

updatenews247.com धंनजय जाट आष्टा 7746898041- दो मुट्ठी चावल भगवान के समक्ष चढ़ाकर अपने आपको लोग धर्मात्मा मानते हैं। सपने में अगर दिगंबर आचार्यगण और साधु दिख रहे हैं तो वह भव्य जीव है , अगर उनके प्रति सम्मान के भाव नहीं है तो वह जीव मिथ्यादृष्टि है।आँखें होते हुए भी गंधारी जैसी मिथ्यात्व की पट्टी बंधी हुई है। मारिच का जीव अनेक पर्यायों स्त्री, नपुंसक ,नर्क पंचेंद्रीय, एक इंद्रिय आदि गतियों में गया और मांस का भक्षण करते करते जिनवाणी सुनकर आगम का ज्ञान और निज तत्त्व का ज्ञान हो गया था।

जिसके मन में कषाय नीचे नहीं आ रही है और 10 साल से कषाय पाल रहा है , वह जीव सम्यकदृष्टि नहीं मिथ्या दृष्टि है। आष्टा में साधु -संतों का आगमन चलता रहता है, यह आपका पुण्य है। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आचार्य विनिश्चय सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज ने आशीष वचन देते हुए कही। आपने कहा कि व्यक्ति तीर्थंकर बनना चाहता है, लेकिन अभी श्रावक के गुण भी नहीं है तो तीर्थंकर कैसे बनोगे। अगर आपके यहाँ साधु है तो धर्मसभा में उपस्थित रहना चाहिए।

साधु जिनवाणी श्रवण कराने के लिए बैठे हैं और आप मंदिर के अंदर पूजा कर रहे हैं तो पाप कर्म कर रहे हैं। व्यक्ति भगवान की वाणी ग्रहण कर रहा हैं और मन में गलत भाव है,तो वह विष बन जाएगा। गाय जैसे बने वह चारा आदि खाकर दूध देती है। मुनि प्रवर सागर मुनिराज ने कहा आज कल प्रदर्शन का दौर चल रहा है, भगवान की भक्ति, पूजा- अर्चना करने में भी प्रदर्शन करते हैं ,जबकि एकाग्रचित होकर भगवान की आराधना करना चाहिए।जिन भगवान की भक्ति का विशेष महत्व है। वस्तु का स्वभाव समझें। सम्यकदर्शन,सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र को ग्रहण करें। सम्यकत्व धारण करते हैं,

संलेखना ग्रहण करते हैं वह आत्मा कल्याण करती है। व्रती और साधु के प्रति गलत भाव व विचार रखने वाले का कुमरण होता है ,कर्म का फल सभी को भोगना पड़ता है। राजा श्रीपाल ने एक मुनिराज को कौड़ी कहा था उसी का फल उन्हें भोगना पड़ा। वह खुद भी कौड़ी हुए। अनछना पानी सेवन करते हैं और रात्रि में भोजन करते हैं फिर दिगंबर साधु से स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं, यह व्यक्ति की गलत धारणा है। पंच परमेष्ठी के प्रति मनुष्य पर्याय में आस्था रहेगी तो मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होंगे। दूसरे का नहीं नीच परिणामों का घात कर रहे हो।

स्त्री मैं धर्म है तो वह घर को स्वर्ग बना देती है। मुनिराज प्रवर सागर ने कहा स्त्री दो कूल का दीपक है। वह दो घर को रोशन करती है। चारित्रवान का यश बढ़ता है। स्त्री जननी होती है ,वह कर्म से संस्कार देती है। पहले लोरी सुनाकर बच्चे को चुप करते थे ,सुलाते थे और आज मोबाइल देकर बच्चे को गलत मार्ग पर ले जा रहे हैं। स्त्री ही संस्कार देती है। माँ के गर्भ से ही संस्कार प्राप्त होते हैं। आज बच्चे पाप के मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं और वे संस्कारहीन हो रहे हैं। बेटी और रोटी कभी नहीं बिगड़ना चाहिए ,यह दोनों सुरक्षित रहना चाहिए। कुल की मर्यादा बनी रहे ।

पहले एक व्यक्ति कमाता था और 10 व्यक्ति खाते थे और आज 4 व्यक्ति कमा रहे फिर भी पेट नहीं भर रहा है, क्योंकि व्यक्ति को पैसे की हवस बढ़ गई है। घर की
मर्यादा बाहर नहीं जाना चाहिए। धर्म, चारित्र और कर्तव्य से विहीन होते हैं, वह अपना आत्मकल्याण नहीं करते हैं। पहले बेटी को देखने जाते थे तो धर्म और घर गृहस्थी का काम के बारे में पूछते थे और आज जाव का पूछते हैं क्या पैकेज है ,जाव का नशा चढ़ा हुआ है? आज पुण्य का संरक्षण नहीं पाप का संरक्षण कर रहे हैं। वह माता -पिता नहीं दुश्मन हैं। जैनत्व खतरे में है। पुरुषार्थ करें और धर्म व पुण्य अर्जन करें। जैनत्व व वस्तु का स्वभाव समझें।
