धंनजय जाट/आष्टा। आज चतुर्थ दिवस की कथा में भगवान शिव और सती का विवाह और दक्ष यज्ञ के बारे में पंडित सुनील कृष्ण शास्त्री ने बताया कि शिव ही यज्ञ है और यज्ञ ही शिव है सारी सृष्टि का आदि और अंत भी शिव है।

कल से श्रावण मास का प्रारम्भ हो रहा है, इस धरती पर भगवान शिव जैसा कृपालु, दयालु कोई दूसरा देव नहीं है, जल, दूध, वेलपत्र, प्रणाम मात्र से ही ये प्रसन्न होकर मनवांछित फल दे देते हैं, यद्यपि स्वयं अभाव में, फकीरी में रहते हैं लेकिन भक्तों के अभाव और कष्टों को हर लेते हैं।

भगवान् शिव को महाकाल भी कहा जाता है, संहार करने वाला, विध्वंश करने वाला भी कहा जाता है, इसे समझने की आवश्यकता है, ब्रह्मा जी जन्म देते हैं, भगवान विष्णु पालन करते हैं, भगवान शिव मिटाते हैं, विध्वंश भी तो सृजन का ही हिस्सा है, चीजें ना मिटेंगी तो नयी प्रगट कैसे होंगी ?

मृत्यु भी तो जन्म का ही एक अंग है, पुरानी चीजें अगर ना मिटेंगी तो प्रकृति में नवीनता ना रह पायेगी ? मिटने के स्वभाव के कारण ही हर चीज पुनः नई लगने लगती है। शिव सृजन के लिए ही विध्वंश करते हैं, श्रावण मास में शिवजी को जल जरूर चढ़ाएं, दुग्धाभिषेक करें।

ये श्रावण मास आपको प्रभु चरणों में श्रद्धा और विश्वास देने के साथ-साथ आपकी भक्ति का वर्धन करने वाला भी हो। आज इस अवसर पर घनश्याम जांगड़ा, गुलाब बाई ठाकुर, रमेश परमार, ललित झंवर,

कल्लू मुकाती, पवन पहलवान, रामचंद्र शर्मा, महिला मंडल से ज्योति चित्तौड़ा, मीना महेश्वरी, शारदा प्रजापति, अरुणा पांडिया, हेमलता, राजकुमारी, रंजीता सांवरिया, सीमा वर्मा, अनिता, मधु गहलोत, धनकुंवर नामदेव, रेशम नामदेव सहित बडी संख्या मैं श्रद्धालुगण उपस्थित थे।

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