updatenews247.com धंनजय जाट सीहोर 7746898041- क्षणिक क्रोध या आवेश मनुष्य को कभी न सुधरने वाली भूल कर बैठता है। क्रोध से मानसिक तनाव बढ़ता है। क्रोध से मनुष्य का विवेक नष्ट होता है। क्रोध मुर्खता से शुरू होता और कई वर्षो के बाद के पश्चाताप से समाप्त होता है। क्रोध के कारण मनोबल और आत्मबल कमजोर हो जाता है। क्रोध ही अपराधो के मूल कारण बन जाते है। क्रोध से दिमाग गरम हो जाता है जिससे दिमाग में विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ उतरते है और इससे ही मानसिक बीमारियां, शरीर की अनेक बिमारिया हो जाती है जीवन में रूखापन आता है।

क्रोध से ही आपस में सम्बधो में कडवाह्ट आती है , मन मुटाव बढ़ जाता है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंट आबू राजस्थान से आये हुए बी के भगवान भाई ने कहे। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारीज राजयोग सेवाकेंद्र में पधारे हुए इश्वर प्रेमी भाई बहनों को क्रोध मुक्त जीवन हेतु सकारात्मक चिंतन विषय पर बोल रहे थे। भगवान भाई ने कहा कि मन में चलने वाले नकारात्मक विचार, शंका, कुशंका, ईर्ष्या, घृणा, नफरत अभिमान के कारण ही की उत्पति होती है।

राजयोग के अभ्यास द्वारा ही हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों पर जीत प्राप्त कर जीवन को अनेक सद्गुणों से ओतपोत व भरपूर कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि जीवन को रोगमुक्त,दीर्घायु, शांत व सफल बनाने के लिए हमें सबसे पहले विचारों को सकारात्मक बनाना चाहिए। क्रोध से घर का वातावरण ख़राब हो जाता है और पानी के मटके भी सुख जाते है। जहा क्रोध है वहा बरकत नही हो सकती है। इसलिए वर्तमान में क्रोध मुक्त बनाना जरुरी है।

क्रोध करने से ही अनिद्रा , अशांति जीवन में आती है तनाव बढ़ता है जिससे व्यक्ति नशा व्यसनों के अधिन हो जाता है। उन्होंने क्रोध मुक्ति बनने के उपाय बताते हुए कहा कि सकारात्मक चिंतन से ही हम सहनशील बन क्रोध मुक्त बन सकते है। सकारात्मक चिन्तन से हमारा मनोबल को मजबूत बन सकता हैं। सकारात्मक चिन्तन द्वारा ही हम क्रोध मुक्त और तनाव मुक्त जीवन जी सकते हैं। सकारात्मक चिंतन से सहनशीलता आती जिससे कई समस्याओं का समाधान हो जाता है। है। मन के विचारों का प्रभाव वातावरण पेड़-पौधों तथा दूसरों व स्वयं पर पड़ता हे।

यदि हमारे विचार सकारात्म है तो उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। भगवान भाई जी ने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्रोत बताते हुए कहा कि वर्तमान में हमे आध्यात्मिकता को जानने की जरुरी है आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा स्वयं को यर्थात जानना, पिता परमात्मा को जानना, अपने जीवन का असली उद्देश्य को और कर्तव्य को जानना ही आध्यात्मिकता है। आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा सकारात्मक विचार मिलते है जिससे हम अपने आत्मबल से अपना मनोबल बढ़ा सकते है।

उन्होंने कहा कि सत्संग से प्राप्त ज्ञान ही हमारी असली कमाई है। इसे न तो चोर चुरा सकता है और न आग जला सकती है। ऐसी कमाई के लिए हमें समय निकालना चाहिए। सत्संग के द्वारा ही हम अच्छे संस्कार प्राप्त करते हैं और अपना व्यवहार सुधार पाते हैं। स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र की संचालिका पंचशिला बहन जी ने राजयोग की विधि बताते हुआ कहा कि स्वंम को आत्मा निश्चय कर चाँद, सूर्य, तारांगण से पार रहनेवाले परमशक्ति परमात्मा को याद करना, मन-बुद्धि द्वारा उसे देखना, उनके गुणों का गुणगान करना ही राजयोग हैं।

राजयोग के द्वारा हम परमात्मा के मिलन का अनुभव कर सकता हैं। उन्होंने कहा कि इंद्रियों पर काबू कर सकते हैं। क्रोध मुक्त और तनाव मुक्त रहने के लिए हमें रोजाना ईश्वर का चिंतन, गुणगान करना चाहिए। सकारात्मक चिन्तन से हम जीवन की विपरीत एवं व्यस्त परिस्थितियों में संयम बनाए रखने की कला है।

कार्यक्रम में राजयोग शिक्षिका बी के संतोष बहन जी ने राजयोग की महत्ता बताई और कहा कि राजयोग के द्वारा ही हम अपने संस्कारों को सतोप्रधान बना सकते हैं।
कार्यक्रम कि शुरुवात में गुलदस्ता देकर, पगड़ी और पट्टा पहनाकर बी के भगवान भाई का स्वागत कर कार्यक्रम कि शुरुवात किया गया। कार्यक्रम के अंत में मेडिटेशन किया। बी के ज्योति बहन , बी के आकाश भाई , बी के महेश भाई के साथ काफी भाई बहनों ने इस कार्यक्रम का लाभ लिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed

error: Content is protected !!