updatenews247.com धंनजय जाट सीहोर 7746898041- जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में आगामी 20 नवंबर सोमवार को गोपाष्टमी को बृजधाम की झलक दिखाई देगी। मंदिर परिसर में भव्य रूप से गोवर्धन सजाया जाएगा और 56 भोग से बनेंगे गिरिराज जी। इसकी तैयारियों को लेकर भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा के सानिध्य में भव्य आयोजन किया जाएगा। इसके लिए यहां पर आने वाले भक्तों और समिति की महिला परिसर में गो पूजन और रंगोली आदि बनाई जाएगी।

इस संबंध में जानकारी देते हुए समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि आगामी 20 नवंबर को सुबह 10 बजे अन्नकूट दर्शन के गौमाता एवं गोवर्धन नाथ जी आरती के पश्चात दोपहर बारह बजे से दोपहर दो बजे तक महा प्रसादी का वितरण किया जाएगा। दीपोत्सव के पश्चात हर साल यहां पर समिति के द्वारा भव्य आयोजन किया जाता है। इस मौके पर मंदिर परिसर में 56 प्रकार की सामग्री से गिरिराज गोवर्धन का प्रतिरूप तैयार किया जाएगा। इसके अलावा रंगोली आदि का निर्माण किया जाएगा। भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने अपने संदेश में कहा कि अन्नकुट महोत्सव सनातन धर्म का सबसे बड़ा पर्व है।

भगवान श्रीकृष्ण को 56 या 108 तरह के पकवानों का भोग लगाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि अन्नकूट भी गोवर्धन पूजा का समारोह है। 56 प्रकार के मिष्ठान पकवान का भोग अर्पित किया जाता है, इससे ही विभिन्न आकृतियां उकेरकर झांकी सजाई जाती है इसलिए इसे अन्नकूट महोत्सव कहते हैं, अन्नकूट प्रसादी का बड़ा महत्व होता है क्योंकि इसमें कई प्रकार की सब्जिय़ां अन्य प्रकार के भोग बनाए जाते है। उस प्रसाद का स्वाद ही अलग होता है। गो मतलब लक्ष्मी और वर्धन का मतलब है वृद्धि है। मां लक्ष्मी की जो वृद्धि करने वाले है वो गोवर्धन होते है। महोत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालु आस्था के साथ गोपाष्टी पर्व मनाऐंगे और गो माता की पूजा अर्चना की जाएगी।

अन्नकूट महोत्सव मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती। वही मान्यता है कि नए अनाज का लगता है भोग इस दिन भगवान के निमित्त छप्पन भोग बनाया जाता है। कहते हैं कि अन्नकूट महोत्सव मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। अन्नकूट महोत्सव इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन नए अनाज की शुरुआत भगवान को भोग लगाकर की जाती है। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनकी पूजा की जाती है और गौमाता को मिठाई खिलाकर आरती उतारते हैं। इसके बाद परिक्रमा भी करते हैं।

इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पूजा करने की सलाह दी थी
प्रचलित कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण जब वृंदावन वासियों को देवराज इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पूजा करने की सलाह दी थी तो सभी ने उनकी बात मान ली थी। इस बात को जानकर देवराज इंद्र बहुत क्रोधित हुए थे और उन्होंने मूसलाधार बारिश शुरु कर दी। तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया था। करीब 7 दिन तक गांव वाले उसी पर्वत के नीचे बैठे रहे। तब देवराज इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। 7 दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा।

इसके बाद से ही प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर अन्नकूट महोत्सव मनाया जाने लगा। भगवान के लिए 56 विशेष खाद्य पदार्थों की सूची तैयार करते हैं, जिन्हें छप्पन भोग भी कहा जाता है। भोजन का यह व्यापक आयोजन अपने आराध्य के प्रति लोगों की अटूट भक्ति को दर्शाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के पेय, अनाज, फल और सूखे मेवे, और मिठाइयां शामिल हैं। अपने इष्ट की आराधना में भक्त 56 विभिन्न प्रकार के प्रसाद बनाते हैं और उन्हें भगवान को भेंट करते हैं।

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