

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- मुनिश्री सजग सागर जी एवं सानंद सागर मुनिराज महाराज के सान्निध्य में चल रहे सिद्धचक्र विधान व अष्टान्हिका महापर्व का आठ दिवसीय आयोजन धार्मिक उल्लास और श्रद्धा के साथ संपन्न हुआ।मुनिश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि सिद्धचक्र विधान की आराधना का अर्थ केवल पूजन नहीं, बल्कि स्वयं को सिद्ध जैसा पवित्र और संयमी बनाना है। मुनिराज सानंद सागर ने कहा कि जब तक जीवन में नियम और संयम नहीं होंगे, तब तक आत्मकल्याण संभव नहीं। विधान पूजन में धन की कमी नहीं आनी चाहिए और

हर व्यक्ति को अपनी क्षमता अनुसार दान-पुण्य में सहभागी होना चाहिए।महापर्व के दौरान श्राविका अनिता रमेशचंद जैन ने छह उपवास कर तप का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया।समाज की ओर से रानी बड़जात्या ने उनका सम्मान कर कहां आपने तपस्या कर गौरव बढ़ाया।मुनिश्री ने कहा कि सिद्धों की आराधना आत्म कल्याण का मार्ग है। समर्थ व्यक्ति अपनी शक्ति छिपाएं नहीं और धर्म कार्यों में आगे बढ़कर सहयोग करें। कुछ लोग करोड़पति होते हुए भी धर्म में दान नहीं देते, ऐसे लोगों को अपने भीतर झांकने की आवश्यकता है।समापन अवसर पर मुनिश्री ने कहा, “अंत भला तो सब भला — सिद्धचक्र विधान पतन से उत्थान और दुर्गति से सद्गति की ओर ले जाने का निमित्त है।

जो कुलाचार, संयम और नियम का पालन करते हैं, वही सच्चे अर्थों में मोक्षमार्ग पर अग्रसर होते हैं।”पुजारी ऋषभकुमार जैन के सेवा-भाव और धर्मप्रेम की भी सराहना की गई।मुनिश्री ने सभी श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे तन, मन और धन से धर्मकार्य में योगदान दें, दया और करुणा के भाव से जीवन जिएं और सिद्धों के समान पवित्रता की दिशा में अग्रसर हों।सिद्धचक्र विधान की आराधना का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि स्वयं को सिद्ध समान बनाने का प्रयास है, संसार से मुक्त होने की भावना रखनी चाहिए।शुद्ध द्रव्यों और शुद्ध भावों से हमेशा पूजन करें।केवल बाहरी कुबेर (धनवान) न बनें, बल्कि “आध्यात्मिक कुबेर” बनें, चरित्रवान बनें।नियम और संयम के बिना मोक्ष संभव नहीं।केवल पिच्छका लेना या देना पर्याप्त नहीं, धर्म जीवन में उतारना जरूरी है।

सिद्धों की आराधना आत्मकल्याण का मार्ग है।हर व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार धार्मिक कार्यों में सहयोग करे।दान,पुण्य की महिमा बनाए रखें। धन की शक्ति को छिपाएं नहीं।कुछ लोग सामर्थ्यवान होकर भी दान नहीं करते, यह अनुचित है।“हंस और गाय जैसे श्रावक” बनें। परिग्रह त्यागें, सकारात्मक सोच रखें।“अंत भला तो सब भला”। आठ दिन सिद्धों की आराधना से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।सिद्धचक्र विधान दुर्गति से सद्गति की ओर ले जाने का साधन है।जो नियम, संयम और कुलाचार का पालन करते हैं, वही इस विधान से लाभान्वित होंगे।साधु–संतों की चर्या श्रावकों के सहयोग पर आधारित है। इसलिए तन, मन, धन से धार्मिक अनुष्ठान में सहयोग करें।

दान शक्ति अनुसार करें, पर शक्ति छिपाएं नहीं।पुजारी ऋषभ कुमार जैन की धर्म में लगन और निष्ठा की मुनिराज सानंद सागर ने सराहना की।आपने कहां करोड़पति होकर भी जो दान नहीं करते, वे पुण्य के बुनियादी कारण से वंचित रहते हैं।धार्मिक अनुष्ठान समाज की एकता और यश-कीर्ति बढ़ाते हैं।आराधना का लक्ष्य: आत्मा की शुद्धि और मोक्ष मार्ग की दिशा।जीवन का सिद्धांत: “नियम, संयम और दान”, यही धर्म का सार है।सामाजिक शिक्षा: समर्थ व्यक्ति आगे बढ़कर समाज व धर्म के कार्यों में दान करें।आध्यात्मिक शिक्षा: केवल पूजा नहीं, बल्कि चरित्र और व्यवहार में धर्म को उतारना ही सच्ची साधना है। विधानाचार्य जयदीप जैन शास्त्री ने धार्मिक विधि विधान से विधान सम्पन्न कराया। उनका एवं धर्मपत्नी का भी समाज ने सम्मान किया।
