
धंनजय जाट आष्टा 7746898041- मध्य प्रदेश राज्य कर्मचारी संघ तहसील इकाई आष्टा के अध्यक्ष महेंद्रसिंह मालवीय का आज जन्मदिन शा कन्या उ मा वि आष्टा में मनाया गया । विद्यालय में पदस्थ महेंद्र सिंह मालवीय मुख्य लिपिक के पद पर पदस्थ होने के साथ मध्य प्रदेश राज्य कर्मचारी संघ के तहसील के अध्यक्ष भी है । शिक्षा विभाग के सभी अधिकारीयो कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा जन्मदिन मनाया गया । इस अवसर पर सकल हिंदू समाज के अध्यक्ष अनिल कुमार श्रीवास्तव, धर्माधिकारी गजेंद्र शर्मा बीआरसी और संकुल प्राचार्य अजबसिंह राजपूत मॉडल के प्राचार्य भगवान सिंह राजपूत, प्राचार्य सितवत खान,राकेश प्रजापति, महेश मुंदीखेड़ी एवं अन्य सामाजिक और शिक्षा जगत के कर्मचारी अधिकारी उपस्थित रहे सभी कर्मचारियों ने श्री मालवीय को बधाई दी।

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- काम, क्रोध, लालच, और मोह जैसी बुराइयों की वजह से व्यक्ति सही गलत का भेद भूल जाता है ।और गलत काम करने से पीछे नहीं हठता।ये सभी नरक के रास्ते हैं। गोस्वामी जी लिखते हैं ।काम, क्रोध, मद, लोभ सब नाथ नरक के पथं। सब परिहर रघुबीरही, भजहु भजेइ जेही संत।उक्त प्रेरक विचार ग्राम भील खेड़ी बरामद में चल रही सात दिवसीय संगीत में श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस मालवा क्षेत्र के सुप्रसिद्ध भागवत कथाकार संत श्री मिट्ठूपुरा सरकार द्वारा व्यक्त किए गए।

आगे कथा में गुरुदेव ने सुनाया की भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन को बहुत समझाया की पांडव भी तुम्हारे भाई है। इस राज्य पर इनका भी अधिकार है। तुम यदि आधा राज्य नहीं देना चाहते हो तो, कम से कम इन्हें पांच गांव ही उनके भरण पोषण के लिए दे दो। पर विनाश काले विपरीत बुद्धि, दुर्योधन ने भगवान के इस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। और अभिमान वस भगवान से कहा पांच गांव की बात करते हो, बिना युद्ध किये तो मैं उन्हें सुई की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा। सुलह के सारे रास्ते बंद हो गए ,युद्ध निश्चित हो गया।

तब दुर्योधन और अर्जुन दोनों भगवान श्री कृष्ण से सहायता के लिए उनके पास पहुंचे। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि तुम दोनों मेरे समधी हो, इसलिए मैं दोनों को निराश नहीं कर सकता। ऐसा करो की एक व्यक्ति तो मेरी पूरी सेना ले लो ,और एक तरफ में स्वयं रहूंगा। पर प्रतिज्ञा यह है, कि मैं अस्त्र-शस्त्र नहीं चलाऊंगा। दुर्योधन ने सोचा खाली हाथ कृष्ण को लेकर क्या मिलेगा। तब दुर्योधन ने सेना मांग ली, और अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण को मांगा। भगवान अर्जुन के सारथी बने। और जिसके साथ भगवान होते हैं। सत्य होता है। धर्म होता है।

विजय उसकी निश्चित है, और परिणाम आपको पता है, की दुर्योधन की विशाल सेना होने के बाद भी भगवान कृष्ण की कृपा से पांडव को विजय श्री प्राप्त हुई। कौरवों के सौ भाई मारे गए ।भगवान पांचो पांडव की रक्षा की। इसके बाद महाराज युधिष्ठिर जी को हस्तिनापुर का राजा बनाया 36 वर्ष तक महाराज युधिष्ठिर ने धरमपूर्वक शासन किया। और अंत में भगवान श्री कृष्ण के वियोग के कारण परिवार सहित स्वर्ग धाम को चले गए। उनके जाने के पश्चात पौऋ अभिमन्यु नंदन महाराज परीक्षित को हस्तिनापुर का राज प्राप्त हुआ। महाराज परीक्षित ने न्याय पूर्वक राज्य का संचालन किया।

और अंत में वह भी ऋषि श्रॉप के कारण सुखदेव मुनी से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा सुनकर भगवान के धाम को चले गए। आगे महाराज गोकर्ण प्रसंग सुनकर सारे श्रोता भाव विभोर हो गए। आंखों से अश्रु धारा बहने लगी।गुरुदेव द्वारा गाए हुए मधुर भजनो सभी श्रोताओं ने नृत्य किया। इस अवसर पर घिसुलाल भगत जी, मांगीलाल जी ठाकुर, लखन लाल शर्मा, चंद्रपाल व्यास, उदय सिंह ठाकुर, मनोहर सिंह पटेल ,कोक सिंह पडीयार, अकेसिंह सरपंच ,बहादुर सिंह ठाकुर, फूल सिंह पटेल, जय सिंह ठाकुर , बड़ी संख्या में आसपास क्षेत्र के भक्तजन पधारे। आज का प्रसाद परीक्षित बने कोक सिंह पडीयार की ओर से वितरण किया गया।


