

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- त्याग और संयम ही सच्चा अलंकार है,सिद्धचक्र विधान आत्मकल्याण का सेतु है,जो इस पुरुषार्थ से जुड़ता है, वही अपने मोक्षरूपी कपाट खोलने में सफल होता है- मुनिश्री प्रवर सागर का
फोटो निर्जला आठ उपवास की कठिन तपस्या करने वाले श्री बड़जात्या का सम्मान करते हुए समाजजन
आष्टा। श्री 1008 चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर, अरिहंत पुरम,आष्टा की पावन भूमि पर आस्था और श्रद्धा का महापर्व श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान परम पूज्य आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री प्रवर सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में एवं

ब्रह्मचारी श्री श्रीपाल भैय्या (अमलाह) के कुशल निर्देशन में सम्पन्न हुआ।विश्व शांति और कल्याण की कामना के साथ हुए इस विधान में भक्तों ने हवन, पूजन एवं आराधना के माध्यम से सिद्धों की भक्ति-भाव से स्तुति की। मुनिश्री प्रवर सागर जी मुनिराज के मंगल प्रवचन का सार हैं- जिसमें उन्होंने सिद्धचक्र विधान, मोक्षमार्ग, संयम और चातुर्मास की आध्यात्मिक उपलब्धियों का अत्यंत प्रेरणादायी विवेचन किया है।मुनिश्री प्रवर सागर जी महाराज ने श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के समापन अवसर पर कहा “इस संसार पर दृष्टि उन्हीं की पड़ती है जिन्होंने अपने मोक्षरूपी कपाट और भावरूपी कपाट खोल लिए हैं।ऐसे जीव अनंत सुख का अनुभव करते हैं,

जबकि जिनके मोक्षरूपी कपाट बंद हैं, वे इंद्रिय-सुखों के बंधन में बंधे रहते हैं।”मुनिश्री प्रवर सागर जी महाराज ने प्रवचन में कहा — “विधान, तप और संयम आत्मशुद्धि के साधन हैं। जो आत्मा को साध लेता है, वही संसार को साध लेता है।” समाजजनों ने इस आयोजन को आस्था, तप और भक्ति का महापर्व बताया।मुनिश्री ने कहा कि सिद्धचक्र विधान में बैठना कोई सामान्य पुरुषार्थ नहीं है।हवन, पूजन, अभिषेक और जिनवाणी का श्रवण किया,ये सब आत्म कल्याण के महान साधन हैं।इस विधान में उपस्थित हर श्रद्धालु ने अपने भीतर के मोक्ष व भावरूपी पुरुषार्थ के द्वार खोलने का कार्य किया है।उन्होंने आगे कहा कि –“चातुर्मास का निर्विघ्न रूप से संपन्न होना सोने पर सुहागा है।

प्रेम, वात्सल्य और भक्ति की अपार भावना से यह चातुर्मास मंगलमय बना है। मुनिश्री ने कहा कि इस चातुर्मास की सच्ची उपलब्धि है त्याग, संयम और साधना की भावना।” मुनिश्री ने बताया कि कई श्रद्धालुओं ने इस चातुर्मास में संयम धारण किए हैं ।किसी ने 2 प्रतिमा तो किसी ने 4 प्रतिमा धारण की।अलीपुर समाज के अध्यक्ष धर्मेंद्र जैन ने आजीवन रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग कर समाज के लिए प्रेरणास्रोत कार्य किया है।त्याग और संयम से ही पुण्य बढ़ता है, और इन्हीं से आत्मा अरिहंत व सिद्ध बनने की दिशा में अग्रसर होती है।मुनिश्री ने विश्वास विनायका की भक्ति की सराहना करते हुए कहा कि“वे प्रतिदिन दोपहर 3 बजे स्वाध्याय के समय नियमित उपस्थित रहे यह उनका स्वाध्याय के प्रति ललक अद्भुत है।उन्होंने भी दो प्रतिमा धारण की है।

”मुनिश्री ने सभी को यह प्रेरणा दी कि “साधु का सानिध्य बड़ा दुर्लभ होता है।कभी भी दिगंबर साधु को स्वार्थ की दृष्टि से मत देखना।दिगंबर साधु की भावना निर्मल होती है। वे स्वयं का भी कल्याण करते हैं और जो उनके पास आता है उसका भी कल्याण करने की प्रेरणा देते हैं।वे नाव के समान हैं, जो स्वयं भी पार होते हैं और दूसरों को भी पार लगाते हैं।”अंत में मुनिश्री ने कहा “यदि पूरा आचार्य संघ आष्टा में चातुर्मास करे, तो यह क्षेत्र और भी पुण्यभूमि बन जाएगा।अलीपुर समाज बहुत समर्थ और सशक्त समाज है, जो साधु-संघ के आगमन से निरंतर धर्ममार्ग पर अग्रसर हो रहा है।”इस अवसर पर समाजजनों ने मुनिश्री के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित की और विश्व कल्याण की मंगलकामना की।

विधान समापन के उपरांत राजकुमार जैन बड़जात्या कोटा, राजस्थान के 8 उपवास एवं श्रीमती अर्पिता प्रमोद जैन “खुशबू” के 3 उपवास का पारणा संपन्न हुआ।उल्लेखनीय है कि श्री बड़जात्या ने दशलक्षण पर्व पर निर्जला 10 उपवास की कठिन तपस्या भी की थी।विधान में सहयोग करने वाले सभी श्रद्धालुओं का समाज द्वारा सम्मान किया गया।सामूहिक पारणा श्री संत निवास, अरिहंत पुरम पर संपन्न हुआ।पारणा के पुण्यार्जक:राजेश जैन जीजाजी,सुरेश जैन लक्षपती, धर्मेंद्र जैन अध्यक्ष, इंदरमल जैन कोषाध्यक्ष, आशीष जैन महामंत्री, वीरेंद्र जैन शिक्षक, महेंद्र जैन अनगौत्री,अनिल जैन लक्षपती,शैलेंद्र जैन शिल्पा,कोमल जैन लक्षपती, प्रमोद जैन खुशबू, अमित जैन अनगौत्री, अखिलेश जैन आदि रहें।आयोजन में श्री चंद्रप्रभ मंदिर समिति एवं मुनि सेवा समिति, अरिहंत पुरम, आष्टा का विशेष योगदान रहा।संचालन अजय जैन ने किया।
