प्राचीन श्री नाथ मंदिर से निकली भगवान शालिग्राम की बारात, कुशवाहा समाज ने किया भव्य स्वागत

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- आष्टा में दीपावली के पश्चात देवउठनी ग्यारस पर्व पर नगर में धार्मिक उत्साह और भक्ति भाव का माहौल रहा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी प्राचीन श्री नाथ हवेली मंदिर में भगवान तुलसी–शालिग्राम विवाह का भव्य आयोजन संपन्न हुआ। भगवान शालिग्राम जी की बारात प्राचीन श्री नाथ मंदिर से बड़े ही धूमधाम। बैंड बाजे भक्ति भाव के साथ निकाली गई, जो बड़ा बाजार, प्रगति गली से होती हुई बुधवारा पहुँची। यहां कुशवाहा समाज

अध्यक्ष नरेंद्र कुशवाहा एवं मित्र मंडली ने भव्य स्वागत किया। समाज के सदस्यों ने मंदिर समिति के प्रमुख वैष्णवजनों को भगवान श्रीकृष्ण नाम लिखे दुपट्टे पहनाकर सम्मानित किया तथा पुष्प वर्षा की। इस अवसर पर अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा की प्रदेश उपाध्यक्ष श्रीमती गीता नरेंद्र कुशवाहा ने भगवान शालिग्राम जी की आरती उतारी, श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया। तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह- तुलसी जी वास्तव में देवी वृंदा का अवतार मानी जाती हैं।

वृंदा एक महान पतिव्रता स्त्री थीं, जो असुरराज जालंधर की पत्नी थीं। उनकी पतिव्रता शक्ति के कारण देवता जालंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। भगवान विष्णु द्वारा जालंधर का वध- भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा हेतु जालंधर का वध करने का निश्चय किया। जालंधर को हराने के लिए विष्णु जी ने वृंदा का रूप भ्रमित कर दिया, जिससे उनकी पतिव्रता शक्ति भंग हुई। परिणामस्वरूप जालंधर युद्ध में मारा गया। वृंदा को जब यह पता चला कि उनके साथ छल हुआ है, तो उन्होंने भगवान विष्णु को शाप दिया- “हे विष्णु!

तुम भी पत्थर के समान निर्जीव हो जाओ।” इस शाप के कारण विष्णु जी शालिग्राम शिला रूप में प्रकट हुए। वृंदा का तुलसी रूप में रूपांतरण- वृंदा ने जालंधर के वियोग में अपना शरीर त्याग दिया। विष्णु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया- “हे देवी, तुम पृथ्वी पर तुलसी के रूप में पूजित होगीं, और बिना तुम्हारे मेरे किसी भी पूजन या विवाह का फल नहीं मिलेगा।” तभी से वृंदा तुलसी देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। तुलसी- शालिग्राम विवाह भगवान विष्णु ने अपने शालिग्राम स्वरूप में तुलसी से विवाह किया।

यह विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी (या द्वादशी) को हुआ माना जाता है। इसी दिन तुलसी विवाह उत्सव मनाया जाता है, जो देवउठनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। तुलसी विवाह के साथ ही देवउठनी एकादशी से चार महीने के “चातुर्मास” का अंत होता है और शुभ विवाहों का आरंभ होता है। तुलसी जी को “विष्णुप्रिया” कहा जाता है, यानी भगवान विष्णु की प्रिय। जो भक्त तुलसी–शालिग्राम विवाह करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्रीनाथ मंदिर हवेली के वैष्णव जनों का तुलसी विवाह शालिग्राम जी की बारात का

स्वागत कुशवाहा समाज अध्यक्ष नरेंद्र कुशवाहा पूर्व पार्षद मित्र मंडली एवं मां पार्वती धाम गौशाला कोषाध्यक्ष संजय सुराणा, वरिष्ठ व्यवसायिक मनोज कुशवाहा, अमरचंद कुशवाहा पटेल, मधुसूदन धरवा, प्रतीक महाडिक, शुभम कुशवाहा, शंकर बोडाना, शांतिलाल मालवीय, राज कुशवाहा सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे। मातृशक्ति में पार्वती परसराम कुशवाहा, अनीता बबनराव महाडिक, पूजा सुशील कुशवाहा, निता प्रतीक महाडिक सहित बड़ी संख्या में महिलाओं की सहभागिता रही। भजन, कीर्तन और जयघोषों के बीच भगवान तुलसी–शालिग्राम विवाह समारोह भक्तिमय वातावरण में संपन्न हुआ।

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