन से यह किदवंती सुनते आए हैं कि जिसके जीवन में गुरु नहीं, उनका जीवन शुरू नहीं। अपने को गर्व है कि हम महावीर के कुल के नंदन है। महावीर स्वामी के शासन में हम है। वीर शासन जयंती 22 जुलाई सोमवार को मनाएंगे। गुरु दशा और दिशा बदल देते हैं। वैराग्य कब किसके जीवन में उत्पन्न हो जाए, कह नहीं सकते। मरते-मरते भी घर-परिवार दुकान के काम समाप्त नहीं होते, लेकिन धर्म के काम को पहले करें। आचार्य भगवंत की पूजा रविवार 21 जुलाई को सुबह 8 बजे से मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ससंघ के पावन सानिध्य में होगी।