धनंजय जाट/आष्टा:- प्रगति परिवार के साथ पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार ने शिरोधार्य किया कलश संयम, साधना, स्वाध्याय और सार्थकता के शुभ संकल्प से पावन वर्षायोग सम्पन्न हो इस भावना से रत्नत्रय के प्रतीक रूप में चातुर्मास कलश की स्थापना की जाती है।
सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र और सम्यक ज्ञान को ही रत्नत्रय कहा गया है। उत्कृष्ट साधु रत्नत्रय धारण करके स्वयम तो आत्म कल्याण की राह पर चलते ही हैं वो अपनी धर्म चर्या से श्रावकों को भी सन्मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं।
कलश स्थापना का जितना लाभ पुण्यानुबन्धी श्रावकों को मिलता है उतना ही इसकी अनुमोदना करने वाले श्रावकों को भी लाभ होता है। चार माह तक मुनियों के वर्षायोग के प्रतीक रूप में मंदिर में स्थापित कलश में साधु वृन्द के तपोबल की शक्ति समाहित होती है। लाभार्थी श्रावक जब इसे अपने घर पर लाकर स्थापित करते हैं तो उनकी यह जवाबदेही बन जाती है कि वो धर्म, परिवार और समाज के प्रति अधिक निष्ठा के साथ धर्मानुकूल कर्त्तव्यों का पालन करें।
यह दिव्य संदेश आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि भूत बली सागरजी महाराज ने चातुर्मास समापन पर दिये। मुनिश्री भूतबलि सागरजी महाराज के ससंघ चातुर्मास का समापन दीपावली पर हुआ। चातुर्मास स्थापना के लिए संकल्पी श्रावकों को मुनि श्री के सानिध्य में कलश वितरित किये गए। प्रमुख लाभार्थी अनिल प्रगति, सुनील प्रगति, प्रदीप प्रगति, एडवोकेट पल्लव प्रगति, वास्तुविद प्रशाल प्रगति टोनी के साथ ही पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार ने मुनि श्री के सानिध्य में प्रमुख कलश धारण किया।
पूर्व नपाध्यक्ष ने प्रगति परिवार के साथ कलश शिरोधार्य करने के पूर्व किला मन्दिर में भगवान के दर्शन कर श्रीफल अर्पित किए। किला मन्दिर में समारोह पूर्वक कलश वितरण के पश्चात सभी श्रावको ने गाजे बाजे के साथ कलशों को अपने घर ले कर स्थापित किया।
इस अवसर पर सुरेंद्र जैन शिक्षक, रमेश जैन नीलबड़, नरेंद्र गंगवाल, छोटमल जैन, अशोक आस्था, अरुण जैन डेयरी, श्रीमती नन्ही बाई जैन, श्रीमति ममता जैन, श्रीमति आरती जैन, चैनकुंवर जैन अयांश, दिव्यांश प्रगति सहित अनेक जैन श्रावक उपस्थित थे।