✍️आष्टा/ धनंजय जाट📲77468-98041
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को लेकर प्रदेश सहित आष्टा में लगे कोरोना कर्फ्यू की वजह से देसी फ्रिज कहलाने वाले मिट्टी के मटके (घड़ा) की बिक्री पर भी ग्रहण लग गया है, जिससे इसे बनाने वाले कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। गर्मी के दिनों में मटके का मिट्टी की सौंधी खुशबू वाला पानी लोगों के लिए अमृत के समान होता है। वैसे आज के दौर में लोग फ्रिज का पानी ज्यादा पीते हैं लेकिन अब भी काफी लोग अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग मटके का पानी-पीना ठीक समझते हैं।
दअरसल फ्रिज के पानी के मुकाबले मटके के पानी की तासीर ज्यादा ठंडी होती है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही देसी फ्रिज यानी मटकों की खरीददारी शुरू हो जाती है। इससे मटके बनाने वाले कुम्हारों और इसे बेचने वालों के परिवार का साल भर गुजर-बसर होता है लेकिन इस बार गर्मी आने के बावजूद बीते वर्ष कोविड 19 के चलते लगे लोकडाउन और इस वर्ष फिर कोरोना की दूसरी लहर के चलते लगे कोरोना कर्फ्यू के कारण मटके बनाने वाले कुम्हार और विक्रेता परेशान हैं। कोरोना कर्फ्यू के कारण कुम्हारों की मेहनत पर पानी फिर गया है ।
प्रत्येक वर्ष अप्रैल महीने में मटके की अच्छी खासी बिक्री शुरू हो जाती थी इसलिए आष्टा सहित खातेगांव, कन्नौद सहित दूर दूर के छेत्रो से कुम्हार मटके बेचने के लिये आते है लेकिन बीते वर्ष लगे वर्ष लॉकडाउन और इस बार लगे कोरोना कर्फ्यू की वजह से बिक्री काफी प्रभावित हुई है। ऐसे में साल भर से मटके की बिक्री का इंतजार कर रहे कुम्हारों के धंधे पर कोरोना महामारी (कोविड -19) का ग्रहण ही लग गया है।
मटका बनाने वाले कुम्हारों के अनुसार कोरोना महामारी से बचाव के लिए लगाए कोरोना कर्फ्यू और लॉकडाउन के कारण मटको बिक्री पर विराम लग गया है। लिहाजा लोगो आवाजाही बंद होने के कारण मटकों की बिक्री पर बहुत बड़ा असर हुआ है जिसके कारण मटके बनाने में लगने वाली लागत राशि और मजदूरी तक नही निकल पा रही है
मात्र 80 से 250 रुपये तक के मूल्य में बिकने वाले इस देसी फ्रिज की बिक्री अमूमन हर वर्ष अप्रैल महीने की शुरुआत में होने लगती थी लेकिन बीते वर्ष की तरह इस वर्ष भी ऐसा नहीं हो पाया। क्योंकि लॉकडाउन,कोरोना कर्फ्यू की वजह से बिक्री पर काफी असर पड़ा है।
मटके बनाने वाले कुम्हारो के अनुसार हर वर्ष इस सीजन के लिए दीपावली के बाद से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं और जब मेहनत का फल मिलने का वक्त आया तब लॉकडाउन,कोरोना कर्फ्यू की वजह से रोजी-रोटी की समस्या बढ़ गई।
गर्मी की आहट के साथ ही पूरे प्रदेश में मिट्टी के मटकों की दुकानें सजनी शुरू हो जाती थी। लेकिन इस बार हालात यह है कि दुकानों पर ग्राहक न आने के कारण दुकानदारों की परेशानी बढ़ गई है क्योंकि बहुत से दुकानदारों ने तो बाजार से पैसा उठाकर बाहर से मटके मंगवाए हैं। वहीं, दूसरी ओर ग्राहक न आने से उन्हें उल्टा नुकसान भुगतना पड़ रहा है।
लॉकडाउन कोरोना कर्फ्यू से धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है। साप्ताहिक बाजारों में मटके बिक जाते थे लेकिन इस बार फिर धंधा चौपट हो गया है।
*सरकार से आर्थिक सहायता की गुहार*
मटके बनाने वाले कुम्हार ने बताया कि 2 साल से मटके बनाने में लगने वाली लागत राशि, मजदूरी तक नहीं निकल पा रही है और बड़ी परेशानी है इसलिए सरकार आर्थिक सहायता करे ।
*शादी, ब्याह में भी नही चला मटकों का सीजन*
मटके बेचने वाले आष्टा निवासी उमेश ने बताया कि कोरोना कर्फ्यू में लोगो का आना जाना बंद है इसलिए मटके के बिक्री पर बड़ा असर हुआ है वही शादी,ब्याह में मटके बिक जाते थे लेकिन इनमें बिक्री नही हो पाई
*दो साल से हो रहा है नुकसान*
खातेगांव से आष्टा मटके का व्यापार करने आई आरती बताती है कि पिछले साल ओर इस साल लोगो के आने जाने पर रोक लगने से मटकों की बिक्री बिल्कुल ना के बराबर हो रही यह तक मटकों की लागत राशि तक नहीं निकल रही है

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