आष्टा। संसार में अनंत जीव एसे हैं जिनके पास मन और वचन नहीं है, कई जीव ऐसे हैं जिनके पास काया और वचन है पर मन नहीं है। वही हम ऐसे पुण्य साली जीव हैं कि हमारे पास मन, वचन और काया तीनों हमे प्राप्त हुए हैं। मन से जीव पाप और धर्म दोनों कर सकता हैं। मन वाले ही मोक्ष जा सकते हैं। मन का बहुत महत्व है। मन का कार्य है सोचना, विचार करना और चिंतन करना। उक्त उदगार श्री महावीर भवन स्थानक में विराजित पूज्य मुनि अणु वत्स श्री संयत मुनि जी महाराज साहब ने आज प्रवचन के दौरान उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कहे। पूज्य महाराज श्री संयत मुनि ने आज कहा कि चिंतन दो प्रकार के होते हैं एक शुभचिंतन ओर दूसरा अशुभ चिंतन। जो व्यक्ति अशुभ चिंतन ज्यादा करता है वह कर्मों का बंध करता है। मन हमारा जो है वह हमारा मित्र भी बन सकता है और शत्रु भी बन सकता है। यह अपने हाथ में की हम मन को मित्र बनाएं या शत्रु। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक बीज से हजार बीज पैदा हो सकते हैं। एक दीये से हजार दीये जलाए जा सकते हैं। चिंता ना करे कि हम नही होंगे तो हमारे पीछे क्या होगा। महाराज श्री ने कहा की संघ के प्रति हमेशा समर्पण के भाव रखे। आज हर व्यक्ति शांति चाहता है,लेकिन शांति को प्राप्त करने में कई बाधाएं भी है। उन बाधाओं को समझना होगा। महाराज श्री ने कहा भविष्य की चिंता को छोड़ो ओर वर्तमान की चिंता करो। आज जबरन की चिंता कर कर्मों का बंध करता है। उन्होंने कहा कि असफलता से हमेशा टेंशन और तनाव होता है, लेकिन हमें तो शांति प्राप्त करना है तो टेंशन ना पालो ओर तनाव मुक्त रहो। महाराज श्री ने कहा कि चिंता का मूल कारण समस्या है। आज जितना वातावरण में परिवर्तन हो रहा है, उतना ही टेंशन के साथ समस्याएं भी बढ़ रही है। पूज्य संयत मुनि जी के पूर्व पूज्य मुनि श्री सुभेष मुनि जी ने प्रवचन के दौरान कहा की गौतम स्वामी ने मन को घोड़े की उपमा दी है। आज कहते है महाराज साहब धर्म मे मन नही लगता है,मन लगता नही उसे लगाना पड़ता है। जो केवलज्ञानी होते है उनका ज्ञान असीमित होता है। जीव आरुपि है,उसे दिखाया नही जा सकता है। तप से कर्मो की निर्जरा होती है।
आज सुश्रावक राहुल रांका की 9 उपवास की तपस्या पूर्ण हुई। वही तपस्या में लगातार आगे बढ़ रहे श्रावक श्राविकाओं ने पचकान लिये।

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