ज्योति पर्व दीवाली हर्ष और उल्लास से मनाया गया

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- धनतेरस से शुरू हुआ ज्योति पर्व का दिवाली मुख्य दिवस अंचल में अत्यंत हर्ष और उल्लास से मनाया गया , पारंपरिक पूजा के बाद श्रद्धालु जन का आपस में मेल जोल का सिलसिला देर रात तक एक दूसरे के घरों और प्रतिष्ठानों पर जाकर बधाई शुभकामनाओं के साथ मीठा मुंह करा कर चलता रहा, रंगोली और आतिश बाजी त्यौहार की खुशी को चौगुना कर रही थी, पूर्व नपाध्यक्ष एवं प्रभु प्रेमी संघ के संयोजक कैलाश परमार एवं उनका मित्र मंडल तथा परिवार जन आगंतुक जनों की आव भगत कर मिठाई खिला कर स्वागत अभिनंदन कर रहे थे, पूर्व नपाध्यक्ष परमार ने सभी अंचल वासियों को दिवाली की बधाई देते हुए उनके आत्मीय समारोह में पधारने वाले सुधी जनों का आभार व्यक्त किया है

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- भोगोपभोग परिमाण व्रत में दो प्रकार से त्याग का विधान किया गया है ।नियमरूप और यमरूप। अल्पकाल के लिए जो त्याग किया जाता है,उसे नियम कहते हैं और आजीवन के लिए जो त्याग किया जाता है उसे यम कहते हैं। हिंसा के कारणभूत फरसा, तलवार, कुदाली, आग, अस्त्र-शस्त्र, विष और सांकल आदि के देने को ज्ञानी जन हिंसादान नाम का अनर्थ – दण्ड कहते हैं।जिसके जीवन में नियम,संयम है उसका जीवन सफल है और जिनके जीवन में नियम संयम नहीं उनका जीवन कटी पतंग की तरह है।भोगोपभोग परिमाण व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार कहे गए हैं

विषय रूप विष के सेवन से उपेक्षा नहीं होना अर्थात इंद्रियों के विषय सेवन में आसक्ति बनी रहना, पूर्व में भोगे हुए विषयों का बार-बार स्मरण करना ,वर्तमान विषयों में अतिलोलुपता रखना, भविष्यकाल में विषय सेवन की अतितृष्णा या गृद्धि रखना और नियतकाल में भी भोगोपभोग की वस्तुओं का अधिक मात्रा में अनुभव करना अर्थात उन्हें अधिक भोगना। इन पांचो प्रकार के अतिचारों के सेवन से व्रत मलिन एवं सदोष होता है।इंद्रियों पर कंट्रोल करें बिना आपको अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं होता है।आप जितना सहन करना सीखोगे यह शरीर उतना सहन करेगा।शरीर में हर परिस्थिति को सहन करने की शक्ति है। त्याग करने से आप पापों से बच सकते हैं।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने रत्नकरण्डक श्रावकाचार ग्रंथ का स्वाध्याय कराते हुए कहीं। आपने बताया कि फालतू की बात करने से पाप आश्रव होता है।मजाक करने का कहीं भी शास्त्रों में उल्लेख नहीं है। आवश्यकता से अधिक वस्तुओं को रखने में दोष लगता है,पाप आश्रव होता है।आप अधिक परिग्रह नहीं रखें।मन, वचन,काया से अतिचार लग रहा है,यह दुःख देने वाला है।त्याग करोंगे तभी पुण्य अर्जित होगा। अनंत संसार का कारण बनता है आपकी सोच।

मुनिश्री ने कहा जिससे राग -द्वेष बढ़ रहा है उसे छोड़ें। अनादिकाल से आत्मा को व्यक्ति ठग रहा है। आत्मा को परमात्मा बनाने का काम करें।गौतम गणधर को अपने में रमने पर केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण कल्याणक महामहोत्सव आ गया। मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने कहां वचन से दूसरे का कुछ बिगड़ें या न बिगड़ें, लेकिन आपका परिणाम अवश्य बिगड़ेगा। व्यक्ति अहंकार के वशीभूत होकर सब कुछ भूल जाता है। प्रयोजन है तो विवेक से करें।आप व्यापार व काम करते समय भी धर्म – ध्यान कर सकते हैं।आप भाव से भी पुण्य अर्जित कर सकते हैं।गुणवृत की चर्चा कर रहे हैं, जो व्रत लिए है उनमें वृद्धि करें।

ऐसा व्रत अंगी- कार करें गुणों में वृद्धि करने के लिए आचार्यों ने गुणों को लिखा है। जितनी वनस्पति का उपयोग करते हैं उसके अलावा बाकी का त्याग करें।व्यक्ति के हाथों में है पापों से बचने का,आप आष्टा से बाहर नहीं जा रहें तो बाहर जाने का त्याग करोंगे तो पुण्य अर्जित होगा, विवेक हर क्रिया में लगाएं।जैसे व्यवहार को चाहते हैं वैसा ही व्यवहार आप दूसरे के साथ करें। संकल्प हिंसा का त्यागी है तो पुण्य अर्जन होगा।यह जीव दूसरे जीव के लिए उपकारी है।पांच इंद्रियों के विषय भूत जो भोजन, वस्त्र आदि के पदार्थ एक बार भोग करके छोड़ दिए जायें,वे भोग कहलाते हैं और जो एक बार भोग करके भी पुनः भोगने योग्य होते हैं,वे उपभोग कहलाते हैं। अर्थात भोजनादि पदार्थ भोग है और वस्त्रादि उपभोग है।

जो पदार्थ खाने योग्य नहीं है वह अभक्ष है। बहुत सारे जीवों की हिंसा हो उसे छोड़ना चाहिए। व्यक्ति अपने आपको ठग रहा है। समाज ने किया सम्मान- आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सजग सागर मुनिराज की सांसारिक जीवन की बहन श्रीमती कांता जैन, विजय कुमार जैन,भांजा गौरव जैन निवासी उदयनगर इंदौर मुनिश्री सजग सागर जी एवं सानंद सागर मुनिराज जी के दर्शन करने पधारे। सभी का समाज की और से धर्म सभा के पश्चात समाज के संरक्षक रमेशचन्द्र जैन आदिनाथ, चातुर्मास समिति महामंत्री धीरज जैन, श्रीमती ममता जैन, श्रीमती गुणमाला जैन, श्रीमती मीना जैन आदि ने शाल ओढ़ाकर मोतियों की माला पहनाकर स्वागत व सम्मान किया।

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