एक रूप वाले निज रूप में लीन हो सकते हैं- आचार्य विशद सागर मुनिराज, आचार्य विशद सागर सासंघ का हुआ नगर प्रवेश, जुलूस के साथ किला मंदिर पहुंचे,कदम- कदम पर हुआ पग प्रक्षालन

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- मां अहिल्याबाई की नगरी इंदौर में ऐतिहासिक चातुर्मास पूर्ण कर आचार्य विशद सागर मुनिराज रविवार को प्रातः सासंघ मंगल विहार करते हुए आष्टा पहुंचे। इंदौर नाके पर समाजजनों ने ढोल–ढमाकों के साथ भव्य अगवानी की। स्वागत जुलूस अरिहंतपुरम स्थित श्री चंद्रप्रभ मंदिर पहुंचा, जहां भगवान के दर्शन के पश्चात आचार्यश्री प्रमुख मार्गों से होते हुए किला मंदिर पहुंचे। पूरे मार्ग में श्रावकों ने भक्तिभाव से पग-प्रक्षालन कर आचार्यश्री का अभिवादन किया।

एक रूप में रहने का संदेश: “बहरूपिया बनकर अपने स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सकते”- आचार्य विशद सागर
किला मंदिर आचार्य विद्यासागर सभागृह में आयोजित धर्मसभा में आचार्य विशद सागर मुनिराज ने श्रावकों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोग धर्म की व्याख्या अपने-अपने अनुसार करते हैं, जबकि वास्तविक धर्म कर्तव्य पालन में निहित है।आचार्यश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि श्रावक विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप धारण करता है।मंदिर में श्रावक, घर में पिता-पुत्र, दुकान पर सेठ, और दफ्तर में

अधिकारी।यह बहरूपियापन व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर ले जाता है।उन्होंने कहा, “एक रूप वाले निजी रूप में लीन हो सकते हैं, बहरूपिया नहीं।”आचार्यश्री के अनुसार दिगंबर साधु एक रूप पिच्छी और कमंडलधारी रहते हैं, इस लिए साधु और श्रावक का कर्तव्य भी भिन्न है। साधु धर्म, आराधना व स्वाध्याय कराते हैं, स्वयं के आत्मा का कल्याण करने के साथ सभी के आत्मकल्याण अर्थात मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाते हैं। जबकि श्रावक साधुओं की चर्या कराते हुए दान,पूजा और संयम का पालन करते हैं।

तीर्थ, तप और कर्तव्य पर मुनियों का उपदेश
मुनि प्रवर सागर मुनिराज ने कहा कि निष्कलंक कर्मों से मुक्त जीव अनंत सुख का अनुभव करते हैं। दिगंबर मुद्रा साधारण नहीं, बल्कि मोक्ष मार्ग का विशेष स्वरूप है।
मुनि विशाल सागर मुनिराज ने आष्टा के आध्यात्मिक महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि यहां प्राचीन भूगर्भ की भव्य प्रतिमाएं होने के साथ दो चातुर्मासों का इतिहास रहा है। उन्होंने कहा, “अरिहंत के बिना मोक्ष नहीं, और संत के बिना अरिहंत नहीं मिलते।”

इंदौर जैन समाज का सम्मान, आगामी मंगल विहार की घोषणा- इंदौर सुदामा नगर के श्रावक विमलचंद झांझरी ‘अगरबत्ती वाले’ ने बताया कि इंदौर में आचार्यश्री का भव्य चातुर्मास सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। आचार्य विशद सागर द्वारा रचित 364 विधान समाज को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि आष्टा से श्रेयांसगिरि के लिए 17 नवंबर, सोमवार को प्रातः 7 बजे मंगल विहार होगा।कार्यक्रम में इंदौर से पधारे श्रावक–श्राविकाओं का समाज की ओर से सम्मान किया गया।

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